अवैध कॉलोनी, अवैध इमारत, अवैध आंसू…खुशदीप


देश के दो महानगर…मुंबई और दिल्ली…

दोनों महानगरों से दो ख़बर एक साथ पढ़ने को मिली…

मुंबई के पास ठाणे के मुंब्रा में गुरुवार रात को निर्माणाधीन सात मंज़िला इमारत गिरने से 55 लोगों की मौत हो गई…60 घायल हो गए…20 का कोई अता-पता नहीं है…ज़्यादातर हताहत मज़दूर तबके के हैं…इमारत अवैध तौर पर बनाई गई  थी, इसकी पुष्टि खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने की है…ये इमारत छह हफ्ते में ही खड़ी हो गई थी…इसी से समझा जा सकता है कि इस काग़ज़ी इमारत के निर्माण में कितनी घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया होगा…इसके ऊपर आठवीं मंज़िल और बनाई जा रही थी…और तो और इस इमारत में दुकानों और दफ्तरों के चालू होने के साथ कमरों में लोगों ने रहना भी शुरू कर दिया था…इमारत के बिल्डर जमील कुरैशी और सलीम शेख़ हादसे के बाद फ़रार हो गए हैं…ठाणे के म्युनिसिपल कमिश्नर आर ए राजीव के मुताबिक मुंब्रा में 90 फ़ीसदी इमारतें अवैध हैं…

ये तो पढ़ ली आपने मुंबई की ख़बर…अब आते  हैं दिल्ली की ख़बर पर…

पूर्वी दिल्ली की आज़ाद नगर (ईस्ट) नाम की अवैध कॉलोनी में रहने वाले 83 परिवारों का रातोंरात नसीब बदल गया…क्यों भला…इस कॉलोनी को दिल्ली की पहली अनाधिकृत नियमित (Unauthorised Regularised-UR) कॉलोनी बनने का रुतबा जो हासिल हो गया…पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने गुरुवार को ही इस कॉलोनी के ले-आउट को मंज़ूरी दी…यानि अब इस कॉलोनी के लोगों को भी वो सारी सुविधाएं मिलेंगी जो दिल्ली की नियमित कॉलोनी के बाशिंदों को मिलती हैं…अभी तक यहां एक वर्ग गज़ ज़मीन का भाव एक लाख रुपये था…लेकिन अब पूर्वी दिल्ली नगर निगम की घोषणा के बाद यहां ज़मीन का भाव दो से तीन लाख रुपये पहुंच गया है…आज़ाद नगर (ईस्ट) की तरह ही दिल्ली में 894 और अनाधिकृत कॉलोनी नियमित होने का इंतज़ार कर रही हैं…

इन दोनों ख़बरों में आपको क्या कुछ समानता नज़र आई…

पहला सवाल- अवैध कॉलोनियां या अवैध इमारतें जब बनाई जा रही होती हैं तो  सारे प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस वाले क्या भांग खा कर सो रहे होते हैं…या मोटा चढ़ावा खाकर लंबी डकार ले रहे होते हैं…दूसरा सवाल- कोई अवैध इमारत गिरने पर सरकार और नेता इतने टसुए क्यों बहाते हैं…क्या यही नेता वोटों के लालच में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की पैरवी में सबसे आगे नहीं होते…

अवैध कॉलोनियों में अवैध इमारतों के गिरने पर होने वाली मौतों पर इनके लिए ज़िम्मेदार बिल्डर, ठेकेदारों, इंजीनियर, अफ़सरों और  नेताओं को मौत की सज़ा क्यों नहीं दी जाती…

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