देश में आज के ज़माने के सबसे लोकप्रिय लेखक चेतन भगत हैं…ये पूर्व आईआईटीयन युवा वर्ग की नब्ज़ को अच्छी तरह समझते हैं, यही वजह है कि इनकी लिखी किताबों को हाथो-हाथ लिया जाता है…इन्हीं की किताब पर बनी फिल्म थ्री इडियट्स ने कामयाबी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे…लेकिन चेतन अच्छे लेखक होने के साथ मार्केटिंग के फंडों को भी खूब समझते हैं..इनकी नई किताब रिवोल्यूशन 2020 को हिट कराने के लिए बाकायदा एक एड फिल्म बनाई गई है…फिल्म में यही दिखाया गया है कि चेतन की किताब को पढने में डूबे एक युवक एक युवती की ओर से सिड्यूस किए जाने पर भी उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता…थक हार कर युवती भी युवक के साथ किताब पढ़ने में लीन हो जाती है…
आजकल फिल्मों की भी इसी तरह मार्केंटिंग की जाती है कि पहले दो-तीन दिन में ही फिल्म की लागत के साथ मुनाफ़ा बटोर लिया जाए…चेतन लेखन में भी इसी प्रयोग को आजमा रहे हैं…अब भले ही उन्हें अपनी किताब बेचने के लिए नारी की देह का सहारा लेना पड़ रहा है…वाकई ज़माना बदल गया है…मुंशी प्रेमचंद नहीं ये चेतन भगत का ज़माना है…नीचे किताब के विज्ञापन के वीडियो को अपने रिस्क पर ही देखिए…
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समय की चाल जैसी हो, वही कर रहे हैं…
जबरदस्त प्रयोग.
चेतन क्या हैं अचेतन हैं जी.
क्या खूब भक्ति कर रहे हैं भगत जी.
contemprory writing
when a writer writes in one age about what is happening around him then its about the culture of that time
after a decade the same culture becomes history and looks redundent
premchand was thought to be revolutionary writer of his time but in his time the revolution was of a different kind then of todays writers
i hv not read this book but the way every thing is being commercialized this must be the reason
prono is every where and not just today but in past also
परले दर्जे का ले्खक है, जो बिक सकता है वही लिख रहा है। मार्केटिंग के फ़ंडे अपना रहा है। 🙂
थ्री इडियट देखी थी तो लगा था कि मैंने चेतन भगत को मिस किया…. अब तक उसकी एक भी किताब क्यों नहीं पढी पर अब लग रहा है… मैं तो बडा खुशकिस्मत हूं जो इससे बचा रह गया अब तक और आगे भी बचा ही रहूंगा क्योंकि ऐसे बेहूदे और हद दर्जे के घटिया विज्ञापन देकर किताब बेचने वाले व्यापारी(उपन्यासकार कहना ठीक नहीं लग रहा)की किताबें क्या पढना……!!!!!
हो सकता है इस विज्ञापन से किताबें कुछ अधिक बिक जाएँ। पर विज्ञापन बिलकुल बेकार है। एक बात अच्छी नहीं लगी। मुंशी प्रेमचंद की तुलना भगत से। भगत मुंशी प्रेमचंद के पैरों की धूल भी नहीं हैं।
सॉरी सागर यार,आजकल अति व्यवस्तता के चलते अपने ब्लाग पर ही ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाता…इसीलिए अब स्पैम देख कर तुम्हारा कमेंट पब्लिश कर रहा हूं…
जय हिंद…
अगर ऐसी ही कहानी हिन्दी में लिखी जाती तो इसे अश्लीलता की श्रेणी में रख दिया जाता। खैर किताब पढ़ने के बाद मन खट्टा हो गया और यह भी सोच लिया कि अब किसी अगत भगत का उपन्यास नहीं पढ़ेंगे।
काश ,विश्वामित्र के पास भी चेतन भगत का नॉवल होता .
सब कुछ बिकाऊ है …
शुभकामनायें..
पहले पढ़ चुके हैं यह पुस्तक, यह विज्ञापन देखे होते तो कभी नहीं पढ़ते।
चेतन को क्या चाहिए समझे परे है, हैरानी होती है जब चेतन जैसा लेखक ऐसा करता है, ऐसी एड का सहारा तो नव लेखक भी नहीं लेता। कुछ तो शर्म करो चेतन भाई को बोलो।
चेतन भगत आईआईटी के साथ मैनेजमेंट भी किये हैं। मैनेजमेंट में चीजें बेचने की कला सिखाई जाती है। उसका उपयोग किया है उन्होंने। अब इतना आत्मविश्वास हिला है इस सफ़ल लेखक का ये देखकर जरा ताज्जुब हुआ।
where is my comment sir ? perhaps in spam 🙂
यदि किसी भी लेखक को ऐसा विज्ञापन करना पड़े तो वह क्या खाक लेखक है।
दूसरी बात चेतन भगत को अपनी किताब बेचने के लिए इस हद तक गिरना पड़ता है तो वे काहे के बड़े लेखक हैं। इनसे अच्छे तो शायद हमारे जमाने के गुलशन नंदा या रानू ही रहे होंगे। राजेश उत्साही जी की येबात बिल्कुल सही है ये तो एक तरह से वेश्यावृति की तरह किताब बेचना हुआ ………सिर्फ़ किताब बेचने के लिये इस हद तक नीचे गिरना वेश्यावृति को भी शर्मसार करता है वो तो फिर भी सिर्फ़ मजबूरी मे ऐसा करती हैं मगर इन जनाब को ऐसी कौन सी मजबूरी आ गयी…………मेरे ख्याल से तो ये लेखक कहलाने योग्य ही नही है अगर ऐसी मानसिकता है तो
पहली बात तो यह हद दर्जे का झूठ है कि इस तरह स्त्री आपके सामने हो और आप किताब ही पढ़ते रहें।मैं तो यह भी कहूंगा कि यह स्त्री के समर्पण का अपमान है।
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दूसरी बात चेतन भगत को अपनी किताब बेचने के लिए इस हद तक गिरना पड़ता है तो वे काहे के बड़े लेखक हैं। इनसे अच्छे तो शायद हमारे जमाने के गुलशन नंदा या रानू ही रहे होंगे।
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मैंने कभी इनको नहीं पढ़ा। लेकिन टिप्पणियों से पता चलता है कि शायद चेतन इस विज्ञापन में यह कहना चाहते हैं कि स्त्री के साथ सेक्स से ज्यादा उनकी किताब के साथ सेक्स किया जा सकता है।
हिंदी के लेखक तो एक अच्छी राशि सपने में नहीं देख पाते.
