ब्लॉगिंग के साथ देश में भी जैसा माहौल चल रहा है, उससे विरक्ति सी महसूस होने लगी है…सब कुछ प्रायोजित सा लगने लगा है…अप्रैल में अन्ना हज़ारे की मुहिम शुरू होने से लगा था कि सोए हुए देश के साथ अपनी ही मस्ती में डूबी सरकार को झिंझोड़ कर जगाने की कोई ताकत रखता है…लेकिन दो महीने भी नहीं हुए, भ्रम दूर होने लगे हैं…सपने देखने आसान हैं लेकिन उन्हें हक़ीकत में बदलना बहुत मुश्किल…अन्ना हज़ारे नेक आदमी हैं, उनके अंदर भली आत्मा वास करती है…लेकिन वो कहावत है न अकेला चना आखिर क्या क्या फोड़ सकता है…
अन्ना की टीम अपनी ओर से यथाशक्ति कोशिश कर रही है…लेकिन उसकी दिक्कत ये है कि उन्होंने सिर्फ पांच-छह लोगों को ही पूरी सिविल सोसायटी मान लिया है…सरकार शातिर है, पांच-छह लोगों से निपटने के उसके पास हज़ार रास्ते हैं…आज़ादी से पहले के डिवाइड एंड रूल फॉर्मूले को हमारी ये सरकार भी बखूबी इस्तेमाल करना जानती है…और इसके लिए टारगेट मिल भी जाते हैं…अन्ना की लकीर छोटी करने के लिए सरकार ने बाबा रामदेव की लकीर बड़ी करनी चाही…लेकिन बाबा को भी शायद गलतफहमी हो गई थी कि अब सरकार से कुछ भी मनवाया जा सकता है…भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या काले धन का मुद्दा, पूरे देश की समस्या है, किसी का इस पर पेटेंट तो है नहीं…फिर क्यों अकेले टीम अन्ना या अकेले रामदेव इस मुद्दे पर ऐसा दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं कि बस वो जो कह रहे हैं, वही सही है….अन्ना की टीम ने पहले सरकार के जाल में फंस कर लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल होना कबूल कर लिया….सरकार ने धीरे धीरे अपना असली रंग दिखाना शुरू किया तो अब टीम अन्ना फाउल फाउल चिल्लाते हुए सार्वजनिक बहसों के ज़रिए लोगों की राय जानने की भी बात कर रही है…
मैंने पहले भी अपनी एक पोस्ट में लिखा था कि देश की तस्वीर बदलने के लिए पहले कुछ ऐसे नाम तलाश करने चाहिए जिनका जीवन खुली किताब रहा है…ईमानदारी का रिकार्ड पूरी तरह बेदाग रहा है…पीपुल्स प्रेज़ीडेंट डॉ अब्दुल कलाम, मेट्रोमैन ई श्रीधरन जैसे दस भी आदमी मिल जाएं तो उनकी सलाह लेकर पूरे देश में जनमत खड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए…इससे भ्रष्टाचार या काले धन के खिलाफ लड़ाई कुछ ही लोगों तक सिमटी नहीं रह जाएगी…उससे व्यापक आधार मिलेगा…इन दो मुद्दों के साथ गरीबी, एजुकेशन, स्वास्थ्य, किसानों की बदहाली को भी फ्रंटफुट पर रखा जाना चाहिए…
देश की ये बदकिस्मती ही कहिए कि राजनीति के मोर्चे पर जितनी भी ताकतें हैं उनसे देश का मोहभंग हो चुका है…एक भी ऐसा नेता नहीं जो सबको साथ लेकर चलने की सलाहियत रखता हो…सरकार का विरोध करने की जिन पर ज़िम्मेदारी है, वो और ज़्यादा निराश करने वाले हैं…अटल बिहारी वाजपेयी के अस्वस्थ होकर राजनीति के पटल से हटने के बाद विरोधी खेमे में जो रिक्तता आई है, उसकी भरपाई करने वाला विकल्प दूर-दूर तक नज़र नहीं आता…सदन की गरिमा अब अतीत की बात होकर रह गई है…राष्ट्रीय दल हो या प्रांतीय दल, हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा है…राजनीतिक मोर्चे से जनता निराश है तो योग सिखाते सिखाते कोई बाबा रामदेव उठ कर कहने