15 अगस्त 2021 को आज हमारे प्यारे देश भारत और हम इसके नागरिकों ने आज़ादी
के 75वें वर्ष में प्रवेश किया है. इस
दिन का मतलब तिरंगा फहरा कर, देशभक्ति के गीत बजाकर, लड्डू खा कर और इमारतों पर
रौशनी करने में ही सिमट कर नहीं रह जाना चाहिए. 1947 को आज तीन-चौथाई सदी बीतने को आई
है. इस दिन हर भारतवासी को थोड़ा रुक कर अपने से कुछ सवाल भी करने चाहिए.
1. आज़ादी के मायने क्या हैं?
2. आपको देश में एक चीज़ बदलने का मौका
दिया जाए तो क्या बदलना चाहेंगे?
3. 1947 से अब तक देश में विकास का कौन सा सबसे
बड़ा काम हुआ है?
ज़ाहिर है इन तीनों सवालों
के जवाब हर कोई अपने हिसाब से देगा. 1.40 अरब लोगों का देश है इसलिए मतभिन्नता का
स्तर भी बड़ा होगा. इस मतभिन्नता का सम्मान ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है.
मैंने पिछली एक पोस्ट में
इन्हीं तीन सवालों के जवाब अपने मित्रों, ब्लॉगर बिरादरी और खुश_हेल्पलाइन
से जुड़ रहे युवा साथियों से जानने चाहे. मुझे खुशी है कि सभी ने बढ़-चढ़ कर ऐसी
कवायद में हिस्सा लेकर इस प्रयास को सार्थक बनाया.
तीन
सवाल थे, इसलिए एक ही पोस्ट में इन्हें समेट पाना संभव नहीं है. पोस्ट लंबी हो
जाएगी. ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि हर सवाल पर अलग पोस्ट लिखी जाए.
आज
पहले सवाल पर ही मंथन करते हैं- 75वें वर्ष में हमारे लिए आज़ादी के मायने क्या
हैं? इस सवाल पर फेसबुक वॉल
पर जो जवाब आए पहले वो जान लेते हैं. आख़िर में मैंने अपनी राय व्यक्त की है.
राहुल
त्रिपाठी– आत्मनिर्भरता
जितेंद
कुमार भगतिया– सोचने
की आज़ादी
धीरेंद्र
वीर सिंह- कुछ नहीं
विवेक
शुक्ला– Ownership का भाव
संगीता
पुरी– बिना किसी भय के अपनी रूचि और आवश्यकता
के हिसाब से समाज मे काम करने का अवसर!
अमित
नागर–
आज़ादी
आलोक
शर्मा– विचारों
की आज़ादी
हरिवंश
शर्मा- गांधी
की लाश पर “खंड भारत”
प्रमोद
राय– दूसरों
की आज़ादी कायम रखते हुए हर काम करने या हासिल करने की छूट
सुशोभित
सिन्हा– आज़ादी
का मायना बस इतना हो कि वो मायनों की ज़ंजीरों से आजाद हो
चंद्रमोहन
गुप्ता– स्वअनुशासन के साथ जीवन जीने की आज़ादी
प्रवीण शाह– असली लोकतंत्र
प्रखर शर्मा- मन की पकड़ से
निकलना
सरवत
जमाल– अभिव्यक्ति
शाहनवाज
सिद्दीकी– आज़ादी
के मायने यह हैं कि मैं हर उस काम को बिना रोकटोक कर पाऊं, जिसमें
मुझे या समाज को कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा हो
रेखा
श्रीवास्तव– आज़ादी का मेरे लिए अर्थ है कि बंधुआ न समझा जाए, चाहे हमारे नौकर हों या हम
खुद, मजबूर न हों. सबका आत्मसम्मान एक हो
आकाश देव शर्मा- आत्मनिर्भरता
अमित
कुमार श्रीवास्तव- प्रत्येक
व्यक्ति का सम्मान
प्रवीण
द्वारी- तुष्टीकरण मुक्त भारत
अर्चना
चावजी– आत्मनिर्भरता
निर्मला कपिला- आज के संदर्भ में आज़ादी शब्द अर्थहीन हो गया है
