ऑटिज्म : खास बच्चों के लिए खास केयर…खुशदीप

सोमवार को खास दिन था…विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस…हमारे देश में ऑटिज्म को आम लोगों ने उस वक्त अच्छी तरह जाना जब शाहरुख ख़ान ने माई नेम इज़ ख़ान में इसी बीमारी से शिकार रिज़वान के किरदार को निभाया..सात साल पहले अजय देवगन ने भी फिल्म मैं ऐसा ही हूं  में ऑटिज्म से पीड़ित नायक की भूमिका निभाई थी…संयोग से दो अप्रैल को ही अजय देवगन का जन्मदिन पड़ता है….​
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सबसे पहले ऑटिज्म है क्या, इसे जान लिया जाए….​
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​ये एक ऐसा मस्तिष्क रोग है, जो बच्चों में बोलचाल, क्रिएटिविटी और सामाजिक बर्ताव को नुकसान पहुंचाता है…थोड़ा बड़ा होने पर बच्चा अपनी ही दुनिया  में खोया रहता है, बोलने में दिक्कत महसूस करता है, वार्तालाप को समझ नहीं पाता है, बहुत चुप-चुप रहता है या बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है…​
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​स्थिति कितनी भयावह है, ये इसी बात से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि हर साल एड्स, डायबिटीज और कैंसर से ज़्यादा बच्चे ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं…​ऊपर से ये भी हक़ीक़त है कि किसी भी मेडिकल जांच से इस बीमारी को पकड़ा नहीं जा सकता…बच्चे के जन्म के दो-तीन साल तक तो घरवालों को बीमारी का पता ही नहीं चलता…ऐसे में इन स्थितियों में मां-बाप के लिए सावधान हो जाना बहुत ज़रूरी है…​

1. बच्चा छह महीने का हो जाने पर भी किलकारी न भरे…​
​2. नौ महीने में भी बच्चा मुस्कुराना शुरू न करे…​
​3. एक साल की उम्र में भी किसी बात पर प्रतिक्रिया न दे…​
4. सवा साल का होने पर भी किसी शब्द को न दोहरा पाए…​
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​इस बीमारी का बेशक कोई इलाज नहीं है लेकिन जागरूकता से इसके खिलाफ ज़रूर उठ खड़ा हुआ जा सकता है…कुछ कुछ वैसे ही जैसे शाहरुख ने माई नेम इज़ ख़ान में कर दिखाया था…​
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​दुनिया की बात की जाए या भारत की औसतन हर सौ बच्चों में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है…अमेरिका में हर साल इस बीमारी पर 126 अरब डालर खर्च किए जाते हैं….भारत में पिछले दस साल में ऑटिज्म पीड़ितों की संख्या छह गुणा बढ़ गई है…2003 में अनुमान था कि महज़ बीस लाख लोग इसकी चपेट में है…लेकिन अब ये संख्या 1.36 करोड़ का आंकड़ा छू रही है…लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ऑटिज्म का खतरा चार से पांच गुणा ज़्यादा रहता है…

ये एक ऐसा न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर है जिसमें दिमाग के टेम्पोरल और आकसीपटल एरिया का विकास सामान्य तरीके से नहीं हो पाता..इस कारण व्यक्ति में संचार, सामाजिक संवाद कौशल, भावनाएं और गतिविधियां जैसे खेलना आदि खत्म सी हो जाती है…​
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​​ऑटिज्म के कारण

विशेषज्ञों के मुताबिक इस बीमारी के लिए आनुवांशिक कारण काफ़ी ज़िम्मेदार है…इसके अलावा डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से ​आक्सीजन न मिल पाना…गर्भावस्था में किसी तरह की परेशानी, जिसमें कोई बीमारी, पोषक तत्वों की कमी, किसी दवा का रिएक्शन शामिल है…

