कुन फाया कुन का रूहानी सुकून…खुशदीप

रणबीर कपूर की नई फिल्म रॉक स्टार की कव्वाली कुन फाया कुन सुनने पर ज़ेहन को बड़ा सुकून देने वाली है…जानने की इच्छा हुई कि कुन फाया कुन का अर्थ क्या है…नेट पर तलाशा तो इसका ये मतलब दिखाई दिया… ‘Be! And it is’

इससे ज़्यादा समझ नहीं आया तो नेट को और खंगाला…हिंदी में एक जगह ही ज़िक्र दिखा-

“अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहते हैं तो इस काम के निस्बत इतना कह देतें हैं कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है”…

(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117)

इससे यही समझ आता है कि कुन फाया कुन दुनिया के बनने से जुड़ा है…गाने की एक पंक्ति भी है…जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, वही था, वही था…कुन फाया कुन को और ज़्यादा अच्छी तरह अरबी के जानकार ही समझा सकते हैं…

खैर अब बात रॉक स्टार की ज़ेहन को सुकून देने वाली इस कव्वाली की…इम्तियाज अली के निर्देशन में बनी इस फिल्म की सबसे बड़ी हाईलाइट ए आर रहमान का दिया संगीत है…रूहानी संगीत रचने में रहमान का कोई सानी नहीं…याद कीजिए…फिल्म जोधा अकबर का ख्वाजा मेरे ख्वाजा, दिल में समा जा, शाहों का शाह तू…अब ऐसा ही जादू रहमान ने कुन फाया कुन में रचा है…इरशाद कामिल के शब्दों को मोहित चौहान के साथ जावेद अली और रहमान ने खुद आवाज दी है…हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर कुछ दिन पहले इम्तियाज अपनी टीम के साथ जियारत करने के लिए पहुंचे तो मोहित चौहान ने वहां खास तौर पर इसे गाया…रणबीर कपूर ने गिटार पर साथ शिरकत की…

अब आप एक बार इसे सुनिए और बताइए सुकून मिला या नहीं…
 

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Khushdeep Sehgal
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बेनामी
बेनामी
4 years ago

बहुत बढ़िया 😊👌

Unknown
3 years ago

ईश्वर निराकार है। अल्लाह निराकार है। वो हमारी कल्पना से परे है ,वो सर्वज्ञ है सब कुछ देखने और सुनने वाला है, न उसे नींद आती है न ऊंघ।
न उसके कोई मां बाप हैं न वो किसी का पति या पिता है और ना उसकी कोई संतान।।। हम उसकी रचना का अंग हैं।।।

तो….. अल्लाह का मुंह नहीं जो उसने मुँह से बोला कि- कुन हो जा !
इंसान को इंसान की तरह समझा दिया गया कि हर काम उसके इशारे पर ही होता है ..अल्लाह को कोई मशक्कत नही करनी पड़ती ,अल्लाह को कोई मुश्किल नहीं कुछ भी काम करने में.. अल्लाह इशारा करता है या कहता है …. काम को कहा जाता है कि कुन ..हो जा …वो हो जाता है ।

इसी तरह जब दुनिया ख़त्म होगी , ज़मीन को इशारा मिलेगा तो वो चटाई की तरह लपेट कर रख जाएगी आसमान खींच लिया जाएगा और पहाड़ रुई की तरह उड़ जाएंगे और जब से दुनिया बनी तब से आख़िर तक के लोगो को उठाया जाएगा ।। सब हिसाब होगा ।।
और उसके लिए ये कुछ मुश्किल नहीं है ।
बस उसका कुन और काम हो जाना है।। चाहे कुछ भी हो।।

Unknown
3 years ago

ईश्वर निराकार है। अल्लाह निराकार है। वो हमारी कल्पना से परे है ,वो सर्वज्ञ है सब कुछ देखने और सुनने वाला है, न उसे नींद आती है न ऊंघ।
न उसके कोई मां बाप हैं न वो किसी का पति या पिता है और ना उसकी कोई संतान।।। हम उसकी रचना का अंग हैं।।।

तो….. अल्लाह का मुंह नहीं जो उसने मुँह से बोला कि- कुन हो जा !
इंसान को इंसान की तरह समझा दिया गया कि हर काम उसके इशारे पर ही होता है ..अल्लाह को कोई मशक्कत नही करनी पड़ती ,अल्लाह को कोई मुश्किल नहीं कुछ भी काम करने में.. अल्लाह इशारा करता है या कहता है …. काम को कहा जाता है कि कुन ..हो जा …वो हो जाता है ।

इसी तरह जब दुनिया ख़त्म होगी , ज़मीन को इशारा मिलेगा तो वो चटाई की तरह लपेट कर रख जाएगी आसमान खींच लिया जाएगा और पहाड़ रुई की तरह उड़ जाएंगे और जब से दुनिया बनी तब से आख़िर तक के लोगो को उठाया जाएगा ।। सब हिसाब होगा ।।
और उसके लिए ये कुछ मुश्किल नहीं है ।
बस उसका कुन और काम हो जाना है।। चाहे कुछ भी हो।।

Unknown
3 years ago

Shukriya iske liye.

