(खुशवंत सिंह का मैं हमेशा बहुत बड़ा मुरीद रहा हूं…खुद को बड़ा
सौभाग्यशाली समझता हूं कि मेरे नाम भी उनकी तरह खुश से ही शुरू होता है…उन्हें
श्रद्धांजलि देने के लिए मैंने तय किया है कि अपने ब्लॉग पर हर शुक्रवार रात को
खुशबतिया नाम से एक कॉलम लिखूं…प्रयास पसंद आए तो बताइएगा…आप से एक निवेदन और
है कि आप इस कॉलम में शामिल करने के लिए मेरे ई-मेल sehgalkd@gmail.com
पर चुटकुले या मज़ेदार बातें भेजनें का कष्ट
करें…आप के नाम के साथ उन्हें प्रकाशित करने में मैं खुद को खुशकिस्मत समझूंगा…)
सौभाग्यशाली समझता हूं कि मेरे नाम भी उनकी तरह खुश से ही शुरू होता है…उन्हें
श्रद्धांजलि देने के लिए मैंने तय किया है कि अपने ब्लॉग पर हर शुक्रवार रात को
खुशबतिया नाम से एक कॉलम लिखूं…प्रयास पसंद आए तो बताइएगा…आप से एक निवेदन और
है कि आप इस कॉलम में शामिल करने के लिए मेरे ई-मेल sehgalkd@gmail.com
पर चुटकुले या मज़ेदार बातें भेजनें का कष्ट
करें…आप के नाम के साथ उन्हें प्रकाशित करने में मैं खुद को खुशकिस्मत समझूंगा…)
अलविदा! बेबाक़ी के सरदार…
खुशवंत सिंह सेंचुरी मारने से एक साल पहले आउट हो गए…उम्र के इस
पड़ाव तक पहुंचने के बाद भी ज़िंदादिली ने उनका साथ नहीं छोड़ा…लेखन में साफ़गोई
और बेबाकी…यही थी वो बात जिसके लिए उनके मुरीद उनसे मुहब्बत करते थे…शायद यही
वजह है कि खुशवंत सिंह के जाने के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें अपनी तरह से याद करने
वालों का तांता लग गया…उनके लोकप्रिय स्तंभ का नाम बेशक रहा हो- ना काहू से
दोस्ती, ना काहू से बैर…लेकिन खुशवंत सिंह के देहांत के बाद उनसे बैर रखने वाले सोशल
मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने से नहीं चूके…उनके पिता शोभा सिंह का नाम ले-ले कर
उन्हें कोसा गया…खुशवंत सिंह को देशद्रोही का पुत्र बताते हुए यहां तक कहा गया
कि उन्हें नर्क में ही जगह मिलेगी…ये सही है कि खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह
ने सेंट्रल असेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को बम फेंकने के मामले में शहीद भगत सिंह और
शहीद बटुकेश्वर दत्त के ख़िलाफ़ गवाही दी थी…खुशवंत सिंह ने भी इस बात को
स्वीकार करने से कभी इनकार नहीं किया…लेकिन खुशवंत ये भी कहते रहे कि शोभा सिंह
की इस गवाही की वजह से भगत सिंह को फांसी नहीं हुई थी…शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव
और शहीद राजगुरू को लाहौर षड्यंत्र केस (मुख्यत: ब्रिटिश
पुलिस अधीक्षक जे पी साण्डर्स की हत्या) में संलिप्तता के चलते फांसी दी गई
थी…शोभा सिंह के लिए ये तर्क भी दिया जाता है कि असेम्बली बम मामले में उन्होंने
जो अपनी आंखों से देखा था, वही उन्होंने गवाही में बयां किया था…यहां एक प्रश्न
उठता है कि शोभा सिंह ने ग़लत कृत्य किया भी था तो उसके लिए उनके पुत्र को भी
ज़िम्मेदार मानना कौन सा इनसाफ़ है…किसी की मृत्यु के बाद भी उसे ऐसे कृत्य के
लिए बुरा-भला कहना, जो उसने किया ही नहीं, ये कौन सी भारतीय संस्कृति है….
