ले देकर,पाकिस्तान को हराने का सुख (वो भी खेल के मैदान में) ही तो बचा है हम बेचारे भारतीयों के जीवन में।
फिर लगे हाथों “राष्ट्रीय भावना” को भी श्रद्धांजलि मिल जाएगी…
मोहाली में हम भी चाटेंगे यह अफीम !
सम्वेदना के स्वर की ये टिप्पणी कल मेरी पोस्ट पर मिली…देश के ज्वलंत और सामाजिक मुद्दों पर प्रखर सोच के लिए मैं सम्वेदना के स्वर का बड़ा सम्मान करता हूं…मैं भी मानता हूं कि…
क्रिकेट देश के लिए अफ़ीम है…
क्रिकेट मैचों के दौरान पूरा देश काम-धाम भूलकर क्रिकेट में मग्न हो जाता है…
दुनिया के अधिकतर विकसित देश क्रिकेट नहीं खेलते…
क्रिकेट सिर्फ वही देश खेलते हैं जो कभी न कभी ब्रिटेन के गुलाम रहे…
देश में क्रिकेट के अलावा दूसरे सारे खेलों की सुध लेने वाला कोई नहीं है…
बाज़ार ने क्रिकेट को तमाशा बना दिया है…
आईपीएल ने ग्लैमर को साथ जोड़कर रही सही कसर और पूरी कर दी…
लेकिन…
आखिर में ये ज़रूर पूछना चाहूंगा देश में ऐसी और कौन सी चीज़ है जो विश्व कप जैसे आयोजन के दौरान पूरे देश को एकसूत्र में जोड़ देती है…सब ये भूल कर कि वो कौन से प्रांत के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं, कौन सी पार्टी के हैं, एकसुर से प्रार्थना करते हैं- विश्व कप पर बस भारत का ही नाम लिखा जाए…भारत के हर चौक्के-छक्के पर पूरा देश एकसाथ उछलता है…भारत का हर विकेट गिरने पर एक साथ सब आह भरते है…अपनी टीम की जीत पर पूरे देश में होली-दीवाली बनती है…हार पर पूरा देश गम और गुस्से का इज़हार करता है…क्रिकेट के साथ फिल्मों को देश का सबसे बड़ा पास-टाइम माना जाता है…लेकिन फिल्मों पर भी हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम,बांग्ला, मराठी, पंजाबी, उड़िया, भोजपुरी की मुहर लगी रहती है…इसलिए वहां भी प्रांतवाद या भाषावाद किसी न किसी रूप में आड़े आ जाता है और समूचे देश को एक नज़र से नहीं देख पाता…लेकिन क्रिकेट ऐसी सभी सीमाओं को मिटा देता है…बस ये याद रह जाता है…हम सब भारतीय हैं और भारत को विश्व विजयी बनते देखना है….उस खुशी, उस रोमांच, उस गौरव को फिर से जीना है जो कपिल के जांबाज़ों ने 1983 में विश्व कप जीत कर पूरे देश को महसूस कराया था…
(यहां मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि मैं आईपीएल के तमाशे को क्रिकेट नहीं मानता…मैं सिर्फ उसी क्रिकेट की बात कर रहा हूं जब एक टीम के रूप में भारत मैदान में उतरता है…सारे खिलाड़ी तिरंगे की शान के लिए अपना सब कुछ झोंकने के लिए तैयार रहते हैं…तिरंगे से जुड़ी इस भावना का कोई आईपीएल अरबों-खरबों रुपये लगाकर भी मुकाबला नहीं कर सकता…)
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खेल तो हमेशा से ही स्वस्थ मनोरंजन के साधन रहे हैं तो क्रिकेट से परहेज क्यों? मनुष्य को जीवन में मनोरंजन तो चाहिए ही, अब वो क्या देखे? समाचार? जिनमें समाचार कम और वाकयुद्ध ज्यादा होता है। सीरियल? जिनमें परिवार को विषैला बनाने के नुस्खे होते हैं। कम से कम खेलों में यह सब तो नहीं होता। हम तो खूब देखते हैं क्रिकेट और सारे ही खेल।
समय बिताने के लिए चलो करें कुछ काम
क्रिकेट की चर्चा करें,बन जाये कुछ काम
बन जाये कुछ काम,चलो फिर दांव लगा दो
साम,दाम,दंड,भेद लगा,बस हमें जीता दो.
