काश ये बच्चा इस देश का पीएम बने…खुशदीप

कुमार राज (या राजेश चौरसिया)…शायद आज आपने इस बच्चे के प्रखर विचारों को मीडिया के ज़रिए जाना होगा। पटना में शुक्रवार को एक कार्यक्रम में ये बच्चा देश की शिक्षा व्यवस्था पर बोल रहा था। मंच पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विराजमान थे। लेकिन कुमार राज की मासूम वाणी के सामने और सब निस्तेज था। इस बच्चे ने सीधी, सरल भाषा में जो कुछ भी कहा, उसी में इस देश की अधिकतर समस्याओं का समाधान छुपा है। कैसे वो आपको इस पोस्ट में आगे बताता हूं, लेकिन पहले इस बच्चे के बारे में थोड़ा और जान लीजिए। 

आरा में पान की दुकान चलाने वाले शैलेंद्र चौरसिया के बेटे कुमार राज ने पूरे देश को आइना दिखाया है। अब देखना है कि देश के कर्णधार इस आइने में झांकते हैं या नहीं। कार्यक्रम में ये बच्चा हाथ में एक तख्ती लिए खड़ा था। जिस पर लिखा था…मुझे भी कुछ कहना है। नीतीश कुमार की बच्चे पर नज़र पढ़ी और मंच पर बुला कर बोलने का मौका दिया। 


बच्चे ने सबसे पहली बात कही- चौरसिया समाज को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री जी को सलाम। फिर अपने चौरसिया समाज से ही सवाल किया कि क्या अति पिछड़ा में शामिल करने से ही चौरसिया समाज का कल्याण हो जाएगा? फिर कहा, नहीं! इससे तो कुछ नौकरियों में प्राथमिकता मिलेगी। क्या चौरसिया समाज अपने बच्चों को इस काबिल बना पाए हैं? क्या आपने कभी अपने गांव के विद्यालय में झांकने की कोशिश की है? यह पता करने की कोशिश की है कि शिक्षक आते हैं कि नहीं, आते हैं तो पढ़ाते हैं कि नहीं और पढ़ाते हैं तो क्या पढ़ाते हैं? गांव के सरकारी स्कूलों की निगरानी करनी होगी, तभी आएगा सुधार। बच्चों को इस लायक बनाइए कि उन्हें आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़े। कुमार राज ने लोगों को आइना दिखाया, ‘आप लोगों ने गांव में ऑर्केस्ट्रा और रासलीला का तो आयोजन कई बार किया। लेकिन बच्चों के मानसिक विकास के लिए बाल महोत्सव का आयोजन कभी नहीं किया।’

कुमार राज ने फिर सवाल किया कि राज्य देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था क्यों है? अमीरों के लिए अलग जिनके बच्चे नामी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और गरीबों के लिए अलग जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। इससे साफ मालूम चलता है कि प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा सरकारी स्कूलों में शिक्षा और सुविधाओं का घोर अभाव है। आखिर क्या कारण है कि कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील यहां तक कि उस स्कूल के शिक्षक भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहते। यही वजह है कि हम बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं।’
कुमार राज ने फिर एक समाधान भी सुझाया-, ‘बड़ा होकर संयोग से इस देश का प्रधानमंत्री बन गया तो सबसे पहले पूरे देश के प्राइवेट स्कूलों को बंद करवा दूंगा ताकि सभी बच्चे सरकारी स्कूलों में एक साथ पढ़े सकें। चाहे वह डॉक्टर का बच्चा हो या किसान का। चाहे वह इंजीनियर का बच्चा हो या मजदूर का। तभी इस देश में समान शिक्षा लागू होगी।’ कुमार राज ने आख़िर में अपनी कही बातों पर निर्णय करने का अधिकार जनता को देते हुए कहा, ‘अब मैं क्या बोलूं। मैंने क्या सही बोला, क्या गलत मुझे नहीं मालूम। इसका निर्णय तो आप लोग कर सकते हैं। एक बात जरूर है कि मेरे दिल में जितनी भी बात थी मैंने कह दी। अब मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं।’

कुमार राज ने जो कहना था, कह दिया। अब उसके कहे अनुसार निर्णय इस देश के कर्णधारों को करना है, शिक्षाविदों को करना है, योजनाकारों को करना है, हम-आप सबको करना है। कैसे करना है। इस विषय पर मैंने पाँच साल पहले 23 जुलाई 2010 को एक पोस्ट लिखी थी। उसी के कुछ अंशों को लेकर फिर कुछ कहना चाहता हूं।