मैं इंजीनियरिंग का छात्र हूँ और मेरे सारे दोस्तों को चेतन भगत बहुत पसंद हैं | मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि वे कितने ज्यादा साहित्य प्रेमी हैं और वो कितना उच्च दर्जे का साहित्य पढते हैं |
मैंने भी इसकी पहली नावेल पढ़ी थी | Three mistakes of my life २० – २५ पेज से ज्यादा नहीं झेल सका | फिर Two States पढ़ी , इस उम्मीद में कि ये इनका चौथा नावेल है , अब तक तो बहुत परिपक्वता आ चुकी होगी और विषय में भी विविधता आयी होगी पर पुनः निराशा हुई | एक ही मुद्दा : सेक्स सेक्स सेक्स | बोर हो गया |
तबसे निश्चय किया कि अब इन साहब की किताबों से हम दूर ही अच्छे |
revolution 2020 मेरे कई दोस्तों ने पढ़ी और उन्होंने मुझे इसे पढ़ने की सलाह भी दी पर मेरी हिम्मत नहीं हुई |
इनकी किताबो का आधा हिस्सा पढ़कर और उसकी स्वीकार्यता देखकर तो ऐसा लगता है कि अब society में Porn Literature भी acceptable है |
दूसरे कमेन्ट से असहमति…
पढने के दौरान होता क्या है कि हमारे अन्दर किताब को परखने की क्षमता विकसित हो जाती है अच्छा बुरा चुनने की… अगर आप कृष्ण चंदर, प्रेमचंद, रेणु आदि को गौर से पढेंगे तो चेतन की दूसरी किताब पढने का मन नहीं होता. ऐसा मेरा मानना है.
सिर्फ एक किताब पढ़ कर मैंने तय कर लिया अब उनकी दूसरी किताब नहीं पढनी. मोहल्ला लाइव पर एक आलेख में मैंने कुछ ऐसा कहा था… अब भी उस पर कायम हूँ. उन्हें कला की समझ नहीं है.
"दरअसल चेतन ने अपना बयान बदला है… २००६ में में दिल्ली आया था. उसी साल उनकी तथाकथित धूम मचाऊ किताब 'वन नाईट…' पढ़ी थी. जो मुझे बेकार लगी.. उसी साल दिसंबर में उनका बयान आया था जिसमें उन्होंने कहा था 'मुझे लिखना नहीं आता, कहना आता है. किस तरह से लिखा जाए नहीं आता, मैं बस अच्छा सुना भर लेता हूँ, व्याकरण और शिल्प भी नहीं आता' फिर कुछ महीने बाद उनका बयान आया "लोग मुझसे अक्सर कहते हैं कि इंग्लिश तो वे बस मेट्रो में दिखाने के लिए पढ़ते हुए दिखाते हैं फिर बाद में हिंदी में किताब खरीदी जाती है (जो कि अबकी समझने के लिए होती है)
मैंने भी चेतन को पढ़ा है. ये मेट्रो कल्चर, कन्फ्यूज्ड युवा जो कि स्नेक्स और कोल्ड ड्रिंक में उलझा है उनके बीच के हीरो हैं… उसी में थोडा सम सामयिकता ठूंस कर वो लेखक बन जाते हैं… उनके लेखन में मुझे कोई स्तर नहीं लगता.. गहराई तो दूर कि बात रही ना प्रासंगिक हैं ना ही चर्चा के काबिल…
ऐसे कई किताब आपको राजीव चौक पर इंडिया टुडे वाली दूकान में मिलेगी जो एम् बी ए के स्टुडेंट्स लिखते हैं जिसमें कोलेज के रोमांस होते हैं, हिंगलिश भाषा होती है, एस एम् एस प्रकरण होते हैं और कोलेज से निकलने के बाद नौकरी और अच्छा पैकेज मिल जाने के बाद थोडा बहुत देश पर सोच लेते हैं…. "
कुछ महीने पहले गुलज़ार ने भी उन्हें आइना दिखाया था जब "तेरी बातों में किमाम की खुशबू है" का मतलब पूछ दिया था.
behsarmi ki kya bat hai! aajkal yahi bikta hai! tabhi young gen me miya Chetan bhagat ji inne popular hain! I hv read his "one night at Call center" wo title se se saaf hai ki kya ho sakta hai! lekin fir mene jab ye padhi revolution isme 226 approx pages hain aur out 226 100 pages me yahi sab hai! sex sex sex! the funda of Kamyabi of mr.Bhagat,!
isko padhne ke bad mene ye decide kar liya ki aage se inko nhi padhunga! kyuni khali nam badla hota hai novel ka aur kuch bhi to nhi!
हद्द है बेशर्मी की….
oh my goodness…यह तो हद्द है.