क्यों खुशदीप भाई यही तो चाहत है आपकी भी.
अच्छा लिखा है. बधाई
मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करें.
क्या यही है पत्रकारिता का स्टैंडर्ड
चीयर लीडर्स की जगह आएंगी चीयर क्वीन्स
criket menia par unka chutki sochne ke liye ? khara karta hai…sahi hai……
lekin….apne jis bhavna se apni baat
rakhi hai………o bhi uchit hi hai.
pranam.
मुझे यह क्रिकेट बहुत बुरा लगता हे…अग्रेजो की गुलामी की पहचान, लेकिन जब पाकिस्तान सामने हो तो उसे हराता देख मुझे बहुत खुशी होती हे, जबकि मेरे साथ मेरे दोस्त पाकिस्तानी भी बेठे होते हे, ओर उन्हे भारत को हराने मे मजा आता हे,ओर मेच के अंत मे हम खुले दिन से तारीफ़ ओर बुराई भी करते हे सब खिलाडियो की कोन अच्छा खेला कोन गलत…. लेकिन भारत मे इस खेल की दिवानगी बढती ही जा रही हे
क्रिकेट के विरोध में कई स्वर उठते हैं…पर मेरा भी स्वर इसमें शामिल नहीं है…
जब देखती हूँ…गाँव-गली-कूचे में क्रिकेट किस तरह छाया हुआ है….जब झोपड़पट्टी के बच्चों को कपड़े धोने वाली मुगरी को बैट बनाए एक मोज़े में कपड़े डाल कर गेंद बनाए और …टूटे पैकिंग बॉक्स की विकेट बनाए क्रिकेट खेलते देखती हूँ….तो लगता है इनके जीवन में ये ख़ुशी के ये पल ये क्रिकेट ही लेकर आया है…तीन साल के छोटे भाई का हाथ पकड़ बड़ा भाई बैटिंग करवा रहा था…वह दृश्य अनुपम लगा . और हम माने या ना माने…इतने कम जगह में यही खेल है जो वे खेल सकते हैं. फुटबौल..हॉकी…सबके लिए ज्यादा जगह चाहिए….जो महानगरों में तो नहीं है.
ठीक है…सारा देश पागल हो उठता है…पर कभी-कभी सबको एक साथ पागल होता देखना भी अच्छा ही लगता है.
भाँत-भाँत की अफीमें हैं
जब इलाज न हो मौजूद
मर्ज का, तो
दर्द निवारक क्या बुरा है?
lekin yah bhi satya hai ki khud bcci apne liye ek club hi maanta hai.. kuchh samay pahle ki hi to baat hai..
क्रिकेट को लेकर सबका अपना – अपना नज़रिया है … राजनीति की खबरों में लोगों की घटकी रचि कहीं तो डायवर्ट होगी ही, ऐसे में क्रिकेट का मजा लेना बुरा नहीं है । सी पी बुद्धिराजा
जीत के लिए शुभकामनायें !!
क्रिकेट देश के लिए अफ़ीम है…उसी की पिनक में ३० मार्च कट जायेगा….राजा, कलमाड़ी जैसे अनेक तब तक के दिन की राहत पायेंगे..अफजल हर शाम सो जायेंगे और हम गायेंगे….
भारत महान!! भारत महान!!!
जीत गये तो जश्न वरना पुराने मुद्दे तो हैं ही टेसू बहाने को!!
वाह रे..वाह!! कितना साफ दिखता रास्ता है हमारा…
तब कोई अफीमी मुद्द्दा उछाल दिया जायेगा..नशेड़ी और क्या चाहे..फिर डूब लेंगे…पिनक तो पिनक ही है.
khush dip bhaai yun hi khushi ke dip jlaate chlo . akhtar khan akela kota rajsthan
खुशदीप जी आपने सच कहा, क्रिकेट के मैदान में जब भारत की टीम उतरती है तो पूरा देश एक ही कामना करता है। कहीं से भेदभाव नहीं सामने आता।
आपको अच्छी पोस्ट और टीम इंडिया को जीत की शुभकामना।