26 जनवरी विशेष…जैल सिंह-राजीव गांधी के बीच तल्ख़ी…खुशदीप

11 फरवरी 1977 को फ़खरूद्दीन अली अहमद के आकस्मिक निधन के बाद नीलम संजीवा रेड्डी जनता पार्टी के राज में राजनीतिक सर्वसहमति से देश के राष्ट्रपति बने। ऐसा पहली बार हुआ कि देश में बिना चुनाव लड़े ही कोई राष्ट्रपति बना। 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई। नीलम संजीवा रेड्डी का कार्यकाल खत्म होने के बाद 15 जुलाई 1982 को पूर्व गृह मंत्री ज़ैल सिंह देश के राष्ट्रपति बने। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के लिए उनका उत्तराधिकारी चुनने पर संकट जैसी स्थिति आ गई। इंदिरा गांधी की जिस दिन हत्या हुई उस दिन राजीव गांधी कोलकाता में थे। राजीव को जो फ्लाइट कोलकाता से लेकर दिल्ली आई उसी में उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया। विदेश दौरे पर गए ज़ैल सिंह भी उसी दिन शाम को दिल्ली लौटे। ज़ैल सिंह भी राजीव गांधी को पीएम नियुक्त किए जाने के लिए तैयार हो गए। राजीव न तो उस वक्त कांग्रेस सरकार में मंत्री थे और न ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए कोई बैठक की थी।

परंपरा के अनुसार इस तरह की असाधारण स्थिति में कैबिनेट के वरिष्ठतम मंत्री को अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जाती है। राजीव की नियुक्ति से ये साबित हुआ कि राष्ट्रपति को असाधारण स्थिति में अपने विवेक के मुताबिक किसी को भी प्रधानमंत्री चुने जाने का असीमित अधिकार हैं। लेकिन बाद में उस नियुक्ति को लोकसभा से अनुमोदन मिलना आवश्यक है।

ज़ैल सिंह के कार्यकाल में उनके आचरण से जुड़े मुद्दों को लोकसभा में उठाने की कोशिश की गई थी। ये वही वक्त था जब पंजाब में अलगाववाद को हवा दी जा रही थी। यद्यपि स्पीकर ने राष्ट्रपति को लेकर किसी मुद्दे को सदन में उठाने की इजाज़त नहीं दी। ज़ैल सिंह ने अपने कार्यकाल में पोस्टल बिल को मंज़ूरी न देकर इतिहास भी रचा। दोनों सदनों के पारित किए जाने के बावजूद पोस्टल बिल क़ानून नहीं बन सका। 1986-87 आते-आते ज़ैल सिंह और राजीव गांधी के बीच रिश्ते इतने तल्ख हो गए थे कि यहां तक कहा जाने लगा, ज़ैल सिंह राजीव गांधी सरकार को बर्खास्त करने के बाद देश में राष्ट्रीय सरकार बनवा सकते हैं।

1987 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ऐसी भी रिपोर्ट आई थीं कि तीसरे उम्मीदवार के ज़रिए पूरे राष्ट्रपति चुनाव को अवैध ठहराने की कोशिश की जा सकती है। जिससे ज़ैल सिंह ही राष्ट्रपति बने रह सकें और राजीव सरकार को बर्खास्त कर दें। राष्ट्रपति पद के तीसरे उम्मीदवार के नामांकन को रद्द करने की काफी कोशिश भी हुईं, लेकिन सब नाकाम रहीं। चुनाव बिना किसी रुकावट हुए।

क्रमश:

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Archana Chaoji
7 years ago

ओह इत्ती सारी जानकारी ,अच्छा लगा पढ़कर जानना

Dr. Zakir Ali Rajnish
14 years ago

हमें तो पहली बार पता लगा जी, शुक्रिया।

———
क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

राज भाटिय़ा

क्यो बार बार जख्मो को छेडते हे जी….

दिनेशराय द्विवेदी

जानकारियाँ ताजा हुईं।

प्रवीण पाण्डेय

राजनीति का लोकतन्त्र।

डॉ टी एस दराल

संजीवा रेड्डी जी भले ही बिना चुनाव लड़े राष्ट्रपति बने हों , लेकिन इससे पहले वह कांग्रेसी उम्मीदवार बनकर चुनाव हार भी चुके थे ।
इतिहास के पन्ने सही पलट रहे हो भाई ।

ब्लॉ.ललित शर्मा

तात्कालीक इतिहास की पुनरावृति के लिए आभार

vandana gupta
14 years ago

बढिया जानकारी………आभार्।

सञ्जय झा
14 years ago

SAHEJNE YOGYA SRINKHLA…..

YSE GULLI AUR MAKHHAN KO ANTIM DO LINE DI JA SAKTI HAI…..

PRANAM.

शिवम् मिश्रा

बहुत बढ़िया खुशदीप भाई … लगे रहिये !

sonal
14 years ago

आपके जरिये इतिहास से रु-बरु होने का मौक़ा मिल रहा है ..जारी रखिये

वाणी गीत
14 years ago

उन दिनों ढेरों पत्रिकाएं रविवार , माया , इंडिया टुडे आदि पढ़ते रहने के कारण इस इतिहास के साक्षी हम भी रहे …!

नीरज मुसाफ़िर

देश का एक बहुत मुख्य इतिहास चल रहा है। आजादी के बाद का इतिहास और राजनीति मुझ जैसों को मालूम नहीं है, इसलिये काम की चीज है।

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