दीवाली बीत गई…आज गोवर्धन है…अखबारों की छुट्टी की वजह से आज की सुबह बड़ी सून है…किसी चीज़ की अहमियत तभी पता चलती है, जिस दिन वो नहीं होती…अखबार पढ़ना रूटीन में शामिल है…लेकिन इस अखबार को हमारे घर तक पहुंचाने में कितनी मेहनत लगती है, उस पर हमने शायद ही कभी गौर किया हो…कड़कती ठंड हो या बारिश, तड़के तीन बजे ही हॉकर किस तरह उठ कर कलेक्शन सेंटरों पर पहुंचते हैं…अखबारों को तरतीब से लगाते हैं और फिर घर घर बांटने के लिए निकलते हैं…कभी अखबार लेट पहुंचे या कोई दूसरा अखबार गलती से डाल जाए तो हम हॉकर की खबर लगाने में देर नहीं लगाते…लेकिन अखबार लेट होने के पीछे कई बार ऐसे कारण भी होते है जिस पर इनसान का बस नहीं चलता, जैसे कलेक्शन सेंटर पर अखबार की गाड़ियों का ही लेट पहुंचना…
मुझे याद है जब मैं प्रिंट मीडिया में था तो मेरठ से नोएडा रोज़ अप-डाउन करता था…रात को दो-ढाई बजे ड्यूटी खत्म करने के बाद ट्रिब्यून अखबार की टैक्सी से मेरठ वापस जाया करता था…ट्रिब्यून की पचास-साठ कापियां ही मेरठ बंटने के लिए जाया करती थी…लेकिन इसके लिए भी अखबार ने इतना पैसा खर्च कर बिना नागा ये सर्विस जारी रखी हुई थी…अखबार को पहुंचाने के लिए डेडलाइन हुआ करती है…लेकिन सर्दियों में कई बार इतना कोहरा हो जाता है कि हाथ को हाथ भी नहीं सूझता…ऐसे में भी गाड़ी का मंज़िल तक पंहुचना कितना बड़ा ज़ोखिम होता है, इसका अहसास मुझे उन्हीं दिनों में हुआ था…उस गाड़ी का ड्राइवर कुलवंत इतना एक्सपर्ट था कि ऐसे हालात में भी उसने कभी अखबार लेट नहीं होने दिया…
ऐसे कई लोग हैं, जिनका हमें अहसास हो न हो, लेकिन वो हमारी सहूलियत के लिए चुपचाप कर्मपूजा में लगे रहते हैं…आज अगर आपको अखबार नहीं मिला, और उसकी कमी महसूस कर रहे हैं तो हॉकर, एजेंट, ड्राइवरों जैसे अनसंग हीरो को याद कीजिए, जिनकी वजह से हम रोज़ अपने आस-पास और दुनिया जहान की ख़बरों से रूबरू होते हैं…अखबारों का महत्व आज लोकल खबरों के लिए ज़्यादा है…देश-दुनिया के बड़े शहरों की ख़बरें तो ख़बरिया चैनलों से हर वक्त मिलती ही रहती हैं…लेकिन अपने आसपास क्या हो रहा है, इसके लिए आज भी अखबार से सस्ता और अच्छा साधन और कोई नहीं है…
आज जैसे अखबार की कमी महसूस हो रही है, ऐसा ही अहसास तब भी होता है जब ब्लॉग पर नियमित लिखने वाले ब्लॉगर नागा करते हैं…अब उन्हें रोज़ पढ़ते बेशक महसूस नहीं होता हो…लेकिन उनकी पोस्ट कई दिन तक न आने पर कहीं न कहीं उनकी कमी खलने लगती है…ऐसा ही अभी हुआ जब निर्मला कपिला जी स्वास्थ्य कारणों से ब्लॉग जगत से काफ़ी दिन तक दूर रहीं…ऊपर वाले का शुक्र है कि अब वो पहले से कहीं बेहतर हैं और ब्लॉग पर फिर से हाज़िरी का उन्होंने ऐलान कर दिया है…इसी तरह अदा जी भी पिछले कई महीनों से निजी प्रायोजन में व्यस्त हैं…मुझे यकीन है कि उनके मधुर गीतों, लेखन शैली, चुटकीली टिप्पणियों को जिस तरह मैं मिस कर रहा हूं, और सब ब्लॉगर भी कर रहे होंगे…शोभना ने पीएचडी में व्यस्त होने की वजह से ब्लॉगिंग को पूरी तरह तिलांजलि दे रखी है…महफूज़ मियां का भी ब्लॉगिंग से लिया अवकाश ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा…इसके अलावा कुछ ब्लॉगर ऐसे भी हैं जिन्होंने लिखने की फ्रीक्वेंसी पहले से बहुत घटा दी है…जैसे कि अपने सतीश सक्सेना भाई…ये हरदिलअजीज ब्लॉगर आजकल एक-एक पोस्ट को लिखने में पंद्रह-बीस दिन का गैप ले रहे हैं….
