अन्ना के दौर में धर्मेंद्र के ‘सत्यप्रिय’ की याद…खुशदीप​

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धर्मेंद्र सिंह देओल यानि धर्मेंद्र…बुधवार को धर्म जी को सरकार ने पद्मभूषण देने का ऐलान किया तो मुझे लगा कि इस फौलादी शरीर के अंदर छिपे संवेदनशील इनसान की प्रतिभा के साथ पहली बार न्याय हुआ ..किसी के लिए वो ही-मैन के रूप में दिलों में बसे हैं तो किसी के लिए कभी दुनिया के सौ हैंडसम लोगों में शुमार की वजह से…पहचान कभी मीना कुमारी के लिए साफ्टकार्नर की वजह से.. कभी पहले से शादीशुदा होने के बावजूद हेमा मालिनी से शादी के लिए दिलावर ख़ान बनने की वजह से…ये शख्स सांसद भी बना लेकिन राजनीति की चालों को देखते हुए एक ही कार्यकाल में तौबा कर बैठा…​धर्मेंद्र को शोले के वीरू के तौर पर सब जानते हैं लेकिन मेरे लिए सबसे ऊपर धर्मेंद्र का फिल्म सत्यकाम में निभाया सत्यप्रिय का किरदार है…

​​​इसी फिल्म ने मुझे हमेशा के लिए धर्मेंद्र का मुरीद बना दिया…जब बहुत छोटा था जब स्कूल की ओर से ये टैक्स फ्री फिल्म दिखाई गई थी..उसके बाद न जाने कितनी बार ये फिल्म देख चुका हूं…जब भी देखता हूं, अंदर तक हिल जाता हूं…क्या कोई व्यक्ति सच और ईमानदारी के लिए इतना भी समर्पित हो सकता है…आज भ्रष्टाचार मिटाने की उम्मीद को लेकर हम…मैं अण्णा हूं…की टोपी लगाए घूमते हैं…लेकिन भ्रष्टाचार को ईमानदारी के चश्मे से देखना है तो मेरी गुज़ारिश है कि जिन्होंने सत्यकाम नहीं देखी है वो इसे ज़रूर देखें…नारायण सान्याल के बांग्ला उपन्यास सत्यकाम पर बनी ऋषिकेश मुखर्जी की ये कृति 1969 में आई थी, लेकिन इसमें दौर तब से 23 साल पहले यानि देश को आज़ादी मिलने से ठीक पहले का है…

​​​इसी फिल्म पर नेट पर रिसर्च के दौरान ब्लाग सिने-मंथन पर राकेश जी की लेखनी का कमाल देखने को मिला…पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि मेरे ज़ेहन में उमड़ने वाले विचारों को ही राकेश जी पहले ही शब्दों में ढाल चुके हैं…इसे पढ़ने के बाद मुझे फिर वैसा ही झटका लगा जैसा कि सत्यकाम फिल्म को देखने के बाद लगता है…राकेश जी का लिंक यहां दे रहा हूं…एक और विनती…अगर आप अभी जल्दी में हैं तो इसे न पढ़े..जब ज़रा फुर्सत से हो तभी इसे पढ़िएगा..

सत्यकाम (1969) : भारत में ईमानदारी की हत्या

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Khushdeep Sehgal
13 years ago

निशांत भाई, इतना बेहतरीन पढ़वाने के लिए शुक्रिया…केसवानी जी का सत्यकाम पर लेख राकेश जी के लेख का पूरक है..सब की सुविधा के लिए​
​यहीं से उसका लिंक दे रहा हूं…​
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सत्यकाम तुझे सलाम
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​जय हिंद…

रेखा श्रीवास्तव

satyakam ka satyapriya aacharya usa samay se jehan men basa hua hai jab in sab cheejon ke arth adhik samajh nahin aate the lekin bhrashtachar samajh aaya tha.
usa philm ko aaj yaad kiya aur dilaya isake liye dhanyavad aur aabhar

प्रवीण पाण्डेय

सत्यकाम ने अत्यन्त प्रभावित किया था, जीवन के द्वन्द्व को बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया है।

Atul Shrivastava
13 years ago

फिल्‍मों से परे जब भी धर्मेन्‍द्र को मंच पर देखा एक संवेदनशील इंसान नजर आया। वाकई उनको पहचाना गया अब आकर।
सत्‍यकाम को लेकर बढिया जानकारी।
इस फिल्‍म को फुर्सत में देखूंगा।

आभार।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं….

जय हिंद… वंदे मातरम्।

Ayaz ahmad
13 years ago

धर्म जी को पुरस्कार मिले अच्छा है
लेकिन ‘धर्म‘ को माना होता तो अश्लीलता परोसने वाले आज पुरस्कृत न होते।
सिनेमा ने आज नौजवान नस्ल को कहां ला खड़ा किया है यह सब देख ही रहे हैं।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

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डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

आपने देखा होगा कि कुत्ता जब अकेला होता है… और कमज़ोर होता है… गलियों में जब घूम रहा होता है… और उसे बाक़ी कुत्तों का भी डर होता है…. तो उसकी दुम अंदर की ओर दबी होती है… लेकिन डर के मारे भौंकता बहुत ज़्यादा है… फ़िर भी उसके इस डर को भांप कर सारे कुत्ते उस पर झपट पड़ते हैं… और वो सिर्फ ज़ोर ज़ोर से भौंकता ही रह जाता है….

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

यह फ़िल्म बहुत ही अच्छी है. धर्मेन्द्र को निकट से जानने वाले बताते हैं कि उनके जैसा इन्सान खोजना दुर्लभ तो नहीं, कठिन जरूर है.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Satish Saxena
13 years ago

मैं अन्ना टोपी और सूचना अधिकार अधिनियम का उपयोग करते हुए, कुछ लोगों को देख कर हैरान हूँ ….
लगता है की जेबकतरे भ्रष्टाचार मिटाने निकले हैं…

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