पहले इन दो सुर्खियों पर नज़र डाल लीजिए…
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सीधा सवाल किया है कि उसे विदेशी बैंकों में खाता रखने वाले भारतीयों के बारे में जानकारी देने में दिक्कत क्या है…
(ज़ाहिर है विदेशी टैक्स हैवन्स में अमूमन काले धन को रखने के लिए ही खाते खोले जाते हैं…)
चुनाव आयोग का कहना है कि देश में 1200 राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं…इनमें से सिर्फ 16 फ़ीसदी ही यानि 200 पार्टियां ही राजनीतिक गतिविधियों में लगी हैं…बाकी ज्यादातर पार्टियां राजनीतिक चंदे के नाम पर काली कमाई को धो कर व्हाईट करने में लगी हैं…
ये दोनों ही ख़बरें 14 जनवरी को निकल कर आईं…दोनों में सीधा कनेक्शन कोई नहीं…लेकिन गौर से देखें तो इन दो ख़बरों में ऐसा कनेक्शन जुड़ा है जिसने हमारे देश के पैरों में बेड़ियां डाल रखी हैं…
चलिए पहले सुप्रीम कोर्ट वाली ख़बर की बात करें…दरअसल सरकार को जर्मनी सरकार से एक फेहरिस्त मिली है…इस फेहरिस्त में जर्मनी के लिचटेनस्टिन बैंक में खाता रखने वाले भारतीयों के बारे में जानकारी है…प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी, के पी एस गिल, जूलियस रिबेरो जैसी कुछ हस्तियों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दे रखी है कि विदेशी बैंकों में जमा भारतीय नागरिकों के काले धन को देश में वापस लाने के लिए प्रयास तेज़ करने को सरकार को निर्देश दिए जाएं…
इसी याचिका के तहत सुनवाई के दौरान जर्मनी सरकार से जानकारी मिलने का मुद्दा उठा…सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम ने अदालत को बताया कि सरकार के पास जानकारी है लेकिन उसका खुलासा नहीं किया जा सकता…इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार किस विशेषाधिकार के तहत जानकारी का खुलासा नहीं करना चाहती…सालिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि वो सरकार से राय लेने के बाद ही स्थिति साफ करेंगे…कोर्ट ने इसे गंभीर मामला बताते हुए सरकार से लिखित में जवाब मांगा है…सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही अगली सुनवाई 19 जनवरी को तय की…
लेकिन सवाल सिर्फ जर्मनी पर ही खत्म नहीं हो जाता…दुनिया के तमाम टैक्स हैवन्स में भारतीयों का जितना काला धन जमा है, उसका महज़ 13 फीसदी ही देश में वापस ले आया जाए तो देश का तमाम कर्ज़ चुकता हो जाएगा…आपको कल की पोस्ट में बताऊंगा कि आपकी और हमारी गाढ़ी कमाई पर डाका डालकर कितना काला धन विदेशी बैंकों में जमा है और अगर उसे वापस ले आया जाए तो देश में क्या-क्या किया जा सकता है…कैसे देश की तस्वीर बदली जा सकती है…
ये तो थी विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन की बात…लेकिन देश में भी काला धन सफेद कैसे होता है इसकी एक बानगी चुनाव आयोग ने दिखाई है…
चुनाव आयोग का कहना है कि देश में 16 फीसदी पार्टियों को छोड़ दिया जाए तो बाकी तथाकथित राजनीतिक पार्टियों का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं हैं…इन्होंने राजनीतिक चोला सिर्फ इसलिए ओढ़ा हुआ है कि राजनीतिक चंदे के नाम अकूत काली कमाई को सफेद धंधों में लगाया जा सके…इस तरह के पैसे से जेवरात तक खरीदे जाते हैं…स्टॉक बाज़ार में भी ये पैसा लगाया जाता है…यानि राजनीति के नाम पर धंधा किया जा रहा है…
लेकिन जो पार्टियां वाकई राजनीतिक गतिविधियों में लगी हैं, उनके नेताओं से कौन सवाल करने वाला है कि उनकी संपत्ति में दिन दूना, रात चौगुना इज़ाफ़ा कैसे हो रहा है…कैसे जन्मदिन के तमाशे के नाम पर एक दिन में ही 100 करोड़ खर्च दिया जाता है…सवाल पूछा जाए तो जवाब मिलता है कि हमारे कार्यकर्ता ही हमें दस-दस रुपये जो़ड़कर चंदा देते हैं…वाकई ये जवाब आयकर अधिकारियों को भी निरूत्तर करने वाला है…
धंधे के नाम पर राजनीति…या राजनीति के नाम पर धंधा…
गंदा है पर धंधा है ये…
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