अमिताभ के विजय की लकीर पर अन्ना…खुशदीप

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जो 65 साल में नहीं हुआ, वो अब तीन साल में होगा….जंतर मंतर पर राजनीतिक विकल्प देने का ऐलान करते हुए अन्ना हज़ारे… ​

(ये सुनना है तो इस वीडियो के काउंटर पर 1.20 से जाकर 1.50 तक सुनिए)

​   रहीम चाचा,  जो पिछले 25 बरस में नहीं हुआ, वो अब होगा, अगले हफ्ते एक और कुली इन मवालियों को पैसा देने से इनकार करने वाला है.…1975 में रिलीज फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन… (ये डायलाग सुनना है तो इस वीडियो के काउंटर 5.40 पर जाकर 6.00 तक सुनिए) ​​​

​ इऩ दोनों डायलाग में 37 साल का फर्क है…सत्तर के दशक में बड़े परदे पर अमिताभ बच्चन ने विजय बनकर सिस्टम से लड़ने के लिए हिंसा को रास्ता बनाया था…​देश में ये वो दौर था जब उदारीकरण का किसी ने नाम भी नहीं सुना था…उस वक्त अमिताभ के करेक्टर ज़्यादातर मज़दूर तबके वाले होते थे….जो ज़मीन से उठकर अपने बूते ही आसमान तक पहुंच जाता था…परदे पर विजय का एंटी-हीरो अत्याचारियों को उलटे हाथ के मुक्के से धूल चटाता था तो हक़ीक़त में देश की व्यवस्था में दबे-कुचले लोगों को अपनी विजय नज़र आती थी…

इस दौर की पृष्ठभूमि को जार्ज फर्नाडिस के 1974 की रेलवे हड़ताल, मुंबई के कपड़ा मिलों की हड़ताल और जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से जोड़कर देखा जाना चाहिये…अब चाहे ये सपना ही होता था लेकिन ये लोगों को बड़ा सैटिस्फेक्शन देता था…कोई तो है जो करप्ट सिस्टम के मुंह पर तमाचा जड़ सकता है… यही वह दौर था जब मज़दूर शक्ति आवाज़ उठाने लगी थी जिसे सिल्वर स्क्रीन के तिलिस्म में अमिताभ ने अपनी अदाकारी से फंतासी के रंग दिए…  दुर्योग  से उन्हीं दिनों संजय गांधी की कोटरी की बंधक बनकर इंदिरा गांधी तानाशाह बन बैठी थी…देश की जनता को गुलाम और खुद को महारानी समझने की भूल ही इंदिरा गांधी और कांग्रेस को ले डूबी…समग्र क्रांति के नारे के साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जनता के आक्रोश को एकसूत्र में पिरो कर सत्ता परिवर्तन का रास्ता तैयार किया…  रियल लाइफ़ में जेपी और रील लाइफ़ में अमिताभ (संयोग से दोनों का जन्मदिन 11अक्टूबर को ही है) की  भूमिका एक जैसी ही थी…लोगों को सपना दिखाना कि सिस्टम को बदल दिया तो उनके अपने दिन भी बदल जाएंगे…एंग्री यंग मैन अमिताभ वन मैन इंडस्ट्री हो गए तो उन्होंने चोला बदल कर कामेडी करना शुरू कर दिया…ठीक वैसे ​ही जैसी कामेडी 1977  में जेपी आंदोलन के रथ पर सवार होकर सत्ता में आई जनता पार्टी ने देश के साथ की थी…मोरारजी देसाई का दंभ और चरण सिंह ​की प्रधानमंत्री बनने की लालसा ने ढाई साल में ही जनता पार्टी का बिस्तर गोल कर दिया…जनता ठगी रह गई और इंदिरा गांधी मौके का फायदा उठा कर 1980  में फिर सत्ता में आ गईं…​ ​ जो अमिताभ ने दीवार में कहा था, वही अब अन्ना ने जंतर-मंतर से चुनावी मंतर देने के दौरान कहा है… जो 65 साल में नहीं हुआ वो चमत्कार अब तीन ​साल में होगा…लेकिन बड़ा सवाल है कि कैसे होगा ये...अन्ना आंदोलन की सबसे बड़ी कमजोरी है कि इसके पीछे बड़े शहरों का मध्यम वर्ग खड़ा नज़र आता है..वो मध्यम वर्ग जिसे कहीं न कहीं मनमोहनी इकोनामिक्स का पिछले दो दशक में फायदा मिला है…मजदूर, दलित या सर्वहारा वर्ग के लोग जंतर मंतर पर कहीं खडे़ नज़र नहीं आते… देश की आज की माल कल्चर से मजदूर और गरीब वर्ग इतना कुंठित हो चुका है कि वो​ मानेसर में मारूति-सुजुकी प्लांट जैसी हिंसा से भी नहीं चूक रहा…वो भी अपने लिए एक लाख वेतन की मांग करने लगा है…टीम अन्ना के सदस्य और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ​मानेसर हिंसा की मिसाल देते हुए ही कहा है कि व्यवस्था न सुधरी तो देश इसी तरह की सिविल वार की ओर चल देगा…प्रशांत क्या इशारा देना चाहते थे, ये तो वहीं जाने…हां इतना ज़रूर साफ़ है कि अन्ना तीन साल में चमत्कार की​ जो बात कर रहे हैं, वो गांव-देहात, शहर के स्लम. मजदूर, दलित, सर्वहारा लोगों के सपोर्ट के बिना मुमकिन नहीं हो सकता…अगर सोशल मीडिया के बूते ही देश के सियासी घाघों को मात देने का ऱ्वाब देखा और दिखाया जा रहा है तो इस आंदोलन का पीपली लाइव बनना सोलह आने तय है…