पड़ाव तक पहुंचने के बाद भी ज़िंदादिली ने उनका साथ नहीं छोड़ा…लेखन में साफ़गोई
और बेबाकी…यही थी वो बात जिसके लिए उनके मुरीद उनसे मुहब्बत करते थे…शायद यही
वजह है कि खुशवंत सिंह के जाने के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें अपनी तरह से याद करने
वालों का तांता लग गया…उनके लोकप्रिय स्तंभ का नाम बेशक रहा हो- ना काहू से
दोस्ती, ना काहू से बैर…लेकिन खुशवंत सिंह के देहांत के बाद उनसे बैर रखने वाले सोशल
मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने से नहीं चूके…उनके पिता शोभा सिंह का नाम ले-ले कर
उन्हें कोसा गया…खुशवंत सिंह को देशद्रोही का पुत्र बताते हुए यहां तक कहा गया
कि उन्हें नर्क में ही जगह मिलेगी…ये सही है कि खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह
ने सेंट्रल असेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को बम फेंकने के मामले में शहीद भगत सिंह और
शहीद बटुकेश्वर दत्त के ख़िलाफ़ गवाही दी थी…खुशवंत सिंह ने भी इस बात को
स्वीकार करने से कभी इनकार नहीं किया…लेकिन खुशवंत ये भी कहते रहे कि शोभा सिंह
की इस गवाही की वजह से भगत सिंह को फांसी नहीं हुई थी…शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव
और शहीद राजगुरू को लाहौर षड्यंत्र केस (मुख्यत: ब्रिटिश
पुलिस अधीक्षक जे पी साण्डर्स की हत्या) में संलिप्तता के चलते फांसी दी गई
थी…शोभा सिंह के लिए ये तर्क भी दिया जाता है कि असेम्बली बम मामले में उन्होंने
जो अपनी आंखों से देखा था, वही उन्होंने गवाही में बयां किया था…यहां एक प्रश्न
उठता है कि शोभा सिंह ने ग़लत कृत्य किया भी था तो उसके लिए उनके पुत्र को भी
ज़िम्मेदार मानना कौन सा इनसाफ़ है…किसी की मृत्यु के बाद भी उसे ऐसे कृत्य के
लिए बुरा-भला कहना, जो उसने किया ही नहीं, ये कौन सी भारतीय संस्कृति है….
हर हर मोदी…
कहते है राजनीति में जिस सीढ़ी से चढ़ा जाता है, ऊपर पहुंचने के बाद
सबसे पहला काम उसी सीढ़ी को लात मारने का किया जाता है…बीजेपी अब पूरी तरह मोदीत्व
को प्राप्त हो गई है…ऐसे में ‘लौहपुरुष’ लालकृष्ण आडवाणी की स्थिति सबसे दयनीय हो गई
है…बेचारे जो इच्छा जताते है, होता ठीक उसके उलट है…’मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी’…दीवार पर लिखी इस इबारत को आडवाणी जितनी जल्दी
आत्मसात कर लेंगे, उतना ही उनकी बची-खुची राजनीतिक सेहत के लिए अच्छा रहेगा…वैसे
भी नरेंद्र मोदी को लेकर बीजेपी इतनी आश्वस्त हो चली है कि अब उसे भगवान का भी डर
नहीं रह गया है…तभी तो दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष डॉ हर्षवर्धन ताल ठोक कर कह रहे
हैं कि अब भगवान भी चाहें तो मोदी को जीतने से नहीं रोक सकते…बीजेपी की तरफ़ से
नारा भी उछाला गया है…’हर हर मोदी, घर घर मोदी’…कभी जय श्रीराम के उद्घोष से चुनावी सियासत के
उत्कर्ष पर पहुंचने वाली बीजेपी इतनी निश्चिंत है कि उसे अब मोदी का नाम ही चुनावी
वैतरणी पार करने के लिए पर्याप्त नज़र आता है…फिल्म उपकार का गाना ना जाने क्यों
याद आ रहा है…’देते हैं भगवान को धोखा, इन्सां को क्या छोड़ेंगे’…
सबसे पहला काम उसी सीढ़ी को लात मारने का किया जाता है…बीजेपी अब पूरी तरह मोदीत्व
को प्राप्त हो गई है…ऐसे में ‘लौहपुरुष’ लालकृष्ण आडवाणी की स्थिति सबसे दयनीय हो गई
है…बेचारे जो इच्छा जताते है, होता ठीक उसके उलट है…’मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी’…दीवार पर लिखी इस इबारत को आडवाणी जितनी जल्दी
आत्मसात कर लेंगे, उतना ही उनकी बची-खुची राजनीतिक सेहत के लिए अच्छा रहेगा…वैसे
भी नरेंद्र मोदी को लेकर बीजेपी इतनी आश्वस्त हो चली है कि अब उसे भगवान का भी डर
नहीं रह गया है…तभी तो दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष डॉ हर्षवर्धन ताल ठोक कर कह रहे
हैं कि अब भगवान भी चाहें तो मोदी को जीतने से नहीं रोक सकते…बीजेपी की तरफ़ से
नारा भी उछाला गया है…’हर हर मोदी, घर घर मोदी’…कभी जय श्रीराम के उद्घोष से चुनावी सियासत के
उत्कर्ष पर पहुंचने वाली बीजेपी इतनी निश्चिंत है कि उसे अब मोदी का नाम ही चुनावी