लगते हैं कि चार सौ लाख करोड़ का काला धन देश में ले आओ तो देश का हर बंदा सुखी हो जाएगा…एक ही झटके में देश की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी…एक रुपये में पचास डॉलर मिलने लगेंगे…ये सब अव्यावहारिक बातें इसलिए हैं कि क्योंकि हम सरकार को कोसना तो जानते हैं लेकिन वो विकल्प नहीं सुझाते जिसके तहत देश की तस्वीर बदली जाएगी…यही एजेंडा साफ़ न होने की वजह से सारी मुहिम टाएं-टाएं फिस्स हो जाती हैं…
अब जैसी ख़बरें आ रही हैं बाबा रामदेव और सरकार के बीच गतिरोध जल्दी ही टूट जाएगा…कोई सहमति बन जाएगी….सरकार काले धन पर कोई पैनल या कमेटी जैसा कदम उठाएगी…बाबा रामदेव के कारोबारी धंधों पर कहीं से कोई आंच नहीं आएगी…यानि हर एक के लिए विन-विन पोज़ीशन…ठगी रह जाएगी तो फिर वही जनता…
अगर देश का राजनीतिक नेतृत्व ईमानदार और काबिल होता तो क्यों लोगों को अन्ना हज़ारे या बाबा रामदेव के पीछे लगने की ज़रूरत पड़ती…मुझे अब देश का माहौल सत्तर के दशक जैसा ही नज़र आने लगा है…तब जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया तो पूरे देश को लगा इंदिरा गांधी की सरकार पलटते ही देश में सब कुछ अच्छा अच्छा हो जाएगा…लेकिन उस वक्त भी ये नहीं सोचा गया था कि जो विकल्प आएगा क्या वो वाकई राष्ट्रहित के एजेंडे पर काम करेगा या भानुमति के कुनबे की तरह सिर्फ अपने ही स्वार्थों के लिए मर मिटेगा…हुआ भी यही चौ.चरण सिंह की प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश और मोराराजी देसाई के हठी स्टाइल ने सब पलीता लगा दिया…तीन साल में ही इंदिरा गांधी की वापसी हो गई…
आज तीन दशक बाद भी स्थिति बदली नहीं है…हर कोई अपने स्वार्थ के पीछे भाग रहा है…ऐसे में राजनीति से इतर कोई व्यक्ति ईमानदारी, नैतिकता, शुचिता की बातें करता है तो लोगों को उस में ही आइकन नज़र आने लगता है…ये ठीक वैसे ही है जैसे सत्तर के दशक में महंगाई, भष्टाचार से हर कोई त्रस्त था, और सिल्वर स्क्रीन पर एंग्री यंगमैन के तौर पर अमिताभ बच्चन को व्यवस्था से लड़ते देखता था तो खूब तालियां बजाता था…हक़ीक़त में जो नहीं हो सकता था, वो उसे पर्दे पर अमिताभ के ज़रिए पूरा होते दिखता था…लेकिन यही अमिताभ राजनीति में आए थे तो क्या हश्र हुआ था, ये इलाहाबाद के लोगों से बेहतर कौन जानता होगा…
क्या लिखूं सोच रहा था और बहुत कुछ लिख गया…हमारे देश का मानव संसाधन आज भी हमारा सबसे बड़ा एसेट है…एक से एक प्रतिभाएं हैं देश में…ज़रूरत है हमें अच्छे नेतृत्व की…टॉप लेवल पर ईमानदार और एक्सपर्ट लोगों का पैनल निगरानी करे और छोटे स्तर पर तस्वीर को बदलने वाली लड़ाइयां हम हर गली मोहल्ले, गांव कस्बे में लड़े, तब ही सूरत में बदलाव सोचा जा सकता है…वरना…वरना क्या…मेरा भारत महान तो है ही….
- बिलावल भुट्टो की गीदड़ भभकी लेकिन पाकिस्तान की ‘कांपे’ ‘टांग’ रही हैं - April 26, 2025
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
इस यज्ञ में एक छोटी सी आहुति अपनी भी…! सभी गुणी जन कृपया एक नज़र इधर भी डालें…
http://tyagiuwaach.blogspot.com/
विरक्ति का भी अपना दौर होता है…गुजर ही जायेगा.
अब वो समय दूर नहीं हैं जब सरकारी तंत्र कहेगा की आम आदमी पर सब कानून लागू कर दो .