उपचार 

बीमारी के स्तर के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है…इलाज के लिए दवाएं और थेरेपी इस्तेमाल में लाई जाती है…इनमें डवलपमेंटल थेरेपी, लैंगेवज थेरपी, सोशल स्किल्स थेरेपी, ​आक्यूपेशनल थेरेपी की जाती है…इनके ज़रिए बच्चों के जीवन और कार्यों की गुणवत्ता में वृद्धि की जाती है…​
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​ध्यान से देखा जाए तो बच्चे के जन्म के छह माह से एक साल के भीतर ही पता चल जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं…ऐसी स्थिति में तुरंत एक्सपर्ट डाक्टर से संपर्क किया जाना चाहिए…क्योंकि वक्त बीतने के साथ बच्चे में जटिलता उतनी ही बढ़ती जाती है…दिल्ली के एम्स में बाल व किशोर मनोचिकित्सक क्लिनिक में  ऑटिज्म  के शिकार बच्चों के लिए शुक्रवार का दिन विशेष रूप से तय किया गया है…


(अमर उजाला में सोमवार को ऑटिज्म पर खास जानकारी देना समाज के प्रति जागरुक पत्रकारिता का उत्कृष्ट उदाहरण है, इसके लिए अखबार की टीम और रिपोर्टर अमलेंदु भूषण खां को विशेष तौर पर साधुवाद…)

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raktambaradurgashatipeeth.com

yah log jada ' pojitiv' hote hai banispat 'samany logo ke ' jay otij'm ' aaistin bhi to ' otistik the ' pata hai apko ' pichle janm ke ' yog_bhrasht' log hi ' o t i s t i k ' hote hai

प्रवीण पाण्डेय

फिल्मों ने ही इस बीमारी के बारे में एक सार्थक सोच दी है।

अनूप शुक्ल

अच्छी जानकारी!

Bhawna Kukreti
13 years ago

autism ke baare me main bhi aur jaan na chahati hoon .

virendra sharma
13 years ago

और हाँ आत्म विमोह आटिज्म पर विस्तृत जानकारी भी है .

virendra sharma
13 years ago

आत्म विमोह के लिए स्ट्रक्चरल एज्युकेशन चाहिए .आत्म विमोहि बच्चों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है .इन्हें एक ही और एक से माहौल ,एक से ही रास्तों से आने जाने की आदर होती है .सेम्नेस ऑफ़ एन -वाय-रन -मेंट .वही खिलौने चाहिए रोज़ बा रोज़ .ये आपको इशारे से ऊंगली उठाके नहीं बुला सकते .आपका हाथ पकड कर उस चीज़ तक ले जायेंगे जो इन्हें चाहिए .मूंग फली ही इन्हें बार बार छील कर दिखाना होगा ,टॉफी का रेपर भी ,मोज़े पहनना उतारना भी .मैंने इसके कई रोगियों का बचपन देखा हुआ है .

महफूज़ अली साहब कुछ जरा ज्यादा ही जज मेंटल हो गएँ हैं . ज़रूरी नहीं है हिंदी पत्रकारिता में सब कुछ दारिद्र्य संसिक्त हो .चिठ्ठाकार भी सारे यकसां नहीं हैं .लोग अच्छा काम कर रहें हैं .मैं पूरे आत्म विशावस से अली साहब को यकीन दिलाता हूँ वह मेरे ब्लॉग आर्काइव्ज़ में आयें और देखें सभी मानसिक विकारों की व्यापक पड़ताल वहां की गई है तकरीबन ४५०० पोस्टों की मार्फ़त वह आयें और समीक्षा करें ताकि हम अपनी कमियाँ सुधार सकें .

डॉ टी एस दराल

यह सही है की ऑटिज्म के बारे में अक्सर डॉक्टर्स को भी पूर्ण ज्ञान नहीं होता . इसीलिए डायग्नोज करने में बड़ी मुश्किल होती है . इसका सही तरह से निदान एक न्यूरोलोजिस्ट या psychiatrist ही कर सकता है . लेकिन हमारे जैसे देश में जहाँ आम रोगों के लिए दवा और सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं , और इसका इलाज भी बहुत महंगा होता है , वहां ऑटिज्म के रोगियों का भविष्य भगवान भरोसे ही होता है . हालाँकि जल्दी निदान होने से इलाज की सम्भावना अच्छी रहती है .