सबसे पहले ये समझना होगा जब तक शिक्षा को देश का सबसे अहम मुद्दा नहीं माना जाएगा, इस देश में बुनियादी रूप से ज़्यादा कुछ नहीं बदलने वाला। मेरी नज़र में भारत की हर बड़ी समस्या (गरीबी, भूख, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, आतंकवाद) का मूल देश की शिक्षा व्यवस्था में ही निहित है। आज इस दिशा में हम सही निवेश करेंगे तो एक-दो दशक बाद उसका सही फल मिलना शुरू होगा। अच्छा यही है कि जितनी जल्दी हम जाग जाएं, उतना ही अच्छा।

अर्थशास्त्रियों का मत कुछ भी हो लेकिन मेरी सोच से शिक्षा से अच्छा निवेश और कोई नहीं हो सकता। इसलिए शिक्षा के लिए जितना ज़्यादा से ज़्यादा हो सके बजट रखा जाना चाहिए। शिक्षा का राष्ट्रीयकरण  हो और देश के हर बच्चे को शिक्षा दिलाने की ज़िम्मेदारी सरकार ले। इसके लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाए। शिक्षा का ये मतलब नहीं कि हर बच्चे को ग्रेजुएट बनाया जाए। ग्रेजुएट बनाने वाली शिक्षा से अधिक ज़रूरी है कि बच्चे को स्वावलम्बी बनाया जाए। देश के शिक्षा के मज़बूत ढांचे के लिए सबसे ठोस कदम होगा कि ऐसा मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया जाए जो बच्चे के पांचवी-छठी क्लास तक आते-आते ही उसका असली पोटेंशियल पहचान लिया जाए। ये देख लिया जाए कि उसकी रूचि क्या है, और किस क्षेत्र में उसके सबसे अधिक सफल होने की संभावनाएं हैं। 

मान लीजिए ये तय हो गया कि किसी बच्चे में अच्छा एथलीट बनने के लिए नैसर्गिक प्रतिभा है, तो फिर उसे उसी दिशा में सारी सुविधाएं देकर अच्छे से अच्छा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। किताबी शिक्षा उसे उतनी ही दी जाए जितनी उसके सामान्य कामकाज के लिए ज़रूरी हो। उसका मुख्य ध्येय अपने खेल में ही अव्वल बनने का होना चाहिए। 

मिडिल-सीनियर स्कूल तक अगर कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पा रहा तो उस पर ज़बर्दस्ती शिक्षा नहीं थोपी जानी चाहिए। इसके बजाए उसे हाथ के हुनर वाला कोई काम सिखाया जाना चाहिए। जिससे कि वो आगे चलकर अपनी और अपने परिवार के लिए आजीविका कमा सके। उच्च शिक्षा सिर्फ  उन्हीं बच्चों को मिलनी चाहिए, जो वाकई इसके लिए सुयोग्य हों। 

बच्चों की छोटी उम्र में स्क्रीनिंग होगी तो उच्च शिक्षा तक कम बच्चे पहुंचेंगे। ऐसे में उन पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा और हमारी यूनिवर्सिटीज़ का स्तर भी सुधरेगा। अभी हमारी कितनी यूनिवर्सिटीज़ या कॉलेज हैं जो पश्चिम जगत के समझ टिकते हैं। अभी जो हमारे देश में व्यवस्था है, उसमें ग्रेजुएशन की डिग्री मिलने तक ही शिक्षा का महत्व माना जाता है। ऐसी खोखली यूनिवर्सिटीज़ और खोखली डिग्रियों से देश का क्या भला होता है, ये आप समझ सकते हैं।

निष्कर्ष
इस पूरे मंथन का मेरी दृष्टि में निष्कर्ष यही है कि बच्चा गरीब का हो या अमीर का, किसी भी जाति  का हो, किसी भी धर्म का हो, सबको बिना किसी भेदभाव एक-समान गुणवत्तापरक शिक्षा मिलनी चाहिए। पूरे देश में एक सिलेबस और शिक्षा का एक जैसा स्तर। अगर किसी बच्चे के माता-पिता आर्थिक दृष्टि से सक्षम हैं तो अपने बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाएं। जो माता-पिता ये खर्च उठाने की स्थिति में नहीं है, वो लिख कर दे दें। ऐसे बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठाए। जब ये बच्चा बढ़ा हो कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तो उसकी शिक्षा पर हुआ खर्च सरकार किस्तों में वापस ले। इससे ये धन फिर गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो सकेगा। शिक्षा को दुरुस्त करने के काम के लिए अगर सरकार को कोई टैक्स भी लगाना हो हिचिकिचाए नहीं। विशेष तौर पर उच्च आय वर्ग वाले लोगों पर। काश देश में कोई तो ऐसा नेता आए जो शिक्षा के महत्व को ठीक से समझे। ये माने कि शिक्षा पर आज किया निवेश देश के कल के सुनहरे भविष्य की नींव होगा।
Khushdeep Sehgal
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