और ये भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम . लोकपाल इत्यादि अपने आप बंद हो जायेगा
सोच कर देखिये आम आदमी यानी आप और मै रोज कितने कानून तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पार करते हैं ज़ेब्रा क्रोस्सिंग से
कितने लोग पानी की सुप्लाई से गाडी धोते हैं
कितने लोग किरायेदार रखते हैं पर हाउस टैक्स वालो को नहीं बताते
कितने लोग बिना बिल के समान खरीदते हैं
कितने लोग लोकर में कैश रखते हैं
कितने लोग १८ साल की उम्र से कम बच्चो को घर के काम के लिये रखते हैं
कितने लोग बच्चो के साथ यौनिक सम्बन्ध रखते हैं
कितने लोगो के पास कंप्यूटर पर ओरिजिनल सॉफ्टवेर हैं
कितने लोग पिक्चर और गाने डाउनलोड करते हैं बिना पैसा दिये
कितने लोग नेट कनेशन के लिये ड्राइव का लोक तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पर शराब पीते हैं
कितने लोग सड़क पर कूड़ा फेकते हैं
कितने लोग एक दूसरे को धक्का दे कर मेट्रो में चढते हैं
कितने लोग बिना टिकेट यात्रा करते हैं
ये जितनी रैलियाँ होती हैं क्या उनके लिये परमिशन ली जाती हैं
कितने लोग बारात लेकर सडको पर शोर माचा ते हैं क्या जानते हैं इसके लिये सरकारी परमिशन चाहिये
दस बजे के बात जगराते के नाम पर शोर मचाना कौन नहीं करता
ज़रा और लोग भी इस लिस्ट में कुछ जोड़े और फिर किसी को समर्थन दे
पूरा देश जेल जा सकता हैं अगर हर कानून पूरी तरह लागू कर दिया जाए
जब तक पकड़े ना जाओ तब तक ठीक
हम करे तो सही कोई और करे तो भ्रष्टाचार
आजकल आप कमाल का लिख रहे हैं खुशदीप भाई !
आशा है उत्साह बनाये रखेंगे !
शुभकामनायें !
मैं सोच रहा हूं कि क्या सचमुच ही कुछ नहीं बदल रहा है । क्या अन्ना हज़ारे , बाबा रामदेव , किरन बेदी , अरविंद केजरीवाल भी निराश हो कर बैठ सकते हैं क्या वे भी सोच सकते हैं कि अब क्या किया जाए क्या नहीं । नहीं कदापि नहीं , एक भारतीय नागरिक होने के नाते जो भी आप कर सकते हैं आपको हमें करना चाहिए , और करते रहना चाहिए । शुभकामनाएं खुशदीप भाई
प्रवीण जी ने सही दिशा में इशारा कर दिया …दस ईमानदार भी अगर साथ हो सके तो स्थिति बदल सकती है …
देश का माहौल निराश तो करता ही है और उसका असर जागरूक नागरिकों पर ज्यादा होता है …
काश, दस दमदार मिल जायें।
देश की तस्वीर बदलने के लिए पहले कुछ ऐसे नाम तलाश करने चाहिए जिनका जीवन खुली किताब रहा है…ईमानदारी का रिकार्ड पूरी तरह बेदाग रहा है…पीपुल्स प्रेज़ीडेंट डॉ अब्दुल कलाम, मेट्रोमैन ई श्रीधरन जैसे दस भी आदमी मिल जाएं तो उनकी सलाह लेकर पूरे देश में जनमत खड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए.
समस्या तो यही है कि अच्छे लोग इस गन्दी राजनिती से खुद को दूर रखे हुये हैं और सरकार जैसे लोग सामने आ रहे हैं। अन्ना जी को भी देश के संविधान और राजनिती की शायद उतनी समझ नही वो भी उतना ही कर रहे हैं जो उनके साथ खडे 4-6 लोग करवा रहे हैं। पता नही लोगों की भी अपनी सोच कब बदलेगी जो सही और गलत की पहचान कर ले। काँग्रेस को अब बाबा से हाथ नही मिलाना चाहिये अगर मिलाया तो उनका जनाधार भी समाप्त हो जायेगा बाबा भले कुछ देर चुप कर जाये लेकिन अन्दर से वो सरकार को उखाड फेंकने मे कसर नही छोडेगा और उसके लिये जायज़ नाजायज़ सब करेगा। धन ऐसे ही आदमी का दिमाग खराब करता है और उस पर भी जब वो मुफ्त मे दान मे मिला हो। सरकार को बाबा के धन की जाँ च्करनी चाहिओये ताकि इन पाखँडी संत बाबाओं से लोगों का मोह टूटे। जो लोग उनके आस पास जमा होते हैं वो अधिकतर उनकी कम्पनिओं के और कारोबार के कर्मचारी होते हैं। आम जनता तो केवल सच जानना चाहती है।
बाकी ब्लागिन्ग से मोह साल दो साल बाद छूटने लगता है मगर इसे छोडे भी नही बनता और जारी रखते भी नही। फिर भी जारी रखें। शुभकामनायें।
Agreed with Kapila ji….kya dhadaak se maarti hain….wah!