Shridhar Tambulwadkar
5 years ago

ये बहोत ही सुंदर आयत है. सनातन धर्म का भी यही उपदेश है. ये जगत के अस्तित्व के लिये कारण है ब्रह्म का संकल्प " एकोहम बहुस्याम". और ख्रिस्ती धर्म में भी कहा है " god said let there be light and there was light"

ये कहने सुनने की बात तो है ही नही और ना किसी धर्म में ऐसा कहा है. ये केवल संकल्प की बात है जिसे समझाने के लिये "खुदा या ईश्वर ने कहा" ऐसे समझाया है.

Unknown
5 years ago

Wah aap ka kya tark hai

बेनामी
बेनामी
13 years ago

जब से यह गाना सुना है "कुन फया कुन" का अर्थ जानना चाहती थी। "thanks" कि मुझे मेरे सवालों का जवाब मिला।

एस एम् मासूम

खुशदीप भाई यह पोस्ट अच्छी लगी. आज कल कमाल का लिख रहे हैं . अर्रे दिवेदी जी कहाँ आप भी कवाली से अल्लाह के हाथ हैं या मुह है जैसे नतीजे पे पहुँचने कि कोशिश करने लगे.मज़ा लें कवाली का . वैसे अल्लाह जो चाहता है बस उसके चाह लेने से हो जाता है. क्या इसमें भी कोई सवाल आता है?

Shah Nawaz
13 years ago

'कुन-फया-कुन' का आपने बिलकुल सही मतलब ढूँढा है… लग रहा है आपने ढूँढने में मेहनत की है. इसका भावार्थ यही है कि ईश्वर जब किसी काम का फैसला करता है तो उसे यही कहता है कि 'हो जा' तो वह हो जाता है.

द्विवेदी जी, साकार या निराकार की अवधारणा की जगह, वह कुरआन में अपने बारे बताता है कि:

Say: He is Allah, the One and Only! Allah, the Eternal, Absolute; He begetteth not nor is He begotten. And there is none like unto Him. [112:1-4]

कहो: "वह अल्लाह यकता (अकेला ) है, अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार) है, न वह जनिता है और न जन्य (अर्थात न वह किसी का बाप / माँ है और न बेटा / बेटी), और न कोई उसका समकक्ष है.

'सूराह इखलास' कुरआन की एक बहुत ही महत्वपूर्ण है सूराह है, क्योंकि यह ईश्वर की अखंडता (Tawhid) और बेनियाज़ / निरपेक्ष / असीमित प्रकृति की पहचान बताती है. इससे पता चलता है कि ईश्वर शाश्वत (अर्थात अनन्त / सार्वकालिक / सनातन) है. अर्थात, वह समय और स्थान की सीमा से परे है. वह (एक मां की तरह बच्चे को) जन्म नहीं देता है और न ही उसे किसी ने जन्म दिया है. और आखिरी श्लोक से पता चलता है कि जिस चीज़ की किसी से तुलना की जा सकती है वह ईश्वर नहीं हो सकता है.

इससे पता चलता है कि वह कुछ बोलने के लिए मुंह की आवश्यकता से परे है, क्योंकि किसी भी कार्य के लिए किसी भी चीज़ का मोहताज नहीं है.

जब उसने दुनिया बनाने का फैसला किया तो कहा 'कुन' अर्थात 'हो जा' और वह 'फया कुन' अर्थात हो गई.

यहाँ यह भी जान लेना ज़रूरी है कि वह हमेशा ही हर एक कार्य को करने की पद्धति बनता है, यह उसका तरीका है, हालाँकि उस पद्धति का वह खुद भी मोहताज नहीं है. जैसे कि बच्चे को पैदा करने के लिए नर और नारी के मिलन को तरीका बनाया और पैदाइईश का समय तय किया, लेकिन वहीँ उसने 'ईसा मसीह' को बिना पिता के पैदा किया और पहले पुरुष को बिना माँ-बाप के पैदा किया. ऐसा इसलिए जिससे कि वह मनुष्यों को यह अहसास दिला सके कि बेनियाज़ है अर्थात संसार को चलाने के लिए पद्धति बनता अवश्य है लेकिन उस पद्धति का मोहताज नहीं है.

और ऐसा भी नहीं है कि इस पृथ्वी से पहले उसने कोई सृष्टि ही नहीं बनाई थी, बल्कि इस पृथ्वी की सृष्टि तो उसकी सृष्टि का छोटा सा अंश भर है.

Rahul Singh
13 years ago

कुन यानि हो जा… अब आ कर ईश्‍वर-अलला नहीं फिल्‍मी गीत याद आ रहा है- वन टू चल शुरू हो जा…

उम्मतें
13 years ago

@ खुशदीप जी,
शुक्रिया की कोई बात नहीं ,मुझे लगा कि आपकी पोस्ट से यह लिंक मैच करती है इसलिए इसका इस्तेमाल होना ही चाहिए !

