बोलो मेरे साथ जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद…साठ के दशक के शुरू में निर्देशक महबूब खान की बनाई फिल्म सन ऑफ इंडिया का ये गीत एक वक्त देश के हर बच्चे की ज़ुबान पर था…कल ये जय हिंद का उद्घोष मेरी पोस्ट पर लखनऊ के महफूज़ अली भाई ने शिद्दत के साथ याद दिला दिया…दरअसल मैंने अपनी पोस्ट में हैलो शब्द के बारे में जिज्ञासा जताते हुए पूछा था कि क्या हम सवा अरब भारतीय हैलो की जगह फोन पर कोई ऐसा ठेठ देसी शब्द नहीं इस्तेमाल कर सकते जिसमें भारतीयता की झलक दिखाई दे…अगर हम सब उस शब्द को बोलने लगे तो वो कितनी जल्दी पूरी दुनिया पर छा जाएगा…इसी प्रश्न के जवाब में महफूज़ भाई ने ये प्रतिक्रिया भेजी…
हैलो बोलने की बजाय हम हिंदुस्तानी “हरि ओम” शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं…अगर मुस्लिम हैं हरि ओम बोलने में दिक्कत है तो “असल्लाम वालेकुम” का इस्तेमाल कर सकते हैं…अगर ईसाई हैं तो “हैलो” ही चलेगा…और अगर सिख हैं तो “सत श्री अकाल”…पर अगर धर्म से ऊपर उठना है तो “जय हिंद” से अच्छा कुछ नहीं है…ये सबके लिए यूनिवर्सल है…
महफूज़ भाई की टिप्पणी के बाद ही कनाडा की अदा ने और भी दिल खुश कर देने वाली टिप्पणी भेजी…
मुझे महफूज़ जी की ‘जय हिंद’ वाली बात बहुत ज्यादा भायी है… महफूज़ साहब बहुत बहुत शुक्रिया …..आज से ही जब भी भारत कॉल करुँगी पक्की बात है ‘जय हिंद’ ही कहूँगी…कनाडा में रहती हूँ इसलिए सबसे तो नहीं कह पाउंगी लेकिन अपनी इंडियन कम्युनिटी में यह बात बताने की ज़रूर कोशिश करुँगी….
इन दोनों की बात पढ़ने के बाद एक प्रण मैंने भी अपने साथ किया…अब मैं अपनी हर टिप्पणी में “जय हिंद” का इस्तेमाल ज़रूर करूंगा…साथ ही अभिवादन के लिए, फोन पर हो या साक्षात, ज़्यादा से ज्यादा “जय हिंद” का प्रयोग करने की कोशिश करूंगा…इस हद तक कि ये मेरी आदत ही बन जाए…
मुझे एक बात और याद आ रही है…दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब भी कहीं भाषण देती थीं, तो अंत तीन बार ज़ोर ज़ोर से “जय हिंद” के नारे से ही करती थीं…और सुनने वाले भी ये नारा लगाने में गले की पूरी ताकत के साथ देते थे…
क्या वजह है कि आज “जय हिंद” कहना बिल्कुल ही गायब हो गया है…पहले बच्चों से “जय हिंद” का गीत गवाने में माता-पिता अपनी शान समझते थे…उनकी ख्वाहिश भी ये होती थी कि …नन्हा मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं... गीत गाने वाला बच्चा बड़ा होकर भी सेना में शामिल होकर देश की सेवा करेगा…लेकिन आज ऐसे अभिभावक बहुत कम ही होंगे जो अपने लाडलों को मातृभूमि की रक्षा के लिए सेना में भेजने की सोचते हैं…अगर ऐसा नहीं होता तो हमारी सेना को आज अफसरों की कमी का सामना नहीं करना पड़ता…एनडीए और आईएमए जैसी संस्थाओं में सीटें खाली पड़ी नहीं रह जातीं…दरअसल आर्थिक सुधारों ने देश को विकास की धार तो दी लेकिन साथ ही ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कमाने को ही ब्रह्म-वाक्य बना दिया…सेना की जगह आईआईएम से एमबीए करना ज़्यादा बड़ा ख्वाब हो गया है…ठीक है आप जिस फील्ड को भी करियर बनाएं लेकिन “जय हिंद” कहना तो नहीं भूलें…
स्लॉग ओवर
“राखी के स्वयंवर” के बाद नया रियल्टी शो आने वाला है “राखी का हनीमून“…शो के निर्माताओं ने इसके प्रचार के लिए प्रोमो बनाया…जो कोई इस शो में हिस्सा लेने के इच्छुक हैं…जल्दी आवेदन करें…क्योंकि बेड्स सीमित संख्या में ही उपलब्ध हैं…
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