अपनी टीआरपी कैसे बढ़ाएं…खुशदीप

कल मेरी पोस्ट…देश सबसे पहले…पर सागर की टिप्पणी आई थी कि यह हुआ सच्चा देशनामा… पिछले कुछ दिनों से ब्लोग्नामा बना हुआ था...सागर का ये तर्क मुझे अच्छा लगा…कि आखिर लिखा क्या जाए…ये कुंभ का मेला तो है नहीं जो छह या 12 साल बाद आएगा…यहां तो रोज़ ही कुंआ खोदना है…सागर ने जो प्रश्न किया वो अच्छे आलेख बनाम लोकप्रिय लेख में से क्या लिखा जाए, उसका सवाल उठाता है…

मेरे साथ आपने भी देखा होगा कि कई बहुत अच्छे और गंभीर लेख ब्लॉग पर आते हैं…लेकिन न तो वहां पाठक दिखते हैं और न ही टिप्पणियां…ये स्थिति बड़ी दुखद है…साथ ही ये लेखक के हौसले पर भी चोट करता है…मेरे साथ खुद भी ऐसा हुआ है कि जिस पोस्ट को मैंने गंभीर विषय मानते हुए बड़ी संजीदगी के साथ लिखा, वहां अपेक्षाकृत कम पाठक मिले…और जो पोस्ट मैंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में लिखीं, वहां गजब का रिस्पांस मिला…अपनी पोस्ट को मनचाहा रिस्पांस नहीं मिलता तो स्वाभाविक है हमारी नज़र उन पोस्ट पर जाती है जो सबसे ज़्यादा पढ़ी जा रही हैं या जहां सबसे ज़्यादा टिप्पणियां आ रही हैं…फिर हम अपने लेखन को लोकप्रियता की तराजू पर तौलना भी शुरू करते हैं…आखिर कमी कहां हैं…कमी कहीं नहीं है…कमी है बस एप्रोच की…मैंने जहां तक लोकप्रियता या टीआरपी के शास्त्र को समझा है तो जो चीज सबसे ज़्यादा नापसंद की जाती है वो है किसी चीज पर आपका उपदेश देना…यहां मुझे ताऊ रामपुरिया का प्रोफाइल में लिखा वो वाक्य फिर याद आ जाता है…यहां ज्ञान मत बधारिए, यहां सब ज्ञानी है…ऐसे में कोई कह सकता है कि ये तो बड़ी विचित्र स्थिति है…कोई गंभीर लेखन कर ही नहीं सकता क्या…यहां मेरा मानना है कि गंभीर लेखन भी लोकप्रिय हो सकता है, बस थोड़ा सा अपना स्टाइल बदलना होगा…

पहली बात तो गंभीर लेखन पर हमें अखबार और ब्लॉग का फर्क समझना चाहिए…अखबार सिर्फ पढ़ा जाता है…लेकिन ब्लॉग में लेखक और पढ़ने वाले का टिप्पणियों के माध्यम से सीधा संवाद होता है…अखबार में संवाद हो तो सकता है लेकिन वो बड़ा समय-खपाऊ और पत्रों के जरिए लंबा रास्ता होता है…ब्लॉग की सबसे बड़ी खूबी इसका इंटर-एक्टिव होना ही है…हाथों-हाथ रिस्पांस मिल जाता है…ऐसे में लेखन के वक्त हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमें सिर्फ अपने मन की बात ही नहीं कहते जाना…हमारे अंदर वो संयम और माद्दा भी होना चाहिए कि हम दूसरों को सुन भी सकें…अगर हम अपनी ही गाथा गाते रहेंगे तो ये इसी कहावत को चरित्रार्थ करेगा- पर उपदेश, कुशल बहुतेरे…

आपने देखा होगा रेडियो पर भी फाइन ट्यूनिंग होने पर ही स्टेशन पकड़ा जाता है और प्रसारण की आवाज साफ सुनी जाती है…अगर ट्यूनिंग नहीं होगी तो खरड़-खरड़ ही सुनाई देता रहेगा…मेरा ये सब लिखने का तात्पर्य यही है कि सबसे पहले आपको अपने पाठकों के साथ ट्यूनिंग बनानी होगी…उनकी वेवलैंथ को समझना होगा…तभी तो आप फ्रीक्वेंसी को पकड़ पाएंगे…अब मैं इसी बात को आपको सीधे और सरल शब्दों में बताता हूं…फरीदाबाद ब्लॉगर्स मीट में ब्लागिंग को बहुत गंभीरता और संजीदगी से लिए जाने के मुद्दे पर मैंने भी अपना पक्ष रखा था…मैंने वहां भी यही कहा था कि अगर आप कुछ कहना चाहते हैं तो साथ में आपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि लोग सुनना या पढ़ना क्या चाहते हैं…आपका लेखन तभी सार्थक हो पाएगा जब लोग आपको पढ़े…इसके लिए आपको चार बातें वो लिखनी होंगी जो लोग पसंद करते हैं…इन चार बातों के बीच आप अपनी एक बात भी रख सकते हैं, जिसका कि संदेश आप देना चाहते हैं…इस तरह आपका मकसद भी पूरा हो जाएगा और लोगों को भी वो डोज़ मिल जायेगी जिसकी वो अपेक्षा रखते हैं…

यहां स्टोरी-टैलर या किस्सागो (किस्से सुनाने वालों) को अपना आदर्श बनाया जा सकता है…मुझे याद है मैं बचपन में मेरठ में अपनी दुकान पर कभी-कभी बैठा करता था…बुधवार को हमारी दुकान खुलती थी लेकिन पूरा बाजार बंद रहता था…ऐसे में हमारी साथ वाली दुकान के बाहर थड़े पर एक जड़ी-बूटियां बेचने वाला डेरा लगा लेता था…पहलवान टाइप के उस शख्स को मैं अपनी दुकान से ही देखता रहता था…लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए वो सबसे पहले कमीज उतार कर पहलवान की तरह अपने बाजुओं पर हाथ मारना शुरू कर देता था…राह चलते लोगों का ध्यान अपने आप उसकी तरफ जाना शुरू हो जाता था…फिर वो पहलवान दो तीन मजेदार किस्से सुनाकर चार-पांच लोग इकट्ठे कर ही लेता था…फिर देखते ही देखते मजमा बढ़ने लग जाता था…उसका ज़ड़ी-बूटियां (कथित शक्तिवर्धक) बेचने का तरीका भी बड़ा दिलचस्प होता था…वो भीड़ मे से ही अपने ग्राहक ताड़ लेता था…फिर अकेले में उनसे बात करते हुए न जाने कौन सा मंत्र मारता था कि वो झट से जड़ी-बूटियां खरीदने के लिए तैयार हो जाते थे…उसे देखते हुए मैं यही समझता कि कितना बढ़िया सेल्समैन है और अपना माल बेचने के लिए क्या-क्या पापड़ नहीं बेलता…

लगता है जो मैं कहना चाहता था, वो आप तक पहुंच गया होगा…

स्लॉग ओवर
मक्खन बाहर से घर आया…मक्खनी के पास बैठा ही था कि मक्खनी ने कहा…क्या बाज़ार से मूली का परांठा खाकर आए हो…मक्खन ने कहा…नहीं… नहीं…सैंडविच खाया था…मक्खनी ने कहा…रहने दो…रहने दो…आदमी होठों से ही झूठ बोल सकता है और कहीं से नहीं…

Khushdeep Sehgal
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