कलाम से सीखो शाहरुख़

करीब 32 साल पहले देव आनंद की फिल्म आई थी- देस परदेस. उस में टीना मुनीम भारत से लन्दन पहुँचती है, वेस्टर्न ड्रेस पहनने में शर्मा रही होती है तो देव आनंद समझाने के लिए गाते है- अरे जैसा देस वैसा भेस, फिर क्या डरना.

शाहरुख़ खान का भी आजकल एक पैर अमेरिका में और दूसरा भारत में होता है. अपनी फिल्म के अर्थ-शास्त्र के लिए शाहरुख़ की पहली चिंता अब झुमरी तलैया के दर्शक नहीं डॉलर की बरसात करने वाले एनआरआई, ओवरसीज़ मार्केट या मल्टी-प्लेक्स की मोटी टिकट लेने वाले दर्शक होते हैं. ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग शाहरुख़ अमेरिका में ही करना पसंद करते हैं. रहन-सहन, बोल-चाल में भी शाहरुख़ भारतीय कम वेस्टर्न स्टार की तरह ही ज्यादा नज़र आते हैं.

बादशाह की तर्ज़ पर वो अपना मुकाबला भी किसी इंडियन स्टार से नहीं हॉलीवुड के टॉम क्रूज़ से मानते है. कभी दिल्ली के राजिंदर नगर में किराये के मकानमें बचपन गुजारने वाले शाहरुख़ अब दुनिया के हर बड़े शहर में अपने परिवार के लिए आशियाना बनाना चाहते हैं. लेकिन जब शाहरुख़ खान की नेवार्क हवाई अड्डे पर तलाशी होती है तो वो तमतमा जाते हैं ऐसा नसीब भला हम कितने भारतीयों को हासिल है.

कलाम साहिब के अपमान के मामले में भी देश को जानने में दो महीने का वक़्त लग गया था, लेकिन शाहरुख़ की तलाशी के चंद घंटे बाद ही मानो भूचाल आ गया . बलिहारी मीडिया आपके, जिसके लिए शाहरुख़ के अपमान से बढ़िया चारा और क्या हो सकता था. शाहरुख़ को सिर्फ भारत का ही नहीं ग्लोबल आइकन बताया जाने लगा. भला कोई यह बताये कि शाहरुख़ ने फिल्मों या IPL की एक टीम का मालिक होने के अलावा और कौन सा तीर मारा है जिससे कि उन्हें देश के नौनिहाल अपना रोल मॉडल माने.

शाहरुख़ आज बॉलीवुड के सरताज हैं, कल कोई और होगा, जैसे कि शाहरुख़ से पहले अमिताभ, राजेश खन्ना थे, लेकिन कलाम वो हस्ती हैं जिन्होंने मिसाइल-मेन के नाते देश की सुरक्षा को धार दी, राष्ट्रपति पद पर रहते हुए देश को 2020 तक विकसित होने का विज़न दिया. कभी अपने बारे में नहीं बस देश और देशवासिओं की बेहतरी के बारे में ही सोचा.ऐसे होते हैं नेशनल हीरो जिन पर तारीख सदिओं-सदिओं गर्व करती हैं, फिर भी निर्मलता इतनी कि अपने देश में ही तलाशी का कड़वा घूँट पीने के बाद भी जुबान से सी तक नहीं की. दूसरे देश के नियमों को सम्मान देते हुए मौजे तक उतार कर तलाशी दे दी और बात का बतंगड़ ना बने इसलिए सरकार को भी बताने से परहेज़ किया. किसी ने सच ही कहा है कि जिस डाली को जितना फल लगता है वो उतना ही झुकती है.
लेकिन शाहरुख़ की सोच अपने लिए जिए तो क्या जिए वाली नहीं बल्कि ये दिल मांगे मोर वाली है.

किस्मत के ऐसे धनी कि संकट को भी भुनाने का पूरा पूरा मौका मिल जाता है. कौन जाने एक रूटीन कारवाई को ही तिल का ताड़ बना दिया हो, आखिर सखा करन जोहर के साथ फिल्म…माय नेम इज खान..की मार्केटिंग की सारी रणनीति ही अमेरिका में ही जो तय की जा रही है. अगर ये सच है तो मान गए शाहरुख, आपके प्रोफेशनल सेंस को. ख़ान नाम जुड़ा होने की वजह से नेवार्क हवाई अड्डे पर तलाशी. यानि नस्ली भेदभाव.आपकी आने वाली फिल्म का प्लाट भी तो यही है. याद कीजिए बिग ब्रदर का जेड गुडी-शिल्पा शेट्टी विवाद. शिल्पा एक ही झटके में ब्रिटेन मे शोहरत के सातवें आसमान पर पहुँच गयीं. शाहरुख़, दुनिया में भारतीय कहीं भी रहते हो पब्लिसिटी के मोहताज़ बेशक ना हो, लेकिन वो अब अपना दायरा गैर-भारतीयों में भी बढाना चाहते हैं. माय नेम इज खान ग्लोबल औडिएंस के लिए अच्छा पैड साबित हो सकती है.

जहाँ तक सवाल अमेरिका में नियमों कि सख्ती का है तो इसी कि बदौलत 9 /11 के बाद वहां नौ साल में एक भी आतंक की बड़ी वारदात नहीं होने दी गयी है. जहाँ सख्ती की ज़रुरत हो वहां सख्ती बरती ही जानी चाहिए. अमेरिका ही क्यों, चीन ने भी HINI फ्लू के मामले में दिखा दिया है कि इस तरह के खतरे से कैसे निपटा जाता है. वहां बाहर से आने वाली किसी भी उडान में कोई भी संदिग्ध दिखा उसे फ़ौरन आइसोलेशन में ले जाया गया, न्यू ओरलेंस के मेयर और उनकी पत्नी तक को नहीं बख्शा गया. कोई राजनयिक पहुँच नहीं. खाने की थाली बस आइसोलेशन रूम के बाहर रख दी जाती थी. नतीजा यह कि HINI के तीन हज़ार केस के बावजूद चीन में एक भी मौत नहीं हुई. कोई बात समाज की भलाई के लिए हो तो तूफ़ान नहीं खडा किया जाना चाहिए. यह बात शाहरुख़ भी समझे और मीडिया भी.

आखिर में एक बात बस और. सचिन तेंदुलकर ने ना जाने कितने सालों से एक NGO के लिए दो सौ बच्चों की पढाई का खर्चा उठाया हुआ है लेकिन NGO की संचालिका से बात की जाये तो वो कुछ भी बताने से कन्नी काटती हैं. क्यों …अगर सचिन को पता चल गया तो वो नाराज़ हो जायेंगे. क्या ऐसे नहीं होने चाहिए आइकन, शाहरुख़.