कुछ ब्लॉगर ऐसे हैं जो फेसबुक पर ज़्यादा सक्रिय होने की वजह से ब्लॉगिंग में कम दिख रहे हैं…जो ज़रूरी कामों में व्यस्त हैं, उनके लिए कामना है कि उन्हें अपने उद्देश्यों में पूरी कामयाबी मिले…लेकिन उनसे ये इल्तज़ा भी है कि वंस इन ए ब्लू मून कभी-कभार चाहे माइक्रोपोस्ट के ज़रिए ही सही, ब्लॉग पर हाज़िरी ज़रूर लगा दिया करें…उनके लेखन के फैंस का इतना तो हक़ बनता है भाई…क्योंकि…
हर एक ब्लॉगर ज़रूरी होता है…
- बिलावल भुट्टो की गीदड़ भभकी लेकिन पाकिस्तान की ‘कांपे’ ‘टांग’ रही हैं - April 26, 2025
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
मुझे लगता है कि ये ब्लागिन्ग ही है जो मुझे मौत के मुंम्ह से खीँच लाती हैीअपने ब्लाग पर बेटे का कमेन्ट पढ कर आँखें नम हो गयी थी खुश रहो आशीर्वाद।
लौट रहे हैं सब , मगर धीरे धीरे ।
किसी एक का तो कोई नामयिच ही नहीं ले रहा है इत्ते दिनों से ..कैसी भूलने वाली दुनिया है यह भी !
एकदम सही कहा आपने अखबार कि तरह हर एक ब्लॉगर जरूरी होता है ….
सही है हर ब्लागर जरूरी होता है। जैसे भोजन में षडरस होने चाहिएं वैसे ही लेखन में भी षडरस चाहिए।
पहले जब मैं पाठक ही था अखबारों का तब त्यौहार के दूसरे दिन अखबार का न आना काफी अखरता था और लगता था कि ये अखबार वाले क्यों गैप करते हैं लेकिन पत्रकारिता में आने के बाद समझ में आया कि उनके लिए भी अवकाश कितना जरूरी है।
प्रिं
ट में था तो छुट्टी के दिन कई काम निपट जाते थे पर अब इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडे होने के बाद तो छुट्टी का सवाल ही नहीं पैदा होता…. जब खबरें हुईं भागादौडी शुरू…..
अब ब्लाग की आदत लग गई है तो भले ही महीने में खुद की चार छह पोस्ट आए पर अन्य ब्लागों पर हाजिरी एक तरह से दिनचर्या बन गई है…..
सही है .. कुछ ब्लोगरों को पढना रूटीन में शामिल हा गया है !!
मैं ब्लाग जगत में नियमितता बनाए रखने का पक्षधऱ हूँ। पर पिछले दिनों बहुत अनियमित हुआ हूँ। कोशिश है फिर से नियमितता बन सके।
खुशदीप भाई ,
इस प्यारी शिकायती पोस्ट के लिए आभार !
मैं आपकी शिकायत दूर करने का प्रयत्न अवश्य करूंगा …आप जैसे संवेदनशील और बेहतरीन शख्शियत को नज़रंदाज़ करने की हिम्मत नहीं हैं भाई !
शुभकामनायें आपको !
हमारे यहां तो आज अखबार आया है जी। कल क्या होगा देखा जायेगा। हां ब्लॉगर कई इधर नहीं दिखते। 🙁
बिना अखबार बहुत ही सूनी सुबह होती है, और वह समय भरना बहुत मुश्किल होता है।
वैसे ही हर एक ब्लॉगर बहुत जरूरी होता है।
लाख टके की बात….अखबार बिन सब सून लग रही थी आज की सुबह……यही हाल ब्लॉग में होने लगा है…
बिलकुल हर ब्लॉगर जरुरी होता है.
सच कहा आपने, उनके लिखना बन्द करने पर ही उनकी याद आती है।
http://kalam-e-saagar.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
जी!…ज़रूर…क्योंकि हर एक ब्लॉगर ज़रूरी होता है…
आज तो अखबार आया है! कल नहीं आयेगा।