खुसदीप भाई, पोपट और ब्लॉगर्स…खुशदीप


रात को इंटरनेट पर बैठा तो कल की मेरी पोस्ट के लिए स्पैम में ये दो टिप्पणियां दिखीं…टिप्पणियां करने वाले दोनों सज्जनों का प्रोफ़ाइल नहीं मिला…ना डॉ संतोष कुमार यादव जी का और ना ही अन्वेषक जी का…दिमाग़ पर बहुत ज़ोर डालने पर भी मुझे याद नहीं आया कि दोनों से पहले कभी मेरा कोई संवाद हुआ हो…ख़ैर दोनों ने मुझे खुसदीप भाई लिखा है…और दोनों ने ही लिखा है कि मैं बॉब्स पुरस्कारों में ‘नारी’ के लिए वोटिंग की अपील कर ब्लॉगर्स को पोपट बनाने की कोशिश ना करूं…मुझे नहीं पता कि टिप्पणी करने वाले दोनों सज्जनों ने एक जैसे ही मुझे खुसदीप भाई क्यों लिखा और दोनों ने ही एक जैसे पोपट का उल्लेख क्यों किया…लेकिन दूसरी टिप्पणी की आख़िरी लाइन पढ़ कर समझ आ गया कि दोनों टिप्पणी करने वाले सज्जन एक ही हैं…

मैंने जब से ब्लॉगिंग शुरू की है, कभी मॉडरेशन का प्रयोग नहीं किया…टिप्पणी की भाषा मर्यादा में रहे तो मैंने कभी किसी टिप्पणी को डिलीट भी नहीं किया…लेकिन आज मिलीं उपरोक्त दोनों टिप्पणियां स्पैम में चली गई थीं, इसलिए जब मैं ब्लॉग खोलता तभी निकल पातीं…अब इन टिप्पणियों को मैं सिर्फ़ प्रकाशित ही कर देता तो पोस्ट पुरानी हो जाने से इन्हें ज़्यादा पाठक नहीं मिलते…इसलिए मैंने इन्हें बाकायदा पोस्ट बनाने का भी फ़ैसला किया…इसलिए अपनी तरफ़ से कुछ भी ना कहते हुए बस इतना चाहता हूं कि आप इन टिप्पणियों को बस गौर से पढ़ लीजिए…

Dr. Santosh Kumar Yadav has left a new comment on your post “क्या आप में है एक ‘सोल्जर’…खुशदीप“: (दोपहर 3.37 पर मिली टिप्पणी)


बस भी करो खुसदीप भाई, सारे ब्लागर्स को पोपट समझा है क्या? नारी के प्रचार मेन आप तो मोदी को भी पीछे छोड़े पड़े पड़े हो। अरे नारीवाद का झण्डा ही बुलंद करना था तो चोखेर बाली को चुना होता। आप ऐसे ब्लॉग की वकालत कर रहे हो, जिसे देख कर ही उबकाई आती है। भाषा, ले आउट, मैटर कुछ तो होना चाहिए। और उस पर लेखिका महोदया का व्यवहार…. इससे पहले कि लोग आपकी नियत पर सवाल उठाने लगें, अपने आप पर नियंत्रण करें। कहीं ऐसा न हो कि ये नारी के प्रचार की अति आपकी वर्षों की मेहनत पर पानी न फेर दे… 

अन्वेषक has left a new comment on your post “क्या आप में है एक ‘सोल्जर’…खुशदीप“: (शाम 5.46 पर मिली टिप्पणी)


क्या खुसदीप भाई सबको पोपट समझा है क्या। सपाओर्ट ही करना था तो किसी ढंग के ब्लाग का करते। नारी ब्लाग मेन भला है क्या? भाषा, ले आउट, सामाजिकता? या फिर नारी के नियंत्रक की दादागीरी। सामूहिक ब्लाग से सभी सहयोगियों को निकाल बाहर करना या फिर आम प्पठकों को प्रतिबंधित कर देना। किस बात पर आपका दिल आ गया? 


अगर आप वास्तव मेन नारीवाद के समर्थक हैं, तो चोखेरबाली का समर्थन करिए, तो सभी का समर्थन करते हुये अच्छा लगेगा। उस पर आप जिस सुर मेन नारी ब्लाग को समर्थन कर कर रहे हैं, प्रतिदिन उसे लेकर पोस्ट लिख रहे हैं, वह समर्थन कम साइकिक अधिक लाग्ने लगा है। उसे देख कर अब लोग हंस रहे हैं, आप का मज़ाक उड़ा रहे है। 


कुछ लोग तो यहा तक कह रहे है की आप नारी के बहाने अपनी खीझ निकाल रहे हैं, की जब मेरे ब्लाग को नामित नाही किया, तो मैं ऐसे ब्लाग को जिताऔंगा जिसे देखते ही उबकाई आने लगे। अगर ऐसा नहीं है तो एक बार गंभीरता से सोचिए, क्योंकि या प्रसंग आपकी प्रतिष्ठा को प्राभावित कर रहा है। जिस प्रकार कमान से निकला हुआ तीर वापस नाही आता, उसी प्रकार प्रतिष्ठा मेन बट्टा लाग्ने मेन भी देर नाही लगती। 
आशा है आप इस पोस्ट को पहली की तरह मिटाएँगे नाही और मेरे बातों को गंभीरता से लेते हुये, ऐसे ब्लाग का समर्थन करेंगे, जिसे देख कर, पढ़ कर पाठको को वास्तव मेन खुशी हो। क्योंकी ये सिर्फ वोट की बात नाही है, ये भाषा की गरिमा से भी जुड़ा हुआ है, देश की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। 

आपने दोनों टिप्पणियां पढ़ लीं, अब खुद ही फ़ैसला कीजिए…