परंपरा के अनुसार इस तरह की असाधारण स्थिति में कैबिनेट के वरिष्ठतम मंत्री को अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जाती है। राजीव की नियुक्ति से ये साबित हुआ कि राष्ट्रपति को असाधारण स्थिति में अपने विवेक के मुताबिक किसी को भी प्रधानमंत्री चुने जाने का असीमित अधिकार हैं। लेकिन बाद में उस नियुक्ति को लोकसभा से अनुमोदन मिलना आवश्यक है।
ज़ैल सिंह के कार्यकाल में उनके आचरण से जुड़े मुद्दों को लोकसभा में उठाने की कोशिश की गई थी। ये वही वक्त था जब पंजाब में अलगाववाद को हवा दी जा रही थी। यद्यपि स्पीकर ने राष्ट्रपति को लेकर किसी मुद्दे को सदन में उठाने की इजाज़त नहीं दी। ज़ैल सिंह ने अपने कार्यकाल में पोस्टल बिल को मंज़ूरी न देकर इतिहास भी रचा। दोनों सदनों के पारित किए जाने के बावजूद पोस्टल बिल क़ानून नहीं बन सका। 1986-87 आते-आते ज़ैल सिंह और राजीव गांधी के बीच रिश्ते इतने तल्ख हो गए थे कि यहां तक कहा जाने लगा, ज़ैल सिंह राजीव गांधी सरकार को बर्खास्त करने के बाद देश में राष्ट्रीय सरकार बनवा सकते हैं।
1987 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ऐसी भी रिपोर्ट आई थीं कि तीसरे उम्मीदवार के ज़रिए पूरे राष्ट्रपति चुनाव को अवैध ठहराने की कोशिश की जा सकती है। जिससे ज़ैल सिंह ही राष्ट्रपति बने रह सकें और राजीव सरकार को बर्खास्त कर दें। राष्ट्रपति पद के तीसरे उम्मीदवार के नामांकन को रद्द करने की काफी कोशिश भी हुईं, लेकिन सब नाकाम रहीं। चुनाव बिना किसी रुकावट हुए।
क्रमश:
Related posts:
- बिलावल भुट्टो की गीदड़ भभकी लेकिन पाकिस्तान की ‘कांपे’ ‘टांग’ रही हैं - April 26, 2025
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
ओह इत्ती सारी जानकारी ,अच्छा लगा पढ़कर जानना
हमें तो पहली बार पता लगा जी, शुक्रिया।
———
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
क्यो बार बार जख्मो को छेडते हे जी….
जानकारियाँ ताजा हुईं।
राजनीति का लोकतन्त्र।
संजीवा रेड्डी जी भले ही बिना चुनाव लड़े राष्ट्रपति बने हों , लेकिन इससे पहले वह कांग्रेसी उम्मीदवार बनकर चुनाव हार भी चुके थे ।
इतिहास के पन्ने सही पलट रहे हो भाई ।
तात्कालीक इतिहास की पुनरावृति के लिए आभार
बढिया जानकारी………आभार्।
SAHEJNE YOGYA SRINKHLA…..
YSE GULLI AUR MAKHHAN KO ANTIM DO LINE DI JA SAKTI HAI…..
PRANAM.
बहुत बढ़िया खुशदीप भाई … लगे रहिये !
आपके जरिये इतिहास से रु-बरु होने का मौक़ा मिल रहा है ..जारी रखिये
उन दिनों ढेरों पत्रिकाएं रविवार , माया , इंडिया टुडे आदि पढ़ते रहने के कारण इस इतिहास के साक्षी हम भी रहे …!
देश का एक बहुत मुख्य इतिहास चल रहा है। आजादी के बाद का इतिहास और राजनीति मुझ जैसों को मालूम नहीं है, इसलिये काम की चीज है।