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

मैंने भी वो आर्टिकल देखा था.. और बहुत गुस्सा आया था पढ़ कर… कोई रिसर्च ही नहीं करते लोग …

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

भैया… ऑटिज्म के बारे में बहुत कम जानकारी है लोगों को…. यह ज़्यादातर वक़्त बीतने के साथ क्युर हो जाता है…. और इसके बहुत सारे सिम्पटम्ज़ हैं जो की डीफाइंड नहीं हैं… फिल्म में जो शाहरुख़ और अजय देवगन (जिन्हें मैं नहीं जानता हूँ) ने. … ऑटिज्म को गलत डिफाइन किया है… उनको पालसी डिसआर्डर है जिसे वो यहाँ बिमारियों के नाम सुनकर बोलते रहते हैं…. फिल्म इंडस्ट्री में वैसे भी बहुत कम नौलेजैबल हैं.. डिग्री बहुत हैं… लेकिन नॉलेज नहीं… सब तो हॉलीवुड से सुन देख लेते हैं और कॉपी तैयार है… सब सी.सी.पी. हैं…

चूंकि मैं खुद एक औटीटिस्टीक बच्चा था… और बहुत नोर्मल था… ऑटिज्म को डिफाइन करना बहुत बार डॉक्टरज़ के लिए मुश्किल होता है… इसके बहुत सारे सिम्पटम्ज़ हैं… और ज़्यादातर औटीटिस्टीक बच्चे इंटेलिजेंट ही होते हैं.. ऑटिज्म को सिर्फ बिहेवियरल थेरैपि से ठीक किया जा सकता है.. और यह पूरी तरह से क्युरेबल है.. जो टाइम गुजरने के साथ ठीक होती है.. जनेरैली … यह बाढ़ साल की उम्र तक ठीक हो जाती है… और जिनकी नहीं ठीक होती है… वो पालसी डिसआर्डर होता है… ऑटिज्म के जो कारण भी आपने बताये हैं… वो पालसी डिसआर्डर के ही हैं.. पालसी डिसआर्डर ऑटिज्म से एडवांस है… और क्युरेबल नहीं है.. कंट्रोलेबल है.. ऑटिज्म बच्चे को ज्यादा दबाव में रखने से…कम्पैरीज़न, प्रेशर या फिर घर के खराब माहौल से ज़्यादा होती है.. ऑटिज्म से सलमान खान भी बचपन में पीड़ित था… और उसने एक फिल्म में वही एक्टिंग इसीलिए कर पाया था क्यूंकि उसने उस कैरेक्टर को बचपन में जी चूका था.. अखबार में कोई चीज़ लिखी हुई हो तो ज़रूरी नहीं है की वो सही हो… और वैसे भी हिंदी अखबारों में वही लोग लिखते हैं जो या तो ब्लॉगर है या फिर स्कूल टाइम का नालायक… अगर इतना ही इंटेलिजेंट होता तो एडिटोरियल लिखता … या फिर सिविल सर्वेंट, प्रोफ़ेसर… साइंटिस्ट (इसी टाईप कुछ)आदि होता.. बीमारी की तासीर समझी जाती है.. ना कि कट कॉपी पेस्ट… आप बिना मतलब में साधुवाद देने लगते हैं..

Shah Nawaz
13 years ago

ऑटिज्म पर बहुत ज्यादा जागरूकता की ज़रूरत है….

दिनेशराय द्विवेदी

ऑटिज्म के बारे में जानकारी बहुत न्यून है। लेकिन इतनी जागरूकता तो है कि सामान्य व्यक्ति अपने बच्चे को इन हालातों में चिकित्सक को अवश्य दिखाता है। इस कारण सब से पहले तो चिकित्सकों में इस की जानकारी होना आवश्यक है। दूसरे इस से भी बड़ी बीमारी भारतीय समाज को गरीबी की है। भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या किसी भी बीमारी का पता लगने पर भी जब तक बहुत जरूरी न हो जाए चिकित्सक के पास नहीं जाती। वैकल्पिक साधनों का उपयोग करने में विश्वास करती है। कोशिश करती है कि समस्या चिकित्सक तक पहुँचे बिना समाप्त हो जाए। सरकारी चिकित्सक नर्स आदि के बारे में भी यह धारणा है कि वह भी फीस लिए बिना मरीज को अच्छी तरह नहीं देखता या बीमार पर ध्यान नहीं देता।

Udan Tashtari
13 years ago

अच्छी जानकारी मिली….

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