इसे पढ़कर शायद ही आप भूल पाएं…खुशदीप

आपका छोटा सा भी जज़्बा दूसरों के लिए क्या कर सकता है…एक टैक्सी ड्राइवर की आपबीती से जानिए…

द कैब ड्राईवर…

मैं बताए हुए पते पर पहुंचा…एक बार टैक्सी का हॉर्न बजाया…कुछ मिनट तक कोई हलचल नहीं हुई तो मैं कार से उतर कर घर के दरवाज़े पर पहुंचा…धीरे से नॉक किया…

अंदर से किसी बुज़ुर्ग महिला की कंपकंपाती आवाज़ आई…बस, एक मिनट…ऐसे लगा जैसे कोई घिसट घिसट कर आ रहा है…

कुछ मिनटों के इंतज़ार के बाद दरवाज़ा खुला…

नब्बे के ऊपर की एक महिला दीवार का सहारा लिए खड़ी थी…प्रिंटेड गाउन और सिर पर हैट, जिसमें मुंह की तरफ जाली लगी हुई थी…चालीस के दशक की हॉलीवुड की फिल्मों की हीरोइन की तरह…

महिला के एक तरफ छोटा नायलन का सूटकेस था…अपार्टमेंट के अंदर झांकने से लगा कि जैसे सालों-साल से कोई वहां नहीं आया…सारा फर्नीचर चादरों से ढका हुआ…एक कोने में कार्डबोर्ड…फ्रेम में जड़ी पुरानी तस्वीरों और शीशे के बर्तनों से सजा हुआ…

क्या आप मेरा बैग कार तक ले चलेंगे…महिला की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी…

मैंने पहले महिला का सूटकेस कार तक पहुंचाया और फिर वापस आया…महिला ने मेरी बांह का सहारा लिया…फिर हम धीरे धीरे कार की ओर बढ़ चले…इस दौरान महिला मुझे ब्लैसिंग देती रही…मैंने जवाब दिया…इट्स नथिंग…मैं अपने पैसेंजर्स का वैसे ही ख्याल रखता हूं जैसे कि अपनी मां का…

महिला बोली…तुम बहुत संस्कारी और अच्छे हो…

कार में बैठने के बाद महिला ने मुझे पते वाला एक विज़िटिंग कार्ड पकड़ाया…साथ ही बोली…क्या हम डाउनटाउन की तरफ़ से वहां चल सकते हैं...ये सुनकर मेरे मुंह से अपने आप ही निकला….ये तो काफ़ी लंबा रास्ता पड़ेगा…


महिला बोली…कोई बात नहीं…मुझे लास्ट होम पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है…

(लास्ट होम, ऐसा हॉस्पिटल जहां निराश्रित अपने जीवन की आखिरी स्टेज में पहुंचते हैं, ये जानते हुए कि वहां से कभी वापस नहीं आना, बस खुदा के घर ही जाना है)

मैंने रियर व्यू में देखा…महिला के चेहरे की झुर्रियों में जैसे एक पूरे युग का फ़लसफ़ा दौड़ रहा था…फिर महिला के शब्द सुनाई दिए…मेरा इस दुनिया में कोई नहीं..डॉक्टर कहते हैं कि अब मेरे गिनती के ही दिन बाकी हैं…

मैं ये सुन ही रहा था कि अचानक मेरे हाथ कैब के मीटर की ओर बढ़े और उसे बंद कर दिया…साथ ही पूछा कि आप मुझे कौन से रूट से ले जाना चाहती हैं…

इसके बाद अगले दो घंटे तक शहर की सड़कों को नापती हुई कैब चलती रही….महिला ने मुझे वो इमारत भी दिखाई, जहां उसने कभी एलिवेटर आपरेटर की नौकरी की थी…महिला ने वो घर भी दिखाया जहां वो नई नई शादी के बाद पति के साथ पहली बार रहने के लिए आईं थीं…एक फर्नीचर हाउस के बाहर भी महिला ने कार रुकवाई…वहां कभी बालरूम रह चुका था…जब वो कालेज में पढ़ती थीं तो वहां डांस करने आया करती थीं… कभी किसी बिल्डिंग के सामने कैब की स्पीड धीरे करने के लिए कहतीं…ऐसे लगता कि वो शून्य में निहारते निहारते यादों के सफ़र में कहीं खो सी गईं हों…

