कल गिरिजेश राव जी ने पोस्ट लिखी थी…एक ठो कुत्ता रहा…
लघुकथा गिरिजेश जी की विशिष्ट शैली में जबरदस्त थी…इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अचानक ही कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का सुनाया एक किस्सा याद आ गया…
एक स्मार्ट सी बिच (हिंदी में जो शब्द है उसे लिखने में असहज महसूस कर रहा हूं, इसलिए नहीं लिख रहा), कैटवॉक सरीखी चाल में इतराती हुई सड़क पर चली जा रही थी..बाल-वाल शैंपू किए हुए, बिल्कुल टिपटॉप….अब उससे दोस्ती करने की चाह में शोहदे टाइप के कई सारे कुत्ते भी पीछे-पीछे चले जा रहे थे…कि शायद कभी उन पर भी नज़रे-इनायत हो जाए…वैसे ऐसे मनचले हर शहर में आपको देखने को मिल जाएंगे…
इन कुत्तों की पलटन के सबसे पीछे एक लंगड़ा कुत्ता भी था…
बाकी तो स्पीड से चल रहे थे, लंगड़ा कुत्ता बेचारा अपनी चाल से मुश्किल से खिसकते हुए चला जा रहा था…ये देखकर लवगुरु टाइप ताऊ को तरस आ गया…ताऊ ने रामपुरिया लठ्ठ निकाल कर स्पीड से चल रहे सभी कुत्तों पर बरसा दिया…सब कूं-कूं करते भाग गए…बस बिच और लंगड़ा कुत्ता ही रह गए…ताऊ ने लंगड़े कुत्ते से कहा…जा, कर ले दोस्ती…तू भी क्या याद करेगा कि किस रईस से पाला पड़ा था…लंगड़ा कुत्ता भला ताऊ का एहसान कैसे भूल सकता था…खैर वो दिन तो गुज़र गया…
अगले दिन फिर वही नज़ारा…आगे-आगे बिच…पीछे पीछे कुत्तों की पलटन…सबसे पीछे लंगड़ाते हुए वही कल वाला हीरो…अब ताऊ के सामने से ये कारवां गुज़रा तो, लंगड़ा कुत्ता फिर हसरत भरी नज़रों से ताऊ को देखने लगा…साथ ही जीभ निकाल-निकाल कर और सिर से बार-बार ताऊ की ओर इशारे करने लगा…मानो हाथ जोड़कर कह रहा हो कि इन आगे वाले कुत्तों की कल की तरह ही फिर ख़बर लो…जिससे उसे मैदान साफ़ होने पर दोस्ती आगे बढ़ाने का मौका मिल सके…
ये देखकर ताऊ ने फिर अपना रामपुरिया लठ्ठ निकाला…लंगड़ा कुत्ता खुश…अब आएगा मज़ा, फिर भागेंगे ये अगले वाले सारे कु्त्ते…
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लेकिन ये क्या…ताऊ ने आकर पूरी ताकत से लठ्ठ लंगड़े कुत्ते के ही दे मारा…साथ ही बोला…साले, कुत्ते की औलाद, मुझे समझ क्या रखा है बे…
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गज़ब…:-)
नीरज
वा वा मजा आ गया…
🙂
हा हा!! ताऊ को क्या समझ रखा है…..:)
बहुत सही पकडा लंगडे को.:) मान गये!
रामराम.
हा हा हा…………इसमे कहने को क्या बचा है।
Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha Ha.
Sachumch ………………..
Maja aa gaya.
खुशदीप जी,
अच्छा घेरा है, पहले सभी कुत्तों को भी और फिर लंगडे को भी।
हा हा ।
हंस लूँ फिर आती हूँ ये ताऊ भी ना क्या कहें—- जहाँ देखो अपनी लठ्ठ लिये घूमते रहते हैं । हं सो और हंसाओ आशीर्वाद।
hum to man hi man hans liye …… jor se hasenge
to log irshya karne na lag jaenge……..
pranam.
इसीलिए तो कहते हैं कि मदद मांगने के लिए उठे हाथों को मत थामो, उन्हें स्वयं की मदद स्वयं ही करने दो, आत्मनिर्भर बनने दो।
aadmi me sabra nahi hota bahut jaldi khud ko dalaal samajh leta hai….
🙂
अब शायद अगली कुत्ता पोस्ट मेरी हो -सतीश सक्सेना जी को टाईटल भी बता रखा है –
श्वान विद्वेषी का प्रवेश वर्जित है ….
"दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती ;
खैरात में कभी इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती !"
जय हिंद !!
कुत्ते कि औलाद..
मज़ा आया भई
आदमी और कुत्ता. आदमी या कुत्ता.
@साले, कुत्ते की औलाद, मुझे समझ क्या रखा है बे…
साले कुत्ते भी क्या याद रखेगे?
हे राम इस ताऊ ने तो पाप कर दिया, बेचारा लगडां कुता…
अब तो दूसरी पोस्ट भी पढनी पड़ेगी …i like ur humor 🙂
@सतीश भाई,
मिर्ची सुनने वाले हर हाल में खुश…
जय हिंद…
आजकल कुत्ते और बिच के मज़े हैं …
गिरिजेश भाई के साथ साथ अब आप भी :-))
उस्ताद जी,
आपकी इस हंसी पर ज़ंजीर फिल्म के अमिताभ की हंसी याद आ गई…फिर प्राण साहब गाना गाते हैं…
ओए कुरबान, तेरा ममनून हूं, तूने निभाया याराना
उस्ताद के हंसते ही महफ़िल में हंसी छा गई…
छा गई…
यारी है ईमान यार मेरी ज़िंदगी…
जय हिंद…
@संजय भास्कर भाई,
शुक्र है आपने लंगड़े कुत्ते के मर्म को समझा, तभी इसे मार्मिक कहानी बताया…
जय हिंद…
पोस्ट मूल्यांकन फिर कभी
हा…हा…हा…हा…हा…हा…हा
बरखुदार पहले हंसने तो दो खुलकर
आप भी बस दुनिया में सिगल पीस हो यूनिक 🙂
चाहें तो रईस की जगह "दिलदार" कर लें
बहुत ही मार्मिक कथा और मजेदार भी
एक और नया कुत्ता अच्छी लघु कथा। शुभकामनायें।
bahut sunder seekh hai khus deep ji.
jo kuch karna hai apne dam par karo.