Agreed with Kapila ji….kya dhadaak se maarti hain….wah!
उम्मीद है अब लोगो को पूरी बात समझ मे आ जायेगी.
कि उस रात स्वामी रामदेव गिरफ्तारी देने के लिये तो खुद ही तैयार थे.
लेकिन गिरफतार तो वो तब होते न जब वाकई पुलिस उन्हे गिरफ्तार करने आयी होती.
पुलिस उनको दो तरीको से मारना चाहती थी.
पहला तरीका था कि आग लगाकर भगदड़ मे उनको दम घोटकर या कुचल कर मार दिया जाये.
दूसरा तरीका था कि स्वामी रामदेव के समर्थको को उग्र उत्तेजित कर दिया जाये.
जिससे पुलिस गोलियाँ चलाये और उसी मे एक गोली रामदेव को लग जाये.
लेकिन बाबा रामदेव ने पुलिस की दोनो गन्दी रणनीतियो पर पानी फेर दिया .
———————–
इंडिया टी वी के वरिष्ठ
पत्रकार रजत
शर्मा जो आप की अदालत
के एंकर भी है. उनका ये लेख
कांग्रेस की बाबा रामदेव
के प्रति घिनौनी साजिश
को उजागर करता है.
………….,……………..,…….
4जून को स्वामी रामदेव
ने मुझसे
पूछा था कि क्या ऐसा हो सकता है
कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार
करने की कोशिश करे? मैंने
उनसे कहा कि कोई
भी सरकार इतनी ब़ड़ी
गलती नही करेगी “ आप
शांति से अनशन कर रहे
हैं,आपके हज़ारो समर्थक
मौजूद हैं, चालीस TV
Channels की OB Vans
वहां खड़ी हैं.” .. मैंने उनसे
कहा था
'सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह
ऐसा कभी नहीं होने
देंगे'…मेरा विश्वास
था कि कांग्रेस ने
Emergencyके अनुभव से
सबक सीखा है…पिछले 7
साल के शासन में
सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह ने
ऐसा कोई काम
नहीं किया जिससे ये
लगा हो कि वो पुलिस
और लाठी के बल पर
अपनी सत्ता की ताकत
दिखाने का कोशिश करेंगे
लेकिन कुछ ही घंटे बाद
सरकार ने मुझे गलत
साबित कर दिया..मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि आप निश्चिंत
होकर सोइये… देर रात
मुझे इंडिया टीवी के
Newsroomसे फोन आया :
"सर, रामलीला मैदान में
पुलिस ने धावा बोल
दिया है"…फिर उस रात
टी वी पर जो कुछ
देखा,आंखों पर विश्वास
नहीं हुआ कोई ऐसा कैसे कर
सकता है…कैमरों और
रिपोर्ट्स की आंखों के
सामने पुलिस ने
लाठियां चलाईं, आंसू गैस के
गोले छोड़े, बूढ़े और
बच्चों को पीटा,
महिलाओं के कपड़े फाड़
दिए…मैंने स्वामी रामदेव
को अपने सहयोगी के कंधे
पर बैठकर बार-बार
पुलिस से ये कहते सुना-
"यहां लोगों को मत मारो
, मैं गिरफ्तारी देने
को तैयार हूं"…लेकिन जब
सरकार पांच हजा़र
की पुलिस फोर्स को
कहीं भेजती है
तो वो फोर्स ऐसी बातें
सुनने के लिए तैयार
नहीं होती…पुलिस
वालों की Training
डंडा चलाने के लिए
होती है, आंसू गैस छोड़ने
और गोली चलाने के लिए
होती है पुलिस ये