जसविंदर बिंद्रा- अभिव्यक्ति की आज़ादी और सभी धर्मों के लिए सम्मान
अश्वनी
गुप्ता- किसी भी समुदाय, जाति या धर्म के तुष्टिकरण की
नीति से आज़ादी
अजित
वडनेरकर-
आत्मसम्मान
सुदेश आर्या- मनमानी
रविंद्र प्रभात– जिस बड़े लोकतंत्र की बात हम विश्व भर में करते हैं उस लोकतंत्र में अब केवल
तंत्र की ही बात चलती है, लोक इस तंत्र से बाहर हो चुके हैं. देश की
व्यवस्था आज नेताओं, भ्रष्ट अफसरों, भ्रष्टाचारियों, मुनाफाखोरों
और उनके बच्चों तक सीमित है और यह गिनती में देश की जनसंख्या का 1 प्रतिशत भी नहीं
है अर्थात 1 प्रतिशत लोग स्वतंत्र हैं और बाकि सब इनके गुलाम. अब
बताएं हम किसी भी मायने में कही से भी स्वतंत्र है कहां?
सुनील
हंचोरिया– समान
अवसर,स्वतंत्र अभिव्यक्ति
यशवंत माथुर– गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी और सांप्रदायिकता से आज़ादी.
युवा
साथियों को ऊपर बताए गए आज़ादी के सभी मायनों को गौर से पढ़ना चाहिए. सभी से कुछ न
कुछ संदेश मिलता है.
आपने
देखा कि हर व्यक्ति के लिए आज़ादी के मायने अलग हो सकते हैं. अगर कोई बीमार है तो
उसके लिए रोगमुक्त होना ही सबसे बड़ी आज़ादी है. कोई भूख से बेहाल है तो उसके लिए
दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही सबसे बड़ी आज़ादी है. बेरोज़गार के लिए सही रोज़गार,
स्टूडेंट को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे कॉलेज में दाखिले से बढ़ कर क्या हो सकता
है. हमारा क़ानून कहता है कि दो बालिग महिला-पुरुष अपनी मर्जी से शादी कर सकते
हैं, साथ रह सकते हैं, इसमें धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र की कोई दीवार उन्हें नहीं
रोक सकती? क़ानून कहता
है कि उन्हें संरक्षण दिया जाए. लेकिन क्या हर जगह ऐसा होता है? ऐसे जोड़ों के लिए बिना किसी अड़चन साथ रह पाना
ही असली आज़ादी है.
हर
व्यक्ति को अपने हिसाब से जीवन जीने की आज़ादी ज़रूर हो बशर्ते कि वो संविधान का
सम्मान करे, देश-समाज की बनाई व्यवस्थाओं का मन से पालन करे. सुधार की गुंजाइश हर
जगह रहती है इसलिए ये प्रक्रिया सतत आगे बढ़ती रहनी चाहिए. आपकी आज़ादी का ये मतलब
कतई नहीं होना चाहिए कि आप दूसरों की आज़ादी में खलल डालें. आप अपने अधिकारों की
रक्षा करें लेकिन साथ ही अपने कर्तव्य-दायित्वों को लेकर भी हमेशा जिम्मेदार रहे.
अगर शासन की ओर से कहीं नागरिकों के अधिकारों का दमन किया जाता है तो उसके
शांतिपूर्ण विरोध की इजाज़त हमारा लोकतंत्र, हमारा संविधान देता है. लोकहित में
आवाज़ उठाना मीडिया का भी परम धर्म होना चाहिए. सत्ता या राजनेता निरंकुश न हो जाए
इसके लिए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानि पत्रकारिता को हरदम वॉचडॉग मोड में
रहने की आवश्यकता है. किसी मजलूम के साथ अन्याय न हो इसके लिए न्यायपालिका को अपने
तंत्र को और कसना चाहिए जिससे लोगों को त्वरित न्याय होता दिखे भी.