Khushdeep Sehgal
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विष्णु बैरागी

अच्‍छा लगा पोस्‍ट पढ कर। कई बातें मेरे मन की हैं इसमें।

दर्शन कौर धनोय

अभी भी दिल्ली दूर है …

वाणी गीत
12 years ago

तीन साल में चमत्कार नहीं होते , सही है …आज़ादी भी कुछ सालों में नहीं मिल गयी थी !
आपको स्वस्थ देख कर अच्छा लगा !

vandana gupta
12 years ago

सब अपनी ईमानदार कोशिश करें तो यह भी मुमकिन है ।

Shah Nawaz
12 years ago

हा हा हा…. खरी-खरी मगर बिलकुल सही…

निर्मला कपिला

bahut dino baad paDH kar sakoon milaa ki aap THeek ho| shubhakaamanaayeM aasheervaad

अजित गुप्ता का कोना

चलो अन्‍ना के बहाने आपकी सेहत ठीक हुई और आपकी पोस्‍ट पढ़ने को मिली।

Satish Saxena
12 years ago

देश का जनमानस परिपक्व नहीं हुआ है , सपनों में जीते भारत वासियों को अभी भी महामानव की तलाश है, जो आएगा और हमारे देश को सुधार देगा !

बेचारा महामानव…महात्मा बनकर ही संतुष्ट हो जायेगा… मगर वह भी दूर की गोटी लगती है !

करप्शन पर हमें याद आती है उनकी,जो हज़ारों करोड डकार जाते हैं, दो चार हज़ार की टैक्स चोरी, या बेईमानी करप्शन में नहीं आती, अगर यह ना करे तो बच्चे कैसे पालेंगे ??

आज आवश्यकता है,अपने गले में झांकने की ! आज देश में एक ही अजेंडा है "यह साले चोर देश को लुटे जा रहे हैं हमारा नंबर कब आएगा ? काश गद्दी हमें मिले सारे चोरों को सरे आम गोली मार दें और हम राज करें तब देश का भला हो !"

ऐसे आशावादी हर जगह हैं , सब भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं !कवि तक स्टेज पर जाकर जोर जोर से दहाडते हैं , क्या पता कल संसद में नोमिनेशन मिल जाए तो अपने भी वारे न्यारे हों !सब नेता चोर हैं , इनके हटे बिना हमारा नंबर नहीं आएगा !

खुशदीप भाई, एक पार्टी बनाते हैं और अन्ना बाबा से मान्यता लेते हैं !
काम हो जाएगा !

डॉ टी एस दराल

अच्छा विश्लेषण किया है . लेकिन अन्ना का प्रयास एक शुरुआत है . इसमें मजदूर तबका क्यों नहीं जुड़ सकता ? भ्रष्टाचार से सभी तो प्रभावित हैं . आन्दोलन शुरू हुआ तो बात दूर तक जाएगी ही .

Udan Tashtari
12 years ago

सटीक!!

Satish Chandra Satyarthi

आपका विश्लेषण बहुत ही संतुलित है… आभार…

प्रवीण पाण्डेय

जो जीवन भर आपका अपमान करता रहता है, उसके मुँह पर तमाचा मारने का आनन्द ही कुछ और होता है। बहुत ही प्रभावी आकलन..

दिगम्बर नासवा

धीरे धीरे सभी को साथ आना पड़ेगा … अभी नहीं तो बड मिएँ आयेंगे … बदलाव तो आना निश्चित ही है … अती का अंत तो होना ही है … अभी नहीं तो फिर कभी …

दिनेशराय द्विवेदी

केवल और केवल श्रमजीवियों के नेतृत्व में ही वर्तमान युग में व्यवस्था परिवर्तन संभव है। इस सत्य को हमें पहचान लेना चाहिए। इस से इतर जितने भी प्रयत्न दिखाई पड़ते हैं या पड़ेंगे वे सभी जनता को भ्रमित ही करेंगे।

BS Pabla
12 years ago

वो अपने स्तर पर कोशिश कर रहे,माथा फोड़ रहे
एक नागरिक अपने स्तर पर अपनी कोशिश करे तो…….

लेकिन अपने ही गले में घंटी कौन बांधे?

अनूप शुक्ल

पोस्ट पढ़ी। फ़िलिम देखी। अच्छा लगा।
अब इंतजार है अन्नाजी की घोषणा का।

विवेक रस्तोगी

सब अपनी ईमानदार कोशिश करें तो यह भी मुमकिन है ।

संतोष त्रिवेदी

अन्ना अकेले यह चमत्कार नहीं कर सकते.यदि वर्तमान व्यवस्था काम नहीं कर रही है तो इसे बदलने की ईमानदार कोशिश का स्वागत होना चाहिए.
..हम और आप साथ देंगे तो यह भी मुमकिन होगा !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

आपकी इंटेलेकचुयलटी और और दूरदर्शिता को सलाम…

Unknown
12 years ago

जो 65 साल में नहीं हुआ वो चमत्कार अब तीन ​साल में होगा…लेकिन बड़ा सवाल है कि कैसे होगा ये ?

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