नही समझती कि जो लोग
वहां सो रहे हैं वो दिनभर
के भूखे हैं, अगर
वहां मौजूद भीड़ उग्र
हो जाती है तो पुलिस
गोली भी चला देती
…वो भगवान का शुक्र है
कि स्वामी रामदेव के
Followersमें ज्यादातर
बूढ़े, महिलाएं और बच्चे थे
या फिर उनके चुने साधक थे
जिनकीTraining उग्र
होने की नहीं है
जब दिन में
स्वामी रामदेव ने मुझे
फोन
किया था तो उन्होंने
कहा था- कि किसी ने
उन्हें पक्की खबर दी है कि
''आधी रात
को हजारों पुलिसवाले
शिविर को खाली कराने
की कोशिश करेंगे'' और ये
भी कहा कि ''पुलिस
गोली चलाकर या आग
लगाकर उन्हें मार
भी सकती है''…मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि
''ऐसा नहीं हो सकता-
हजारों पुलिस शिविर में
घुसे ये कभी नहीं होगा और
आप को मारने की तो बात
कोई सपने में सोच
भी नहीं सकता''…रात एक
बजे से सुबह पांच बजे तक
टी वी पर पुलिस
का तांडव देखते हुए मैं
यही सोचता रहा कि रामदेव
कितने सही थे और मैं
कितना गलत…ये मुझे बाद
में समझ
आया कि स्वामी रामदेव
ने महिला के कपड़े पहनकर
भागने की कोशिश
क्यों की…उन्होंने
सोचा जब पुलिस घुसने
की बात सही है
लाठियां चलाने की बात
सही है तोEncounter
की बात भी सही होगी
…मैं कांग्रेस
को अनुभवी नेताओं
की पार्टी मानता हूं…मेरी हमेशा मान्यता रही है
कि कांग्रेस को शासन
करना आता है…लेकिन 5
जून की रात
की बर्बरता ने मुझे हैरान
कर दिया…समझ में नहीं आ
रहा कि आखिर सरकार ने
ये किया क्यों?…उससे
भी बड़ा सवाल ये
उठा कि कांग्रेस
को या सरकार को इससे
मिला क्या?
अब तो जनता को एक जुट होना पडेगा।
फूट डालो और राज करो । जयप्रकाश के समय में भी यही था और अण्णा के समय में भी यही है । कुल मिलाकर जख्म बढता जा रहा है ज्यों-ज्यों दवा हो रही है । नतीजा-
मेरा ब्लागिंग में नहीं लागे दिल…
हताशा से कुछ हासिल नहीं होगा। जो कुछ चल रहा है वह सागर मंथन नहीं जिस से अमृत निकल पड़े। पर लस्सी का लोटा ही समझो। अमृत नहीं तो लस्सी तो निकलेगी। वह पर्याप्त नहीं तो भी अभी गर्मी के मौसम में राहत तो प्रदान करेगी ही।
प्रतिभाएँ या उन का समूह व्यवस्था नहीं बदलते। व्यवस्था उन लोगों के संगठित समूह बदलते हैं जिन लोगों का सब कुछ व्यवस्था छीन चुकी होती है और जिन के पास खोने को कुछ भी नहीं होता है। हाँ प्रतिभाएँ ऐसे लोगों को संगठित होने में और नेतृत्व प्रदान करने में सहायक हो सकती हैं। यह भी हो रहा है लेकिन ग्राउंड लेवल पर, दिखता नहीं है। मीडिया भी दिखाता नहीं है।
आसपास का माहोल देख भाव तो यही आते हैं मन में पर फिर हाथ पर हाथ रख बैठने से भी क्या होगा.कम से कम जो अपने वश में है वो तो किया ही जा सकता है यानि लेखन .