सूर्यास्त का आभास हुआ तो महिला ने कहा… मैं थक गई हूं…चलो अब मुझे मेरे आखिरी ठिकाने तक पहुंचा दो…

अब हम दोनों चुप थे और कैब लास्ट होम की ओर बढ़ चली थी…

लास्ट होम के पोर्टिको में पहुंचते ही दो वॉर्ड बाय व्हील चेयर लेकर कैब के पास आ गए…जैसे उन्हें पहले से ही महिला का इंतज़ार था…

मैंने महिला का सूटकेस डिक्की से निकाला…मुड़ा तो देखा महिला तब तक व्हील चेयर पर बैठ चुकी थीं…महिला ने पर्स खोलते हुए पूछा…मीटर में कितने पैसे बने…

कुछ भी नहीं…मेरे मुंह से निकला…

तुम्हें जीने के लिए कुछ कमाना भी है…

उसके लिए और बहुत सवारी हैं…मेरा जवाब था…

ये कहते हुए मेरा सिर खुद-ब-खुद सम्मान में महिला की गोद में चला गया…फिर मेरी बांहों का घेरा महिला के चारों ओर था…तब तक महिला की ममता ने मुझे कसकर जकड़ लिया…

महिला के आंसू बिना कुछ कहे ही बोल रहे थे कि उन्हें कितना सुकून मिला…

मैंने महिला का हाथ दोनों हाथ में लेकर चूमा और वापस कैब की ओर चल पड़ा…पीछे से लास्ट होम का दरवाज़ा बंद होने जैसी आवाज़ भी आई…जब तक कैब में बैठा, सूरज पूरी तरह डूब चुका था…

उसके बाद कुछ देर मैं निरुद्देश्य ही सड़कों पर कैब को दौड़ाता रहा…उस शिफ्ट में मैंने और कोई सवारी नहीं ली…बस यही सोच रहा था कि उस महिला को कोई ऐसा कैब-ड्राइवर मिल जाता जिसे शिफ्ट खत्म कर घर जाने की जल्दी होती, तो….या फिर मैं ही महिला के कहे अनुसार लंबा रास्ता पकड़ने से मना कर देता…

थोड़ी देर सोचता रहा तो पाया कि जो मैंने आज किया, उससे ज़्यादा अहम ज़िंदगी में कभी और कुछ नहीं किया…

लोग शायद ये ठीक से याद न रखें कि आपने क्या किया या क्या कहा, लेकिन वो ये हमेशा याद रखेंगे कि आपने उन्हें कैसा महसूस कराया…


(ई मेल से अनुवाद)

Khushdeep Sehgal
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Shikha Deepak
14 years ago

सही कहा……..कभी नहीं भूलेंगे।

-सर्जना शर्मा-

इंसानियत का तकादा तो यही है जो कैब चालक ने किया हम सब ऐसे ही दिल से काम करें तो जीवन सरस बन जाएगा

शरद कोकास

खुशनसीब हैं वे लोग जो इस तरह कम से कम लास्ट होम तक तो पहुंच जाते है । जाने कितने लोगों का दम ऐसे ही निकल जाता है । उस महिला व कैब ड्राइवर के जज़्बे को सलाम ।

राज भाटिय़ा

बहुत मस्त जी

डॉ टी एस दराल

इस स्थिति पर ग़मगीन होना सही नहीं । शुक्र है कि लास्ट होम तो था । वरना कितने ही लावारिस पड़े मिलते हैं ।
९० वर्षीया वृद्धा ने अपनी पूरी जिंदगी अच्छी तरह जी । अंत समय भी सही जगह पहुँच गई ।
टेक्सी वाले ने वही किया जो उसका मन चाहा । पैसे ले भी लेता तो कोई बात नहीं थी । वृद्धा के पास थे देने के लिए ।
लेकिन बुजुर्गों के प्रति सम्मान रखना अनिवार्य है ।

Mahendra
14 years ago

kya kahu kuch kah nahi paunga

रेखा श्रीवास्तव

बहुत मार्मिक घटना प्रस्तुत की. जीवन कुछ ऐसा हर कोई कर सके तो सिर्फ एक काम से जीवन भर में न मिलने वाला सुख पाया जा सकता है. काश ! जीवन में कुछ दिन कैब ड्राइवर कि तरह गुजार सकें तो जीवन सार्थक हो.

