बंदों की बहार है…बंदों से इनसान का धोखा मत खाइए…मैं बंद वाले बंद की बात कर रहा हूं…खाने वाला बंद…अब तो वाकई हद कर रहे हो आप…अरे वो वाला बंद जिसमें सब कुछ बंद हो जाता है…स्कूल, दफ्तर, बाज़ार, रेल, बस, मोटर…अब आई समझ में…तो भईया आप को परेशानी क्या है इस बंद से…अच्छी खासी बैठे बिठाए मुफ्त की छुट्टी मिल जाती है…एक तो कितना ध्यान रखते हैं हमारा ये बंद वाले…सोचते हैं बेचारे कि रोज़-रोज़ एक ही काम को करते-करते कितना थक जाते होंगे, इन्हें भी तो आराम की ज़रूरत है…अब ये संडे, सैचरडे वाला आराम कोई आराम थोड़े ही होता है…घर के लाख टंटे होते हैं, मिलने मिलाने के फर्ज़ निभाने होते है…असली आराम तो भइया बंद वाले दिन ही मिलता है…कहीं जाने की सिरदर्दी नहीं…लंबी तान कर सोओ…उठो, खाओ-पीओ….टीवी देखो…फिर सो जाओ…फिर उठो, फिर उसी क्रम को दोहराओ…
कल मायावती जी की बीएसपी, लालू जी की आरजेडी, पासवान जी की एलजीपी और यूपीए को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां महंगाई के विरोध में देश की सड़कों पर थीं…अपने वोकल-कॉर्ड की पूरी शक्ति के साथ यूपीए सरकार को पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाने के लिए कोस रही थीं…कोसती रहें…यूपीए की नींद कुंभकर्ण से कम थोड़े ही जो इनके नगाड़ों से खुल जाए…अब ये आज़ादी से पहले वाला वक्त तो है नहीं जब भगत सिंह कहते थे, बहरों के कानों तक आवाज़ पहुंचाने के लिए धमाके करने पड़ते हैं…भगत सिंह का मिशन तो आज़ादी था…लेकिन आजकल के नेताओं का मिशन क्या है…सब अपने अलग ब्रैंड का बंद पेश करना चाहते हैं…लेफ्ट का लेफ्टी बंद, बीजेपी का राइटी बंद, लालू का लालटेनी बंद, मायावती का मायावी बंद…यानि हर तरह का बंद आपको राजनीति की मंडी में मिलेगा…आम आदमी के लिए आवाज़ उठाने के नाम पर आम आदमी की ही नाक में दम करते बंद…
सुप्रीम कोर्ट बारह साल पहले बंद को गैर-क़ानूनी करार दे चुका है…बंद कराने वालों से संपत्ति के नुकसान की भरपाई की बात कह चुका है…लेकिन बारह साल में किसी के कान पर जूं रेंगी…बंद सदाबहार है…नेता संसद में क़ानून बनाते हैं…लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले को ही वो कितना मान देते हैं, ये आए दिन के बंद से साफ़ हो जाता है…सरकार न सुने तो बंद न करे तो और क्या करें…ये सवाल भी वाज़िब है…लेकिन भाई जी विरोध करना है तो अपने को कष्ट दीजिए न…आम आदमी को हलकान क्यों करते हैं…क्यों एक दिन के बंद से तीन हज़ार करोड़ का भट्टा बिठा देते हैं…बच्चों के स्कूल की एक दिन की पढ़ाई का नुकसान…चक्का जाम की वजह से मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते, रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं…रेल, बस ठप होने से यात्री बीच रास्ते में ही टंग जाते हैं…हमारी बला से…इस मरदूद आम आदमी के लिए ही तो सब कुछ करते हैं राजनीतिक दलों के आका…लेकिन मेरा एक छोटा सा सवाल बंद के समर्थक राजनेताओं से हैं…आम आदमी के हक़ की आवाज़ उठाने के लिए आप सब भूख-हड़ताल पर क्यों नहीं बैठते…गांधी के देश में विरोध का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है…दो-तीन दिन ये टोटका आजमा कर देखिए तो सही…सरकार कैसे नहीं नींद से जागती…साथ ही आपके शरीर की थोड़ी चर्बी भी कम हो जाएगी…
वैसे भी मोटे-ताजे नेता दाल-रोटी की बात करते अच्छे नहीं लगते…वजन कम करेंगे तभी तो आम आदमी मानेगा कि आप भी उसी की तरह इनसान हैं…एसी गाड़ियों से निकल कर तपती सड़क पर धरने के लिए बैठ सकते हैं…ये नहीं कि ज़रा सा गर्मी में पसीना बहाया और गश खाकर गिर पड़े…
अब सोच रहा हूं कि बंद वाकई राजनीतिक दलों की नज़र में रामबाण हैं तो क्यों न अपनी ब्लॉगर बिरादरी भी इस बहती गंगा में हाथ धोए…लाख इंतज़ार के बाद भी गूगल बाबा को सेंस नहीं आ रही कि हिंदी ब्लॉगर नाम के तुच्छ जीव को भी एडसेंस का प्रसाद दे दिया जाए…मुझे लगता है कि गूगल बाबा पर दबाव बनाने के लिए एक दिन हिंदी ब्लॉगर्स को इंटरनेशनल ब्लॉग बंद मनाना चाहिए…उस दिन एक भी ब्लॉगर न तो पोस्ट डाले और न ही किसी को कमेंट करे…शुभ मुहूर्त देखकर कोई तारीख निकाली जाए और कर दिया जाए बंद का ऐलान…क्या राय है ब्लॉगवुड के पंच-परमेश्वरों की…