वैतरणी पार करने के लिए पर्याप्त नज़र आता है…फिल्म उपकार का गाना ना जाने क्यों
याद आ रहा है…’देते हैं भगवान को धोखा, इन्सां को क्या छोड़ेंगे’…
राहुल और ‘रिटायरमेंट’…
18 मार्च को उत्तर-पूर्व में चुनावी प्रचार का आगाज़ करने के लिए
राहुल गांधी अरुणाचल प्रदेश में थे…वहां हपोली में उनकी जनसभा थी…हपोली के
नैसर्गिक सौंदर्य से राहुल इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि
रिटायरमेंट के बाद वो यहीं बसना पसंद करेंगे…इस पर बीजेपी के समर्थकों की ओर से सोशल
मीडिया पर चुटकी भी ली गई कि 16 मई को लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद राहुल अपनी
इस इच्छा को पूरा कर सकते हैं…राहुल का फोकस लोकसभा चुनाव के साथ पार्टी का
चेहरा-मोहरा बदलने पर है…युवाओं को तरज़ीह देकर राहुल की कोशिश कांग्रेस को
गतिवान बनाने की है…राहुल यथास्थिति को तोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन पार्टी
के ओल्ड गार्ड्स को उनकी ये शैली हज़म नहीं हो पा रही है…कई दिग्गज़ नेताओं ने
चुनाव से अलग रहने की ही इच्छा जताई…तो वहीं दिग्विजय सिंह और आनंद शर्मा जैसे
नेता भी हैं जो स्वेच्छा से मोदी के ख़िलाफ़ काशी के चुनावी रण में उतरना चाहते
हैं…सही कहा है कि जो दूरदर्शी होते हैं वो वक्त की नज़ाकत के मुताबिक अपने को
ढालने में देर नहीं लगाते…
राहुल गांधी अरुणाचल प्रदेश में थे…वहां हपोली में उनकी जनसभा थी…हपोली के
नैसर्गिक सौंदर्य से राहुल इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि
रिटायरमेंट के बाद वो यहीं बसना पसंद करेंगे…इस पर बीजेपी के समर्थकों की ओर से सोशल
मीडिया पर चुटकी भी ली गई कि 16 मई को लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद राहुल अपनी
इस इच्छा को पूरा कर सकते हैं…राहुल का फोकस लोकसभा चुनाव के साथ पार्टी का
चेहरा-मोहरा बदलने पर है…युवाओं को तरज़ीह देकर राहुल की कोशिश कांग्रेस को
गतिवान बनाने की है…राहुल यथास्थिति को तोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन पार्टी
के ओल्ड गार्ड्स को उनकी ये शैली हज़म नहीं हो पा रही है…कई दिग्गज़ नेताओं ने
चुनाव से अलग रहने की ही इच्छा जताई…तो वहीं दिग्विजय सिंह और आनंद शर्मा जैसे
नेता भी हैं जो स्वेच्छा से मोदी के ख़िलाफ़ काशी के चुनावी रण में उतरना चाहते
हैं…सही कहा है कि जो दूरदर्शी होते हैं वो वक्त की नज़ाकत के मुताबिक अपने को
ढालने में देर नहीं लगाते…
स्लॉग ओवर…
जब बॉबी
डॉर्लिंग पैदा हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, धोखा हुआ है…
जब एकता कपूर पैदा हुई तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, कौन हुआ जानने के
लिए देखिए, अगला एपिसोड…
जब प्रभू देवा पैदा हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, बच्चा जब हिलना
बन्द करेगा तो चेक करके बताएगें कि क्या हुआ है…
जब दया (CID) पैदा हुआ तो सारे डॉक्टरो ने भागकर हॉस्पिटल के सारे गेट बन्द
कर दिए…
जब बॉबी
डॉर्लिंग पैदा हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, धोखा हुआ है…
जब एकता कपूर पैदा हुई तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, कौन हुआ जानने के
लिए देखिए, अगला एपिसोड…
जब प्रभू देवा पैदा हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, बच्चा जब हिलना
बन्द करेगा तो चेक करके बताएगें कि क्या हुआ है…
जब दया (CID) पैदा हुआ तो सारे डॉक्टरो ने भागकर हॉस्पिटल के सारे गेट बन्द
कर दिए…
जब सुरेश कलमाड़ी पैदा हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई हो, घोटाला हुआ है…जांच जारी है…
जब दिग्विजय सिंह का जन्म हुआ तो डॉक्टर घरवालों से बोला- बधाई
हो, आपके साथ मज़ाक हुआ है…
केजरीवाल के पैदा होने से पहले डॉक्टर घरवालों से बोला- बच्चा आ
नही रहा है, अन्दर धरने पर बैठा है…
हो, आपके साथ मज़ाक हुआ है…
केजरीवाल के पैदा होने से पहले डॉक्टर घरवालों से बोला- बच्चा आ
नही रहा है, अन्दर धरने पर बैठा है…
(पागलपंती के फेसबुक वॉल से साभार)
Keywords:Khushwant Singh, Khushbatiya
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