सब अपनी अपनी कोशिश मे लगे हैं पहले भी भारत इसी तरह बिखरा हुआ था जब अंग्रेज राज्य था और आज भी …………तब भी नरम दल और गरम दल थे आज भी हैं…………अन्ना और रामदेव्…………आज़ादी की कीमत चुकानी पडी थी हमे अब देखते है कौन चुकाता है कीमत वैसे आम जनता तो चुका ही रही है …………कल बाहर वाले से लडाई थी आज अपनो से है और ये इतनी आसान नही है इसलिये कदम सोच समझकर रखने होंगे और सबको सम्मिलित प्रयास करने होंगे और इस मुद्दे को दबने नही देना होगा तब तो कुछ हो सकता है वरना तो जैसा कल था वैसा ही आज रहेगा और आने वाला कल भी…………अब तो जनता को एक जुट होना पडेगा।
सब अपनी अपनी कोशिश मे लगे हैं पहले भी भारत इसी तरह बिखरा हुआ था जब अंग्रेज राज्य था और आज भी …………तब भी नरम दल और गरम दल थे आज भी हैं…………अन्ना और रामदेव्…………आज़ादी की कीमत चुकानी पडी थी हमे अब देखते है कौन चुकाता है कीमत वैसे आम जनता तो चुका ही रही है …………कल बाहर वाले से लडाई थी आज अपनो से है और ये इतनी आसान नही है इसलिये कदम सोच समझकर रखने होंगे और सबको सम्मिलित प्रयास करने होंगे और इस मुद्दे को दबने नही देना होगा तब तो कुछ हो सकता है वरना तो जैसा कल था वैसा ही आज रहेगा और आने वाला कल भी…………अब तो जनता को एक जुट होना पडेगा।
विरक्ति एक स्वाभाविक प्रक्रिया है फिर चाहे वो ब्लोगिंग से हो या किसी और से…जब आप किसी के बारे में बारे में अधिक सोचते हैं या उसके साथ अधिक रहते हैं तो धीरे धीरे ये आकर्षण विरक्ति में परिवर्तित हो जाता है इसके लिए बदलाव लाने की पैरवी की जाती है…आप भी ब्लॉग्गिंग में बदलाव लायें थोड़े दिन इसे आराम दें या फिर दुसरे हलके फुल्के विषय चुने…
आपने जो कहा वो बिलकुल सही है…हमारे पास और प्रभावशाली नेता नहीं है…जनता मृगतृष्णा के पीछे भागती है…ये सरकार अगर निकम्मी होती तो पिछली सरकार को गिरा कर आती ही क्यूँ ???. सत्ता पक्ष के लोग और विपक्षी आपस में खो खो खेलते हैं एक दूसरे की जगह अदला बदली कर लेते हैं क्यूँ की दोनों को सिर्फ लूटना है और लुटती जनता है जो लुटने में अभ्यस्त हो चुकी है जब एक से लुटते लुटते बोर हो जाती है तो दूसरे को मौका देती है…इस आन्दोलन से सरकार गिर भी गयी तो येही सरकार सत्ता में आई पार्टी के विरुद्ध कोई ऐसा मुद्दा ले आएगी जिस से उसे भी एक दिन गिरना पड़ेगा…ये खेल है बाबू…चलता आया है…चलता रहेगा…
नीरज
इस दुनिया में कैसा भी ईमानदार और देश के लिए कुछ करने का जज्बा रखने वाले व्यक्ति हो यदि वह राजनीति की चौखट पर पैर रखता है तो उस पर अनेक प्रकार के आरोप लगाकर यह सिद्ध किया जाता है कि वह भी बेईमान है। इसी का परिणाम है कि आज हम बड़ी आसानी से सभी को बेईमान घोषित कर देते हैं। आज की राजनीति में न जाने कितने विद्वान और ईमानदार लोग हैं लेकिन उन सभी को काला चोर घोषित कर रखा है। इसलिए कलाम साहब हो या श्रीधरन जी, एक बार आकर तो देखे इस कालकोठरी में, कितने अपमान सहने पड़ते हैं? इस देश में राम और कृष्ण को नहीं छोड़ा गया तो ये क्या बचेंगे? आज मीडिया यदि अपना कर्तव्य का निर्वहन करे और अनावश्यक किसी को भी बदनाम ना करे तो आज भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है इस देश में। लेकिन हमारी आदत हो गयी है कि हम सत्ता के हाँ में हाँ मिलाने के लिए सभी को बेईमान घोषित करते हैं।
.वैसे एक बात बताऊँ, खुशदीप… अपनी भी लगभग यही हालत है ।
चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाओ तो अनायास अज़ीब सी हताशा छा जाती है… भाव यही होते हैं ’ भाड़ में जाये सबकुछ.. हम तो मुँह ढक कर सोते हैं ।
बस यही ’ हम तो मुँह ढक कर सोते हैं ’ की भावना इस देश को खाये जा रही है । अधिक सामाजिक मुद्दों पर लोग इतने सहिष्णु हो गये हैं कि कोई कुरीति कोई अनाचार हमारे लिये एक खबर मात्र बन कर रह जाती है, इसके उलट धार्मिक मुद्दों पर हमारी असहिष्णुता अव्वल दरज़े की है । किसी ऎरे गैरे का भगवा, और अलाने फलाने की दाढ़ी हमें श्रद्धावनत कर देती है ।
अफ़सोस तो तब होता है जब बुद्धिजीवी समाज जागरूकता में पहल करने के बजाये ’ क्या कहा जाये, अब किया ही क्या जा सकता है ’ जैसे ज़ुमलों में घुसे रहना पसँद करता है । हमारी तार्किक दृष्टि जैसे कुँद हो गयी हो । उनमें मनन का स्पष्ट अभाव है, हाल के वर्षों में मीडिया ने हम सबको तमाशबीन बना दिया है । जैसे घरों में बैठे बैठे चैनलों को कोट करते रहने में ही समग्र बुद्धिमता समाहित हो ।
आज देश की ज़रूरत यह नहीं है कि कहीं से एक नेता अवतरित होकर अपने पीछे जनसमुदाय खड़ा करे, बल्कि ज़रूरत यह है कि जनसमुदाय स्वयँ खड़ा होकर अपने मध्य से एक नेतृत्व खड़ा करे ।
स्वतँत्र विधा होने के नाते ब्लॉगिंग ऎसी बहसों को जन्म दे सकती है, कमोबेश दे भी रही है…. बशर्ते आप इसमें लगे रहें, बहसों में भागीदारी करते रहें । दूसरे से अपेक्षा करते रहना या पूरे परिदृश्य से पलायन कर जाना कोई हल नहीं है ।
नेक और भली बात कहना भी नेकी है । आप ऐसा कर रहे हैं , आप ऐसा ही करते रहें । हरेक आदमी अपने मक़ाम पर अपनी योग्यता के अनुरूप ही उत्तरदायी है । निष्पक्ष होकर विचार करें और निर्भीक होकर वही लिखें जिसे आप अपनी आत्मा में सत्य मानते हैं । इससे एक सामूहिक प्रेरणा मिलेगी पूरे समूह को । यह एक बड़ा काम होगा ।
विचार और लेखन में सत्य और न्याय का चलन बढ़ेगा तो इसका दायरा भी बढ़ेगा । जैसे जैसे यह दायरा बढ़ेगा वैसे वैसे समस्याओं का दायरा घटता चला जाएगा ।
जिस 'एक आदमी' की तलाश है वह अपनी जगह आप हैं और अपनी जगह मैं । यह भाव हम सब में जग जाए तो फिर एक के बजाय हज़ार आदमी मिल जाएँगे । अपने धर्म की भविष्यवाणियों का जिक्र मैं यहाँ करूँगा नहीं वर्ना वहाँ तो साफ लिखा है कि अब भारत का जलवा आने ही वाला है और उसमें तो यह भी लिखा है कि अब कितने साल बचे रह गए हैं । इसीलिए हम तो संतुष्ट हैं जी और आपकी तसल्ली के लिए ही संकेत मात्र लिख भी दिया ।
बधाई और शुभकामनाएँ !
"अन्ना की लकीर छोटी करने के लिये सरकार ने बाबा रामदेव की लकीर बड़ी करनी चाही "
बिल्ली को हटाने के लिये कोई शेर पालने की मूर्खता नही करता.
पहले आप पूरी जानकारिया हासिल करे.
मेरा भारत महान तो है ही….
Br.Khusdeep ji
AAp ka kaam hai likhana hamara kaam hai padhana……
jai Baba Banars…….
विरक्ति अपनी जगह है….पर लेखन जारी रखिए….अपने पाठकों के लिए ही सही
हंसी के फव्वारे
सरकार को बाबा के धन की जाँ च्करनी चाहिओये ताकि इन पाखँडी संत बाबाओं से लोगों का मोह टूटे। sehmati
blog jagat mae muddae par koi behas nahin ho saktee
is sae achcha manch koi nahi haen par hindi bloggar behas nahin kartey networking kartey haen
is liyae swabhavik haen ki itnae alp samay mae hi is vidha mae logo ko saturation mehsoos hota haen
अच्छी पोस्ट रही आज की,
सहमत हूँ आपसे !
