NaMo या RaGa…पर बंदे अच्छे हैं ?…खुशदीप

नमो नम: या रागा रागा…NaMo या RaGa…नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी…कोई चाहे ना चाहे लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव के लिए सियासत के  इन दो सूरमाओं पर सबसे ज़्यादा दांव लगाया जा रहा है…

नरेंद्र मोदी खुद मुंह से कह चुके हैं कि ब्रैंड गुजरात अब ब्रैंड इंडिया की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है…यानी मोदी को अपने कद के लिए गांधीनगर की जगह दिल्ली का दरबार ज़्यादा माकूल नज़र आने लगा है…बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी कह दिया है कि 2014 चुनाव में पार्टी के कमांडर मोदी होंगे…

लेकिन राहुल अपने मुंह से कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है…राहुल के मन में क्या है, ये तो पता नहीं, लेकिन उनकी ज़ुबान पर दूसरा ही राग है…राहुल कांग्रेस उपाध्यक्ष के नाते दो दिन पहले बंद कमरे में करीब 45 कांग्रेसी दिग्गज़ों की क्लास ले रहे थे…वहां अपने नंबर बढ़वाने के मकसद से एक मशविरा देना उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को बहुत भारी पड़ा…

बहुगुणा ने बस इतना ही कहा था कि राहुल जी को प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी संभाल लेनी चाहिए…ये सुनना ही था कि राहुल बिफर पड़े…आप अपना काम करिए…बिन मांगी सलाह मत दीजिए…प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) के साथ क्या दिक्कत है? वे अच्छा काम कर रहे हैं…मैं दोबारा इस तरह की बात नहीं सुनना चाहता….

राहुल ने ये भी कहा कि आप बेशक मुझे प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं…लेकिन मेरे लिए मुझे सौंपी गई पार्टी उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी को मनोयोग से पूरा करना ज़्यादा महत्वपूर्ण है…ये तय करना कांग्रेस आलाकमान का काम है कि कौन प्रधानमंत्री बने और कौन मुख्यमंत्री…फिलहाल प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर समस्या  नहीं है, समस्या पार्टी संगठन को लेकर है…जिस पर सबसे पहले ध्यान देने की ज़रूरत है…

ये सुनकर बहुगुणा सन्न रह गए…थोड़ी देर पहले बहुगुणा के सुझाव पर जिन कांग्रेसी दिग्गजों ने मेज थपथपाकर वफ़ादारी का धर्म निभाना चाहा था, उन सबके भी अब काटो तो ख़ून नहीं था…
राहुल यहीं तक चुप नहीं रहे…वो आगे बोले…उत्तर प्रदेश में कम से कम 200 उम्मीदवार हैं, जो मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं…उनमें से कुछ तो संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और अमेरिका के राष्ट्रपति पद के भी उम्मीदवार हो सकते है…

राहुल की नेतृत्व क्षमता पर बेशक सवालिया निशान लगे हों, लेकिन उनकी ये अपने ही पार्टीजनों को खरी-खरी कुछ आश्वस्त करती है…राहुल विरोधियों से ज़्यादा इन दिनों अपनों पर ही अटैक कर रहे हैं…विपक्षी पार्टियों की जगह अपने ही संगठन की कमज़ोरियों को ज़्यादा गिना रहे हैं…राहुल जानते हैं कि जब तक कांग्रेस के शरीर को ही रोगमुक्त नहीं किया जाएगा तब तक कैसे एनडीए के डीएनए को पंक्चर किया जाएगा या थर्ड फ्रंट के थ्रेट को फ्रैक्चर किया जाएगा…

जिस तरह राहुल का अपनी ही पार्टी को आइना दिखाना आश्वस्त करता है, उसी तरह मोदी का एसआरसीसी में दिया विकासोन्मुखी भाषण भी देश की भावी राजनीति को लेकर कुछ संभावनाएं जगाता है…प्रधानमंत्री पद के दो अहम उम्मीदवारों के ये बोल, उन्हें कम से कम देश के दूसरे नेताओं से तो अलग कतार में खड़ा करते ही हैं…उन नेताओं से जो सकारात्मकता को छोड़ हर वक्त नकारात्मक रुख अपनाते हुए विरोधियों की खामियों को ही गिनाते रहते हैं…

मोदी गुजरात दंगों के कड़वे अतीत को भुलाकर अब ब्रैंड इंडिया का लोहा दुनिया भर में मनवाना चाहते हैं…राहुल अपने सियासी नौसिखिएपन से छुटकारा पाने के लिए भारत के असली मर्म को जानने की खातिर इसका हर कोना नापना चाहते हैं…मोदी देश के 65 फीसदी युवाओं की आबादी को न्यू एज पॉवर बताते हैं…राहुल पावर के पायज़न होने की दुहाई देते हुए पार्टी के युवाओं को लोगों की भलाई के लिए दिन-रात एक करने का मंत्र देते हैं…

मोदी और राहुल का ये सियासी आचरण कम से कम मायावती, मुलायम सिंह यादव और शरद पवार जैसे नेताओं से तो अच्छा है…जो यही दांव लगाए बैठे हैं कि कब दिल्ली की सत्ता का छींका फूटे और उनका प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब हकीकत बन जाए…

मायावती नागपुर में बीएसपी कार्यकर्ताओं का आह्वान करती हैं कि अगर वो उन्हें लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराते देखना चाहते हैं तो जी-जान से पार्टी को लोकसभा चुनाव में सफ़ल बनाने के लिए जुट जाएं….मुलायम समाजवादियों को नसीहत देते हैं कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री बनाना है तो अनुशासन में रहना सीखें…शरद पवार बोलते तो कुछ नहीं लेकिन मौका मिलते ही चौक्का मारने से कभी पीछे भी नहीं हटते…नीतीश मुंह से अब अल्लाह-अल्लाह करते हैं लेकिन बीते 13-14 साल से राम-राम का सियासी राग जपने वाली पार्टी की मदद से ही सत्ता की मलाई खाते आ रहे है…जहां तक जयललिता और ममता बनर्जी की बात है तो उनके सियासी तीरों के बारे में कुछ ना ही कहना, बेहतर होगा…

यानी लब्बोलुआब यही कि NaMo या RaGa में लाख खामियां सही, सियासी लीडरशिप के लिए…. पर बंदे अच्छे हैं…