HARMONY- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना…खुशदीप

मज़हब या धर्म…मैं अक्सर इस विषय पर लिखने से बचता हूं…मेरी इस बारे में क्या राय है, ये मैं तेहरान रेडियो को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट कर चुका हूं…धर्म कोई भी हो, इनसान से इनसान को प्यार करना ही सिखाता है, नफ़रत करना नहीं…ये तो हम इनसान ही है जिन्होंने अपने अपने हिसाब से धर्म की व्याख्या कर इसे झगड़े-फ़साद की वजह बना दिया…और ज़्यादा कुछ नहीं कहता, बस दो गानों के ज़रिए अपनी बात समझाने की कोशिश करता हूं…पहले हिंदी सिनेमा के सबसे सुंदर और प्रभावशाली भजन की बात…1952 में रिलीज़ फिल्म बैजू बावरा के इस भजन को लिखा शकील बदायूंनी साहब ने, संगीत दिया नौशाद साहब ने और आवाज़ की नेमत बख्शी मोहम्मद रफ़ी साहब ने…सुनिए ये भजन…

मन तड़पत हरि दर्शन को आज…

अब एक और गाने की बात जो मुझे दिल से बहुत पसंद है…1979 में रिलीज़ फिल्म दादा के इस गाने को गाया सुमन कल्याणपुर जी ने, संगीत दिया ऊषा खन्ना जी ने और बोल दिए गौहर कानपुरी साहब ने…सुनिए…

अल्लाह तू करम करना, मौला तू रहम करना…

दोनों गानों को यू ट्यूब पर भी देख सकते हैं…

 
Mr Laughter Corner
Why tears are not coming out from Makkhan’s eyes, to find click this…

error

Enjoy this blog? Please spread the word :)