आवाज़ दे …कहां हैं…खुशदीप ​​


​ऐसा दुर्लभ  ही होता है कि सिनेमा या टीवी पर कभी कोई दृश्य देखकर आप पूरी तरह उसके साथ जुड़ जाते हैं, रम  जाते हैं, उस  लम्हे में खुद को  इलैक्ट्रिफाइंग  महसूस  करने लगते हैं…अपने काम  के सिलसिले में मुझे कुछ  ऐसा ही अनुभव  हुआ..​
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​बंटवारे के दर्द  के साथ  एक  नामचीन  हस्ती को 1947  में सरहद  के उस  पार  रहने का फैसला लेना पड़ा…वो हस्ती, जिसकी खूबसूरती और सुरीले गले ने बड़े पर्दे के ज़रिए  सभी को अपना दीवाना बना रखा था…दोस्त, साथी सभी से जुदा होने की टीस…हुनर  कूट  कूट  कर  भरा था तो सरहद  के उस  पार  भी चाहने वालों की तादाद  कम  नहीं थी…प्रशंसकों से बेशुमार प्यार  मिला लेकिन  उस  हस्ती के दिल  में एक  कसक  हमेशा बनी रही कि उस  माटी की खुशबू  फिर से महसूस  कर सके जिस  माटी ने प्रसिद्धि के  शिखर पर पहुंचाया…उस  हस्ती को 35 साल  बाद हिंदुस्तान  आने का मौका मिला…एक  शख्स जिसने 35  साल  पहले एक  फिल्म में उस  हस्ती के साथ  लीड  रोल  किया था,  मंच  पर  स्वागत  के लिए  खड़ा था…दोनों ने एक  दूसरे के लिए  क्या कहा, ये देखने- सुनने से ज़्यादा महसूस करने  की बात  है…​नोस्टेलजिया का जादू है…
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​इस  लिंक  पर जाकर वीडियो को गौर से देखिए, फिर बताइए आपको कैसा महसूस हुआ …

आवाज़   दे …कहां  है…

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अजित गुप्ता का कोना

पुरानी यादे तो हमारी पूंजी होती है।

दिगम्बर नासवा

मज़ा आ गया ,…

डॉ टी एस दराल

विभाजन ने जाने कितनों को जुदा किया था ।

Rahul Singh
13 years ago

यही वो हस्तियां हैं जो सरहद को झुठला देती हैं.

प्रवीण पाण्डेय

एक अजब सी कशिश रही होगी, उन क्षणों में।

Arun sathi
13 years ago

मर्मस्पर्सी

Udan Tashtari
13 years ago

बहुत अच्छा लगा!!

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