मेरे
लिए आज़ादी के सही मायने हमारे संविधान की भूमिका है. इस की मूल भावना का अक्षरक्ष: पालन और इसके साथ किसी तरह का खिलवाड़ न होने देने को ही
मैं सही आज़ादी मानता हूं.
की भूमिका की आसान परिभाषा कहती है कि हम भारत के लोग भारत को ऐसा देश बनाने के
लिए दृढ़ संकल्प हैं-
-जो न तो
किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है. इसके ऊपर और
कोई शक्ति नहीं है. यह अपने अंदरूनी और बाहरी मामलों को निपटाने के लिए स्वतंत्र
हैं. (संपूर्ण संप्रभुत्व संपन्न देश)
-जहां ऐसा
ढांचा हो जो उत्पादन के मुख्य साधनों, पूंजी, जमीन, संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या
नियंत्रण के साथ वितरण में बराबरी के साथ बैलेंस रखता हो. (समाजवादी)
-जहां
सभी धर्म समान है और सभी को सरकार का समान समर्थन प्राप्त रहे. (पंथनिरपेक्ष)
-जहां न
केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र भी हो. (लोकतांत्रिक)
-जहां
राज्य प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिए चुन कर आता
है. जहां लोक यानि लोग ही सबसे ऊपर होते हैं. जहां कोई विशेषाधिकार वाला वर्ग नहीं
होता. सार्वजनिक दफ्तर बिना किसी भेदभाव के हर नागरिक के लिए खुले रहें.
(गणतंत्र)
– सभी
नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तक सुलभ पहुंच हो
– सभी
को अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म को मानने और उपासना की स्वतंत्रता हो
– अवसर
की समता, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाले
भाईचारे को बढ़ावा दिया जाए.
अब
आज़ादी के मायने को सार्थक रूप देने के लिए हम सबको अपने से दिल पर हाथ रख कर सवाल करना चाहिए. पूछना चाहिए कि संविधान की भूमिका की इस भावना का हमारे देश में कितना सम्मान
हो पा रहा है. क्या हम अपनी संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रख पा रहे हैं?
140 करोड़ लोगों का स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश मंगलमय हो…
इसी प्रार्थना
के साथ…
जय भारत…
(16
अगस्त को इस संवाद की दूसरी कड़ी प्रकाशित करूंगा, इस सवाल के जवाबों के साथ- आपको
देश में एक चीज़ बदलने का मौका दिया जाए तो क्या बदलना चाहेंगे?)
(#Khush_Helpline को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
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गांधी ने सच कहा था,भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा,वह शांतिदूत,अहिंसा के पुजारी की अंतिम इच्छा,लाख कोशिशों के बावजूद अंत में क्या हुवा।
आज पड़ोसी विभाजित देश की क्या परिस्थितियां है,जो कभी एक साथ बैठ कर एक दूजे के साथ पर्व मनाते थे,आज एक दूजे से नफरत करते है।
रहीमदास ने सच कहा !
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए
टूटे से फिर ना जुड़े,जुड़े गांठ पड़ी जाए।
Very well explained. Almost all the points related to this issue have been touched and I believe it will be helpful to the youngsters as well
सुधार की गुंजाइश हर जगह रहती है इसलिए ये प्रक्रिया सतत आगे बढ़ती रहनी चाहिए
संविधान मे भी समय के साथ बदलाव आवश्यक है… बहुत पेचीदगी भरे कानून हैँ
सार्थक पोस्ट
निश्चित रूप से युवाओं की विचारधारा को प्रभावित करेगी ये पोस्ट, सार्वजनिक मंच पर लोगों की राय जानने के बाद ही पोस्ट लिखी गई होने से अलग अलग विचारधाराओं वाले लोग अपनी बात रख पाए हैं,अच्छी पहल,शुभकामनाएं ।
जिस तरीके से समझाया है उसके लिए एक ही शब्द कह सकता हूँ 'बेहतरीन'