केजरीवाल ‘आप’, अन्ना ‘बाप’…खुशदीप


अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम ‘आम आदमी पार्टी ‘ (AAP) रखा है…अभी तक जिस ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ (IAC) के बैनर तले वो मौजूदा राजनीतिक पार्टियों की नाक में दम करते रहे हैं, उसे वो अन्ना हजारे की इच्छा के मुताबिक उनके गैर-राजनीतिक संगठन के लिए छोड़ने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं…लेकिन मेरी समझ से अब अन्ना को भी अपने संगठन के नाम को लेकर रणनीति बदल देनी चाहिए…केजरीवाल के अपनी पार्टी के नाम को सावर्जनिक करने के बाद तो खास तौर पर…अन्ना को अपने संगठन का नाम ‘BAAP’ (बहुत आम आदमी परेशान) रख देना चाहिए…ठीक शहंशाह के अमिताभ की तरह…रिश्ते में तो हम तुम्हारे ‘बाप’ लगते हैं, नाम है किसन  बापट बाबूराव हजारे...बापू तो अब इस देश के लिए दोबारा आएंगे नहीं, बाप ही सही…

आम आदमी तो इस देश का बहुत भोला है…बापू ने जिस कांग्रेस को आज़ादी के बाद भंग कर देने की इच्छा जताई, वही कांग्रेस इस आम आदमी को पिछले 65 साल में से 55 साल तक पोपट बनाती रही…बाकी बचे दस साल में जनता पार्टी, जनता दल, संयुक्त मोर्चा और एनडीए ने भी इस देश पर राज किया…इन गैर कांग्रेसी विकल्पों को पांच बार आम आदमी ने बड़ी उम्मीदों के साथ मौका दिया तो इन्होंने भी उसे मायूस करने के अलावा और कुछ नहीं किया…

अब करते हैं आज की बात…आज के आम आदमी की बात…अब ऐसा कहने वालों की कमी नहीं कि केजरीवाल को देश की कमान मिली तो आम आदमी का नसीब बदल जाएगा…आम आदमी एक बार फिर केजरीवाल से बड़ी उम्मीदें पालने लगा है…वही आम आदमी जिसे चुनाव जीतने वाली हर पार्टी वैसे ही बजाती आई है जैसे मंदिर के घंटे को कोई भी बजा सकता है…सत्ता में मौजूद पार्टी के कुशासन को संगठित तौर पर कोई भी चुनौती देता है तो उस शख्स या संगठन में आम आदमी को अपना हीरो नज़र आने लगता है…फिर यही आम आदमी अपनी मुसीबतें जल्दी खत्म होने की सोच कर गाने लगता है…के आप मुझे अच्छे लगने लगे…सपने सच्चे लगने लगे….

अब गाने का ज़िक्र आया है, तो इसे सुन भी लीजिए….कैसे इन मोहतरमा को कोई एक जनाब बहुत अच्छे लगने लगे हैं…कैसे उसके मन में उम्मीदों का सागर हिलोरें मारने लगा है…क्या वैसी ही सूरत आज देश के आम आदमी की भी है….केजरीवाल के ‘आप’ को लेकर…

आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने सच्चे लगने लगे,
आहा आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने सच्चे लगने लगे,
नैन सारी रैन जगने लगे.


के आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने  सच्चे लगने लगे…
के आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने  सच्चे लगने लगे…


बातें यही होने लगी गांव में,
बातें यही होने लगी गांव में,
छुपती फिरूं मैं धूप-छांव में,
ज़ंजीरें फौलाद की हैं पांव में,
मगर छन-छन्नन घुंघरू बजने लगे,


आहा, आप मुझे अच्छे लगने लगे,
नैन सारी रैन जगने लगे
के आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने सच्चे लगने लगे…
अंखियों को भेद खोलना आ गया है,
अंखियों को भेद खोलना आ गया,
मेरे मन को भी डोलना आ गया,
खामोशी को बोलना आ गया,
देखो गीत मेरे मुख पे सजने लगे,


आहा आप मुझे अच्छे लगने लगे,
नैन सारी रैन जगने लगे,
के आप मुझे अच्छे लगने लगे,
सपने सच लगने लगे…

( फिल्म…जीने की राह (1969),  गायिका…लता मंगेशकर,  गीतकार…आनंद बक्षी, संगीतकार…लक्ष्मीकांत प्यारेलाल)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
बेनामी
बेनामी
12 years ago

प्रिय ब्लॉगर मित्र,

हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम

http://indiantopblogs.com

पुनश्च:

1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

Pankaj
12 years ago

Ab Dekhana ye hai ki kya aam adami ko kejariwal achche lagane lage ..?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

रब्बा .. मैं मर जावां … अब तो आइडेंटटीटी क्राइसिस हो गयी … एक यही आम आदमी का टैग बचा था… नासपीटों ने उसे भी पेटेंट करा लिया ..

प्रवीण पाण्डेय

आप की पार्टी..

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x