कश्मीर में पत्थर उठाने वाले कौन हैं…खुशदीप

कश्मीर पर कल मेरी पोस्ट पर जिन्होंने भी खुल कर अपनी बात रखी, मैं सभी का दिल से आभारी हूं…यहीं तो इस बहस का उद्देश्य है…ये ठीक है कि हमारी बहस से स्थिति में कोई बदलाव नहीं होने वाला…न ही कश्मीर पर कोई नतीजा निकल आएगा…कश्मीर के मौजूदा हालात पर काबू पाने के लिए भारत सरकार का पूरा अमला टॉप प्रॉयरिटी देने के बावजूद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है…तो फिर इस चमत्कार की उम्मीद हमसे कैसे की जा सकती है…ये तो साफ हुआ कि कश्मीर की आग को बुझाने के लिए समाधान को लेकर हम सबकी राय भी बंटी हुई है..ठीक उसी तरह जिस तरह कश्मीर से आर्म्ड फोर्सज़ स्पेशल पावर एक्ट हटाने को लेकर राजनीतिक दल एकमत नहीं है…समझा जा सकता है कि कश्मीर को लेकर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए मनमोहन सरकार को कितने पापड़ बेलने पड़ रहे होंगे…

आज राहुल गांधी ने कोलकाता में कहा कि कश्मीर पर युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को समर्थन तथा हर संभव मदद देने की ज़रूरत है…लेकिन जब सवाल आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को हटाने का आया तो राहुल राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह उसे टाल गए और गेंद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाले में डाल दी…ये कहकर कि कश्मीर पार्ट टाइम नहीं फुल टाइम समस्या है और आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट जैसे जटिल मुद्दों पर राय देने की स्थिति में नहीं हूं…राहुल बाबा, आप इतने अनजान भी न बनिए…ऐसा कोई मुद्दा नहीं जिस पर आप आजकल बोल न रहे हों…फिर जो मुद्दा इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है, उसे क्यों पीएम का नाम लेकर खूबसूरती से टाल गए…

अभी तक मनमोहन सरकार ने कश्मीर पर एक ही बड़ा फैसला किया है…सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर भेजने का…संभवत रविवार तक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय दौरे पर जाएगा…एक दिन ये प्रतिनिधिमंडल कश्मीर और एक दिन जम्मू में रहेगा…अब सिर्फ दो दिन में कैसे जम्मू-कश्मीर के हर वर्ग के लोगों तक पहुंच कर कोई निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा, ये अपने आप में सोचने वाली बात है…

चलिए अब मैं कल की पोस्ट के पहले सवाल को उठाता हूं…आप सोच कर देखें कि आप आम कश्मीरी नागरिक है, जो धरती की जन्नत पर रहते हुए जेहन्नुम की आग को झेल रहा है…आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है…दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है…और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है…इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए…

 
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है…उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है…कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है…रोना यहां भी गरीब का ही है...उसी का बच्चा निठल्ला बैठे होने की वजह से अलगाववादियों के झांसे में आकर पत्थर उठा लेता है और गला फाड़ कर आज़ादी-आज़ादी चिल्लाने लगता है…इस खेल के लिए उसे बाकायदा पैसे भी मिलते हैं…ये पैसा सरहद पार से ही अलगाववादियों में अपने गुर्गों तक पहुंचाया जाता है…अब ऐसे बच्चों के बारे में आप क्या कहते हैं…इन्हें सही तालीम के ज़रिए देश की मुख्य धारा में लाया जाए या इन्हें भी कल का हार्डकोर टेररिस्ट बनने के लिए हालात के भरोसे छोड़ दिया जाए…