माफ़ कीजियेगा … पर हम भी आदत से मजबूर है … मुद्दे तो दिखते ही नहीं हम लोगो को … वैसे भी आजकल मिडिया मुद्दों की नहीं लोगो की बात करता है … " दिग्गी ने यह कहा … मनमोहन वो बोले … रामदेव ये बोलेंगे … अन्ना की कोई सुनता नहीं … " अब आप ही बताइए … इन सब में मुद्दा कहाँ गया … ??? मिडिया और जनता दोनों को मसालेदार खबरों का चस्का लगा हुआ है … कि मैं झूट बोलिया … ???
Ham Sab dusron ka charitra badal dena chahte hain aur khud ko sabse adhik charitravaan samajhte hain… Matlab khud ko badalne ka to sawaal hi nahi hai…
ज़रूरत है हमें अच्छे नेतृत्व की…टॉप लेवल पर ईमानदार और एक्सपर्ट लोगों का पैनल निगरानी करे और छोटे स्तर पर तस्वीर को बदलने वाली लड़ाइयां हम हर गली मोहल्ले, गांव कस्बे में लड़े, तब ही सूरत में बदलाव सोचा जा सकता है
आप भी सपना दिखाने लगे खुशदीप भाई…
bilkul tapchik mode me apni baten kah jate hain………aap.
blogging chootni nahi chahiye….jara
sochiye hum jaison ka kya hoga…….
pranam.
अरे भाई लोगों क्यों मेरी ब्लॉगिंगछोड़ू की छवि बना रहे हैं…
मैं तो बस फ्रीक्वेंसी घटाता जा रहा हूं…
मेरे से ज्यादा मुद्दे महत्वपूर्ण है, इसलिए उस पर ज़्यादा से ज़्यादा विचार रखिए…
जय हिंद…
आदत पड़ गई है ब्लोगिंग की
देश की तस्वीर बदलने के लिए पहले कुछ ऐसे नाम तलाश करने चाहिए जिनका जीवन खुली किताब रहा है…ईमानदारी का रिकार्ड पूरी तरह बेदाग रहा है…पीपुल्स प्रेज़ीडेंट डॉ अब्दुल कलाम, मेट्रोमैन ई श्रीधरन जैसे दस भी आदमी मिल जाएं तो उनकी सलाह लेकर पूरे देश में जनमत खड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए.
समस्या तो यही है कि अच्छे लोग इस गन्दी राजनिती से खुद को दूर रखे हुये हैं और सरकार जैसे लोग सामने आ रहे हैं। अन्ना जी को भी देश के संविधान और राजनिती की शायद उतनी समझ नही वो भी उतना ही कर रहे हैं जो उनके साथ खडे 4-6 लोग करवा रहे हैं। पता नही लोगों की भी अपनी सोच कब बदलेगी जो सही और गलत की पहचान कर ले। काँग्रेस को अब बाबा से हाथ नही मिलाना चाहिये अगर मिलाया तो उनका जनाधार भी समाप्त हो जायेगा बाबा भले कुछ देर चुप कर जाये लेकिन अन्दर से वो सरकार को उखाड फेंकने मे कसर नही छोडेगा और उसके लिये जायज़ नाजायज़ सब करेगा। धन ऐसे ही आदमी का दिमाग खराब करता है और उस पर भी जब वो मुफ्त मे दान मे मिला हो। सरकार को बाबा के धन की जाँ च्करनी चाहिओये ताकि इन पाखँडी संत बाबाओं से लोगों का मोह टूटे। जो लोग उनके आस पास जमा होते हैं वो अधिकतर उनकी कम्पनिओं के और कारोबार के कर्मचारी होते हैं। आम जनता तो केवल सच जानना चाहती है।
बाकी ब्लागिन्ग से मोह साल दो साल बाद छूटने लगता है मगर इसे छोडे भी नही बनता और जारी रखते भी नही। फिर भी जारी रखें। शुभकामनायें।
हर किसी को एक दो साल मे ब्लागैन्ग
आपको आदत पड़ गई है ब्लोगिंग की सो यह तो भूल ही जाईये कि आप इस को छोड़ सकते है …
बाकी तो सब कुछ हर एक के सामने है ही … क्या कहें … !!
बिलकुल सहमत ..लेकिन वो क्या कह रहे हैं ब्लागिंग में मेरा नहीं लगता मन 🙂
क्या कोई और आ गया है जीवन में ?
लेकिन फिलहाल के राजनीतिक दलों, लोगों और सिस्टम से कोई उम्मीद नहीं.