अन्ना के बयान पर ‘नारी’ चुप क्यों…खुशदीप

मैं दो दिन से इंतज़ार कर रहा था कि हिंदी ब्लॉग जगत में अन्ना हज़ारे के मुंबई के एमएमआरडीए मैदान के मंच से दिए एक बयान पर कोई प्रतिक्रिया होगी…खास तौर पर रचना जी के नारी ब्लॉग पर…लेकिन कोई हलचल नहीं हुई…अन्ना ने कहा था कि बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी…

…मितुल प्रदीप…

अन्ना का इशारा संभवतया कांग्रेस और केंद्र सरकार की संवेदनहीनता की ओर ही था…राष्ट्रकवि प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने अन्ना हज़ारे के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है…अन्ना ने बेशक उपमा देने के लिए इस वाक्य का इस्तेमाल किया लेकिन मितुल के मुताबिक अन्ना का ये बयान महिलाओं का अपमान करने वाला है…उनका कहना है कि भारत में आज भी बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं से भेदभाव होता है…उनको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडित किया जाता है…जब अन्ना हजारे सार्वजनिक मंच से ऎसे बयान देते हैं तो बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं को प्रताड़ित करने वालों का दुस्साहस बढ़ता है….

प्रभात झा

अन्ना निश्चल हो सकते हैं…मुहावरा चुनने में गलती कर सकते हैं…लेकिन जिसे आप गलत समझते हैं उसके लिए बांझ का उदाहरण क्यों….ऐसा ही बयान मध्य प्रदेश के बीजेपी मुखिया प्रभात झा भी इसी महीने की सात तारीख को दे चुके हैं…उन्होंने कांग्रेस को बांझ पार्टी बताते हुए कहा था कि ये ईमानदार नेताओं को जन्म नहीं दे सकती…

इन दोनों महानुभावों से मेरी एक प्रार्थना है कि आप कांग्रेस को बेशक कैसे भी लताड़ें लेकिन किसी नारी के दिल को चोट पहुंचाने वाले शब्दों से ज़रूर बचें…नारी की ममता इस बात की मोहताज़ नहीं होती कि उसकी अपनी कोख से ही बच्चा जन्म लें…मदर टेरेसा पूरी दुनिया के लिए मदर थी…क्या उन्हें दीन-दुखियों के दर्द को समझने के लिए प्रसूति वेदना जानने की ज़रूरत पड़ी…यहां मुझे सुष्मिता सेन के एक बयान की भी याद आ रही है…बिना शादी किए एक बच्ची को गोद लेने वाली सुष्मिता सेन ने एक बार पूछे जाने पर कहा था कि मां होने के लिए अपना ही बच्चा होना जरूरी नहीं है…

ब्लॉग जगत इस मुद्दे पर क्या राय रखता है….

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