ऊं..ऊं..मैं नहीं बस…मैं नहीं मानता

आओ…आओ…देखो निशांत ने मेरा नाम चोरी कर लिया…ऊं…ऊं..ऊं..ऊं…मैं नहीं बस…मैं नहीं…मैं नहीं मानता…पहले सारे निशांत को डांटो… कुश-बबली-खुशदीप-अनूप-रचना प्रकरण से उठते सवाल टाइटल देकर अपनी पोस्ट हिट करा ली…मेरे फंडे इस्तेमाल किए और मुझे कुछ भी नहीं दिया…द्विवेदी सर आप पनिश करो इस निशांत को…निर्मला कपिला मैम आप लगाओ… इस निशांत की अक्ल ठिकाने…देखो कितना चालाक है…अपने ब्लॉग पर प्रोफाइल भी नहीं लगा रखा है…लगाया भी होगा तो बस ढूंढते रह जाओगे वाले स्टाइल में…किसी को पता ही नहीं चले निशांत है या निशांतम..
 
ठीक ऐसे ही टीचर्स से दूसरे बच्चों की शिकायत लगाता था जब मैं केजी या फर्स्ट क्लास में था…पहली बात, अब बच्चा तो रहा नहीं…अब तो हालत ये है कि वानप्रस्थ दे दे कर आवाज मुझे हर घड़ी बुलाए…और मै सरकार की तरह सब कुछ सुनकर भी वानप्रस्थ की आवाज़ अनसुनी कर रहा हूं…
 
खैर अब क्या करूं इन निशांतों का…सोच रहा हूं अपने फंडे ओबामा द ग्रेट के पास जाकर व्हाईट हाउस की मार्फत पेटेंट करा लूं…फिर देखूंगा बच्चू… कैसे इस्तेमाल करोगे मेरे नाम और मेरे फंडों का…

अभी तो मेरी हालत व्हॉट एन आइडिया सरजी वाली एड की है…जिसमें डॉक्टर अभिषेक बच्चन बड़ी शान के साथ वॉक एंड टाक, टाक एंड वाक का मंत्र लोगों को देते हैं…और फिर ऐसी स्टेज आती है कि अपने ही क्लीनिक में मक्खियां मारनी पड़ती है…एड में अभिषेक के पास कंपाउडर तो था ये कहने के लिए व्हॉट एन आइडिया सरजी, मेरे पास तो ब्लॉग चलाने के लिए कोई कंपाउडर भी नहीं है….

वैसे निशांत महाराज मेरे आइडियाज़ को लिफ्ट करने में इतने रम गए कि 1 से 5 की गिनती भी भूल गए…वो तो भला हो विवेक रस्तोगी भाई का जिन्होंने निशांत की पोस्ट पर जाकर याद दिलाया..भई 1 से 5 की गिनती में 4 भी कहीं आता है…विवेक जी के ध्यान दिलाने से पहले निशांत तो यही सोच सोच कर फूल के कुप्पा हो रहे थे कि सोचे तो पांच फंडे थे, छठा खुशकर ऊपरवाले ने बोनस की तरह पोस्ट पर लगा दिया….

निशांत जी अभी तो इब्तदाए (पता नहीं ठीक भी लिखा है या नहीं) इश्क है आगे आगे देखिए होता है क्या…वैसे पोस्ट में सिर्फ तड़के से ही काम नहीं चलता…दाल में तड़का लगाया जाए तो ठीक लेकिन अगर सिर्फ तड़के में दाल लगा दी जाएगी तो पढ़ने वालों का जो होगा सो होगा, अपना हाजमा ज़रूर बिगड़ जाएगा…

आखिर में हंसते रहो, हंसाते रहो वाले राजीव तनेजा भाई की आपकी पोस्ट पर आई टिप्पणी को ज़रूर रिपीट करना चाहूंगा…
“खोदा पहाड़ निकला चूहा…ऊँची दुकान…फीका पकवान..नाम बड़े और दर्शन छोटे….इनमें से मैँ कुछ भी आपकी इस पोस्ट के लिए नहीं कहना चाहता लेकिन क्या करूँ?…दिल है कि मानता नहीं… :-)मित्र, इसे बस एक मज़ाक ही समझें…दरअसल क्या है कि मैँ आपकी पोस्ट का शीर्षक देख के ये सोच रहा था कि इसके अन्दर कुछ तीखा… करारा एवं मसालेदार पढने को मिलेगा…लेकिन आप तो यार अपुन के जैसे ही सीधे-साधे निकले खैर कोई बात नहीं…अगली बार मिलते है ब्रेक के बाद”

{राजीव भाई, अब आप मुझे ताऊ रामपुरिया की तरह लठ्ठ लेकर ढूंढने मत निकल पड़िएगा कि मैंने बिना पूछे आपकी टिप्पणी क्यों उठा ली…(इस उठाईगीरी पर नज़र रखने के लिए कुश दारोगा बाबू पहले ही दूरबीन लेकर बैठे हुए हैं…)}

स्लॉग ओवर
शादी की तीन स्टेज :
पहली- “मैड फॉर इच अदर”
दूसरी- “मेड फॉर इच अदर”
तीसरी- “मैड बिकॉज़ ऑफ इच अदर”
(आप कौन सी स्टेज में हैं, बताइएगा ज़रूर)

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