Kailash Sharma
14 years ago

बहुत मार्मिक प्रस्तुति..निशब्द कर दिया.

नीरज गोस्वामी

इस पोस्ट को पढ़ कर कुछ कहा नहीं जा सकता सिर्फ गहरी सांस लेकर चुप्पी ही खिंची जा सकती है…अन्दर तक सब कुछ हिला गयी है ये पोस्ट.

नीरज

Neeraj
14 years ago

भगवान को धन्यवाद , मैं जिन्दा हूँ |

Sushil Bakliwal
14 years ago

जीवन की वास्तविक मुस्कराहटें शायद यही हैं…

Deepak Saini
14 years ago

आँखे नम है और सोच रहा हूँ क्या टिप्पणी दूँ

Satish Saxena
14 years ago

लास्ट होम …बेहद कष्टदायक सफ़र …..

अजित गुप्ता का कोना

पैसे की गणित से ज्‍यादा मन के सुख की गणित आवश्‍यक है। न जाने हम पैसे के पीछे कितनी बार मन को मारते रहते हैं। लेकिन उस ड्राइवर ने ऐसा नहीं किया। बहुत प्रेरक उदाहरण है।

Mithilesh dubey
14 years ago

भाईया पढ़ते-पढ़ते माहौल जैसे गमगीन हो गया , हाँ शायद यही जिदंगी है ।

अन्तर सोहिल

कभी नहीं भूल पायेंगे जी
और इस पोस्ट में दिये सन्देश को भी जीवन में उतारने की कोशिश रहेगी
बहुत ज्यादा पसन्द आयी आज की यह पोस्ट, हार्दिक आभार

प्रणाम स्वीकार करें

Unknown
14 years ago

ekal jivan ki yahi sacchhai hai —

अविनाश वाचस्पति

आंखों ने समुद्र जल में स्‍नान कर लिया।

हमें हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को भी इसी मुकाम तक ले जाना है, जिससे सभी हिन्‍दी ब्‍लॉगर कैब चालक बनकर फ़ख्र महसूस कर सकें।
हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग खुशियों का फैलाव है

दिनेशराय द्विवेदी

खुशदीप भाई,
हमारे यहाँ अनेक लोगों के लिए अस्पताल लास्ट होम हो जाते हैं। उस लास्ट होम से एक महिला को कल रात मुक्ति मिली है। अभी अंतिम विदाई के लिए वहीं जा रहा हूँ।

Udan Tashtari
14 years ago

कहीं बहुत गहरे छू गई यह बात

संजय कुमार चौरसिया

कैब ड्राईवर को हमारा सलाम
ऐसे ही कुछ लम्हे होते हैं, जो कभी नहीं नहीं भूले जाते.

प्रवीण पाण्डेय

जीना इसी का नाम है।

rashmi ravija
14 years ago

पहले भी पढ़कर आँखें भीग आई थीं…एक बार फिर ग़मगीन कर दिया….इस पोस्ट ने…(वो भी सुबह-सुबह )

फ़िरदौस ख़ान

द कैब ड्राईवर को हमारा सलाम…
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका भी शुक्रिया… दुनिया में आज भी फ़रिश्ते जैसे लोग हैं… ऐसे ही कुछ लम्हे होते हैं, जो कभी नहीं नहीं भूले जाते… आपकी यह पोस्ट हमेशा याद रहेगी…
शुभकामनाएं…

Rahul Singh
14 years ago

जीवन के सफर के राही.

ब्लॉ.ललित शर्मा

Yahi jindagi hai.

Sunil Kumar
14 years ago

मार्मिक रचना ,शब्द नहीं हैं कहने के लिए

वाणी गीत
14 years ago

संयोग की बात थी की उन वृद्ध महिला को यही कैब मिली और उस व्यक्ति के लिए कभी ना भूलने वाले पलों की सौगात …
सबसे कीमती उपहार दे दिया उसने और पाया भी ….

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

निशब्द हूं…

Rohit Singh
14 years ago

काहे को रात में सोचने के लिए मजबूर करते हो….नींद वैसे ही नाराज चलती है। बात तो लाख टके की है। वैसे लास्ट होम ..ये शब्द देख कर महाभारत में यक्ष को युधिष्ठर का दिया जबाव याद आ गया। किम् आश्चर्यम….

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