अपने तो अपने होते हैं…खुशदीप

कल बात की थी मां के दूध की…एक देश में दो देश होने की…भारत की, इंडिया की…आज बात हाईराइज़ बिल्डिंग्स के दड़बेनुमा वन बीएचके, टू बीएचके फ्लैटों में रहने वाले मॉडर्न कपल्स की…

कभी कभी ये जोड़े फिटनेस के प्रतीक लिबासों में सुबह या शाम हवा पानी बदलने के लिए आसमान से उतर कर ज़मीन पर आते हैं…पार्क के नाम वाली हरीभरी छोटी सी ज़मीन पर टहलते दिखाई देते हैं…मोबाइल का साथ वहां भी नहीं छूटता है…बच्चा साथ मुश्किल ही दिखाई देता है…बच्चा होगा भी तो या तो कमर से बंधे पाउच में कसमसा रहा होगा या प्रैम में टांगे इधर से उधर मारता हुआ आसमान ताक रहा होगा…यही सोचता, शायद अभी मां या पिता की गोद का स्पर्श मिलेगा…बच्चा ज़ोर से रोएगा तो अगले ही पल दूध की बॉटल या वो छल्ले वाला प्लास्टिक का निपल उसके मुंह में होगा…किसी तरह बस चुप रहे…

अब दो पल फुर्सत के निकाल कर टहलने आए हैं, उसमें भी बच्चा रो कर सारा मज़ा खराब कर दे…फिर तो मुंह से यही निकलेगा न…ओह यार…शिट…क्या मुसीबत है…दो घड़ी चैन भी नहीं लेने देता…घर पर कोई संभालने वाला होता तो वहीं छोड़ आते...घर पर संभालने वाला कोई आए भी तो आए कहां से…जाइंट फैमिली में हमें रहना गवारा नहीं…न्यूक्लियर फैमिली मॉडर्न ट्रेंड है…फिर ये ओल्ड माइंडेड दादा-दादी, नाना-नानी के पास रह कर फाइव स्टार मैनर्स कैसे सीखेगा…ये क्या, हम ही कौन से बुज़ुर्गों की टोकाटाकी के बीच एक पल भी रह सकते हैं…उन्हें साथ रखने का मतलब अपनी आज़ादी पर अंकुश लगाना…

हां, पैसे से बच्चे की देखभाल के लिए मेड (आया) रखी जा सकती है…ज़्यादा पैसा है तो गवर्नेस ( हाइली-पेड मेड) की भी सेवाएं ली जा सकती हैं…मेड या गवर्नेस अच्छी नहीं मिलती, कोई बात नहीं ये ड्रीमवर्ल्ड जैसे एयरकंडीशन्ड क्रेश, प्लेइंग स्कूल, डे केयर सेंटर, किस दिन काम आएंगे…अब तो इनकी एसी गाड़ियां ही बच्चों को घर लेने भी आ जाती हैं, जो टाइम बताएगें, उसी टाइम पर वापस घर छोड़ने भी आ जाती हैं…कोई टेंशन नहीं…अंटी में बस माल होना चाहिए…पैसा फेंक, तमाशा देख…

आपकी नज़रों के सामने तो मेड मां से भी बढ़कर बच्चे की देखभाल करती नज़र आएंगी…लेकिन एक बार आपके काम पर जाने की देर है…फिर देखिए मेड के आपके ही घर पर महारानी जैसे ठाठ…बच्चा रोए, जिए उसकी भला से…दूध और पानी की बॉटल पास रख दीं…पीना है तो पी नहीं तो मर…मेड टीवी पर पसंदीदा सीरियल्स कभी नहीं छोड़ेगी…मौका मिला तो बॉय फ्रेंड से फोन पर बात भी कर लेगी…एक बार टीवी पर स्टिंग आपरेशन में एक मेड की करतूत दिखाई जा चुकी है…किस तरह बेरहमी से छोटे से मासूम को पीट रही थी…बेचारा माता-पिता से कोई शिकायत भी नहीं कर सकता…ठीक है सारी मेड या हेल्पर इस तरह के नहीं होते…लेकिन किसी एक भी बच्चे के साथ ऐसा हुआ है तो ख़तरे की संभावना को तो नहीं नकारा जा सकता…

आपके काम पर रहने के दौरान बच्चों को संभालने का एक और तरीका भी निकल आया है…एसी, पूल्स, प्रोजेक्टर से लैस ये क्रेश या प्लेइंग स्कूल देखने पर एक बार तो हर किसी को भ्रम होगा, कि बच्चा यहां से ज़्यादा खुश और कहीं नहीं हो सकता..लेकिन अब आपको ऐसे ही एक क्रेश की हक़ीक़त बताने जा रहा हूं…जिसे सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे…इस क्रेश में मासूमों को आधे-एक घंटे खिलाने के बाद नींद की हल्की दवा देकर चार-पांच घंटे के लिए सुला दिया जाता था…न बच्चे का रोना-धोना…न संभालने का झंझट…शाम को घर छोड़ने से एक घंटा पहले उठाया और बच्चा मां-बाप के हवाले…यहां भी ये कहा जा सकता है हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं हो सकतीं…कुछ क्रेश अच्छे भी हो सकते हैं…लेकिन आपके पास क्या गारंटी है कि बच्चे के साथ सब अच्छा ही हो रहा होगा…

ऐसी सूरत में फिर करें क्या…किसी पर तो विश्वास करना ही होगा…करिए न विश्वास अपनों पर…वही अपने जिन्होंने आपको भी रात जाग-जाग कर बड़ा किया है…वो क्या आपके लाडलों का आपकी पीठ के पीछे जान से ज़्यादा ध्यान नहीं रखेंगे…मैं बात कर रहा हूं दादा-दादी, नाना-नानी की…लेकिन इसके लिए आपको बड़ा सब्र का प्याला पीना होगा…एडजेस्टमेंट का फंडा सीखना होगा…काश संयुक्त परिवारों का फ़ायदा हम समझ सकें…काश हर भारतीय घर में एक बार फिर ऐसा हो सके…

मेरा पसंदीदा गाना सुनिए…

अपने तो अपने होते हैं….

Khushdeep Sehgal
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