@ दिनेश राय द्विवेदी जी ,
वास्ते सवाल…'ईश्वर' है भी या कि नहीं 🙂

इस पर बहस से क्या फ़ायदा जबकि आप खुद ही जानते हैं कि उसे इंसानों ने पैदा किया है ! इस लिहाज़ से पैदा करने वाले की सहूलियत के मुताबिक उसके मुंह और ज़ुबान भी ज़रूर होने चाहिए 🙂

वैसे जुबान के एक मायने भाषा भी होता है तो ईश्वर की ज़ुबान का आशय ईश्वर की भाषा भी हो सकता है 🙂

फिर ये किसने कह दिया कि ध्वनियों और शब्दों के उच्चरण के लिए एक नग मुंह और चमड़े की एक अदद जुबान होना ज़रुरी होता है 🙂

इस हिसाब से किसी भी वाद्य यंत्र की कोई भाषा कोई शब्द कोई अर्थ होने ही नहीं चाहिए और ना ही निराकार हवा के साथ कोई भाषाई शाब्दिक ध्वन्यात्मक गठजोड़ हम कभी भी देख पायेंगे 🙂

मसला एक शब्द की उत्पत्ति , उसके अर्थ और प्रचलित सन्दर्भ से जुड़ा हुआ है ! क्या हर सवाल के जबाब का चलन प्रामाणिक इतिहास की शुरुवात से ही हुआ होगा या फिर कुछ सवाल अपने जबाब के लिए अंधकार युग या फिर आख्यानों के समय के मोहताज़ भी होंगे 🙂

Atul Shrivastava
13 years ago

बेहतरीन।
सुफियाना अंदाज…
आभार

दिनेशराय द्विवेदी

मुझे आज पता लगा कि खुदा के मुहँ भी होता है, जिस से वह शब्द बोलता है। मैं तो अब तक उसे निराकार समझता था। खुदा के मुहँ से जब कुन निकला तो किस ने सुना था? सृष्टि तो थी ही नहीं। जब सुनने वाला था ही नहीं तो बोलने की जरूरत भी क्या थी?
हाँ कारकुन वाली बात समझ आती है।
वैसे खुशदीप जी शब्द चर्चा गूगल समूह में आएँ तो अच्छा लगेगा। वहाँ शब्दों पर खूब चर्चाएँ होती हैं।

Khushdeep Sehgal
13 years ago

अली जी लिंक देने का बहुत बहुत शुक्रिया…

लिंक पर जाकर अच्छा लगा कि ब्लॉग का टाइटल ही कुन है…२८ अगस्त २००८ को लिखी इस पोस्ट
में और भी बहुत कुछ है जानने के लिए…छोटी पोस्ट है, इसलिए उसे यहां रिपीट कर रहा हूं…उम्मीद करता हूं, अली
जी मेरी इस गुस्ताखी का बुरा नहीं मानेंगे…

कुन
अव्वल तो यह कि कई दिनों तक निजी /पारिवारिक कारणों से ब्लाग तक पहुंचना सम्भव नही हुआ और दूसरा यह कि टेलीफ़ोन्स और इंटरनेट पर ईश्वर तक का ज़ोर नहीं चलता तो हम किस खेत की मूली होते ! कहने का मतलब यह है कि पहले ख़ुद की समस्याएं और बाद में इन्टरनेट सर्विसेस ने बेबस कर दिया !

अब जब ब्लाग पर पहुंचे तो 'कुन के लिए ' और 'खैरियत तो है ' ने अहसास दिलाया कि कुल १८ दिनों का नागा हो चुका है ! इसलिए 'खैर' की दुआओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !

यह जानकर खुशी हुई कि 'उम्मतें ' हैरान- ओ – परेशानकुन हैं !

आपके लेख और टिप्पणी पर मेरा रिएक्शन यह है कि जिस तरह से आप परेशानकुन हैं उसी तर्ज पर एक लफ्ज़ है 'कारकुन' यानि कि काम करने वाला !
मतलब यह है कि 'कुन' पर्शियन (फ़ारसी भाषा के ) प्रत्यय के रूप में -'करने वाला' है और अरबी भाषा में 'कुन ' क्रिया है जिसका मतलब है 'हो जा' !
आपको स्मरण होगा कि 'कुन' यानि कि 'हो जा ' शब्द ईश्वर की जुबान से निकले थे , जिनसे सृष्टि की रचना हुई !

मैंने ब्लाग का नाम चुनते समय अरबी शब्द 'कुन' को ख्याल में रखा था उम्मीद है एक 'रचनाकार' के रूप में मेरी भावनाओं को आप समझ गए होंगे !

जय हिंद..

प्रवीण पाण्डेय

जी मिला..

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