बॉलीवुड का एक बात के लिए मैं बहुत सम्मान करता हूं कि यहां एक दूसरे को कभी मज़हब के चश्मे से नहीं देखा जाता…सब एक दूसरे से घी-शक्कर की तरह ऐसे घुले-मिले हैं कि कोई एक दूसरे को अलग कर देखने की सोच भी नहीं सकता…बल्कि जब भी देश की एकता या सामाजिक सौहार्द के लिए कोई संदेश देने की ज़रूरत पड़ी तो बॉलीवुड पीछे नहीं हटा….लेकिन समाज को दिशा देने का दावा करने वाले साहित्यकारों का एक वर्ग किस तरह की मिसाल पेश करना चाहता है….जयपुर साहित्य सम्मेलन में विवादित लेखक सलमान रूश्दी के नाम पर जो कुछ हुआ वो किसी भी लिहाज़ से देश के माहौल के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता..वो भी ऐसे वक्त में जब पांच राज्यों में चुनाव सिर पर हैं…हर मुद्दे से राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जा सकता है, इसका सबूत दो नेताओं के बयानों से साफ़ भी हो गया…
उधर, हैदराबाद.के संसद सदस्य और मजलिस-ए-इत्तेहादुल मसलिमीन (एमआईएम) के अध्यक्ष असदउद्दीन ओवैसी ने ‘सैटेनिक वर्सेस’ पढ़ने वाले लेखकों की तल्काल गिरफ्तारी की मांग की है…ओवैसी ने शनिवार को कहा कि प्रतिबंधित किताब को पढ़ना जान-बूझ कर उकसाने वाली कार्रवाई है और इससे यह भी पता चलता है कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल इस्लाम पर आक्रमण करने का मंच बन गया है… उन्होंने कहा कि इस समारोह के आयोजकों और लेखकों ने गंभीर अपराध किया है… इसलिए उनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए…
शुक्रवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हरि कुंज़रू, अमिताव कुमार,जीत थायिल और रूचिर जोशी ने सलमान रुश्दी की विवादित और प्रतिबंधित ‘सैटेनिक वर्सेस’ के कुछ पन्ने पढ़े थे….हालांकि उन्हें बाद में रोक दिया गया था…हरि कुंज़रू और अमिताव कुमार की पहले से ही ऐसी योजना थी… …इन्होंने ट्विट कर इसकी जानकारी दी…रुश्दी ने ट्विट कर अमिताव और कुंजरू को शुक्रिया कहा है…
वहीं भारत में अंग्रेजी उपन्यासों के मामले में इनदिनों सबसे ज़्यादा पढ़े जा रहे चेतन भगत ने सलमान रुश्दी पर अप्रत्यक्ष तौर पर हमला किया है…जयपुर साहित्य सम्मेलन में शनिवार को शिरकत कर रहे चेतन भगत ने सलमान रुश्दी का समर्थन कर रहे लोगों की आलोचना करते हुए कहा कि प्रतिबंधित किताबों के लेखकों को हीरो नहीं बनाना चाहिए…चेतन ने कहा, ‘(प्रतिबंधित किताबों) ने लोगों को दुख पहुंचाया है, मुसलमानों का दिल दुखाया है… मुझे नहीं लगता है कि किसी किताब को बैन करना चाहिए… लेकिन हमें किसी को हीरो भी नहीं बनाना चाहिए…’ भगत ने कहा, ‘हर किसी के पास दूसरे को दुख पहुंचाने का अधिकार है, लेकिन लोग ऐसा करें, यह जरूरी नहीं…
साहित्यिक सम्मेलन के आयोजकों ने शुक्रवार देर रात जारी एक बयान जारी कर कहा कि सम्मेलन में कुछ डेलीगेट्स ने बिना आयोजकों की पूर्व जानकारी और बिना अनुमति लिए जो आचरण दिखाया उसे जयपुर साहित्य सम्मेलन किसी तरह से भी अनुमोदित नहीं करता…उन्होंने जो कुछ भी किया या कहा, वो निजी हैसियत से कहा, इसके लिए वो खुद ज़िम्मेदार हैं…इसका आयोजकों से कोई लेना-देना नहीं है….किसी डेलीगेट या किसी और का कोई भी आचरण अगर क़ानून के उल्लंघन के दायरे में आता है तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा…और जो भी ज़रूरी कार्रवाई होगी, वो की जाएगी…हमारा उद्देश्य हमेशा से ऐसा मंच देने का रहा है जो विचारों के आदान-प्रदान और साहित्य के लिए प्रेम को क़ानून के दायरे मे रह कर बढ़ावा दे…
जयपुर के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर बीजू जॉर्ज जोसेफ़ ने आयोजकों से कार्यक्रम के उस हिस्से की रिकॉर्डिंग देने के लिए कहा है जिसमें विवादित किताब के अंशों को पढ़ा गया…जोसेफ़ के अनुसार जांच के बाद जो भी क़ानून के हिसाब से कार्रवाई होगी, वो की जाएगी…हालांकि आयोजकों ने ये रिकॉर्डिंग देने से इनकार किया है…आयोजक अपने इस रुख पर कायम है कि रूश्दी की किताब का भारत में 14 साल पहले प्रतिबंधित किए जाना दुर्भाग्यपूर्ण था और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाने वाले इस कदम का कानून के दायरे में रह कर विरोध किया जाता रहेगा…
मुझे इस पूरे प्रकरण में आयोजको की मंशा समझ नहीं आई आखिर वो करना क्या चाहते थे…एक तरफ वो कानून के पालन की बात करते हैं, दूसरी तरफ रुश्दी जैसे विवादित लेखक को न्योता देकर पूरे आयोजन को ही हाशिये पर डाल देते हैं…रुश्दी के भारत आने या ना आने का सवाल ही सुर्ख़ियों में छाया रहता है…विवादित किताब के अंशों को पहले मंच से पढने का मौका दिया जाता है, फिर कानून की दुहाई दी जाती है…बहस इस पर हो सकती है कि किसी किताब पर प्रतिबन्ध लगाना सही है या नहीं…बहस इस पर हो सकती है कि किसी लेखक का विचारों कि आज़ादी के नाम पर कहाँ तक लिबर्टी लेना सही है…बहस इस बात पर हो सकती है कि कोई पेंटर देवी-देवताओं की नग्न पेंटिंग बना कर कला का कौन सा उद्देश्य पूरा करता है…लेकिन सब से पहले देश है….यहाँ के कानून को मानना हर नागरिक का फ़र्ज़ है…अगर कोई सोच-समझ कर कानून को तोड़ता है तो फिर उसे नतीजे भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए…
अगर साहित्यकारों का ऐसा चेहरा हैं तो फिर हम ब्लॉगर ही भले हैं जो सांपला जैसी जगह पर मिलते हैं तो बिना किसी भेदभाव सिर्फ प्यार और शांति का सन्देश फ़ैलाने के लिए…
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