कहां रे हिमालय ऐसा…खुशदीप

दिनेशराय द्विवेदी सर और बीएस पाबला जी ने आ़ज दिल्ली प्रवास के बाद मेरे से विदाई ली…ऐसा कहीं लगा ही नहीं कि हम सब पहली बार मिले …सब कुछ वैसा ही जैसे घर से बाहर आने-जाने पर होता है…कोई कुछ कहे भी नहीं, और दूसरा पहले ही उस भाव को पकड़ ले…टेलीपैथी की तरह…लगे ही नहीं कि भौतिक तौर पर हम सैकड़ो-हज़ार किलोमीटर के फासले पर रहते हैं…मिलने के बाद विदा हो तो इसी वादे के साथ…फिर मिलेंगे…और दिल तो ब्लॉग के ज़रिेए हमेशा मिले रहते ही हैं…ज़मीनी दूरी होने के बावजूद आपस में कोई दूरी नहीं…

लेकिन दूसरी ओर बाल ठाकरे हैं…मराठी-गैर मराठी…मुंबईकर-परप्रांतवासी के नाम पर लोगों को बांटना चाहते हैं…मुंबई में रहने वालों के बीच इतनी दूरी बना देना चाहते हैं कि महानगर अलगाववाद की आग में जलने लगे…इस बार निशाना चुना सचिन तेंदुलकर को…सिर्फ इसलिए कि ये क्यों कह दिया कि मुंबई भारत की है…और सचिन खुद के महाराष्ट्रीय होने पर गर्व करते हैं लेकिन साथ ही अपने को भारतीय बताते हैं…बाल ठाकरे ये कहते हुए भूल गए कि सचिन भारत के हर घर के लाडले हैं…उन पर किसी भी प्रांत का उतना ही हक है जितना महाराष्ट्र का…बाला साहेब महाराष्ट्र और मुंबई भारत में ही हैं और वहां भारत का ही संविधान चलता है…उम्र के इस पड़ाव में विधानसभा चुनाव की करारी हार और भतीजे राज ठाकरे के भितरघात ने आपका संतुलन ज़रूर बिगाड़ दिया है…लेकिन सचिन का नाम लेकर अंगारों से मत खेलो…देश के और हिस्से तो क्या महाराष्ट्र में ही आपको ऐसा विरोध सहना पड़ेगा कि चार दशक से चल रही राजनीति की दुकान पर शटर गिराना पड़ जाएगा…

सचिन के लिए बस सब भारतवासियों की भावना सचिन देव बर्मन के गाए इस गीत से समझ लीजिए…

कहां रे हिमालय ऐसा,
कहां बहता पानी,
यही है वो ज़मीन,
जिसकी दुनिया दीवानी…

प्रेम के पुजारी,
हम है रस के भिखारी,
हम हैं प्रेम के पुजारी हो,
प्रेम के पुजारी…

स्लॉग ओवर

गुल्ली मैथ्स का पेपर देकर घर आया….मक्खन घर पर ही था…

मक्खन ने गुल्ली को बुला कर पूछा… गुल्ली पुतर, पेपर कैसा हुआ…

गुल्ली…डैडी जी एक सवाल गलत हो गया…

मक्खन…एक सवाल गलत हो गया…ओ…चलो पुतर जी…कोई बात नहीं…एक ही तो गलत हुआ है…बाक़ी..

गुल्ली…बाक़ी मैंने किए ही नहीं…

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