एक दिन पहले मैंने स्लॉग ओवर में ललित शर्मा भाई की ओर से गधे को लेकर किए गए मास्टरस्ट्रोक का ज़िक्र किया था…उसी पोस्ट पर मुझे महफूज़ अली की टिप्पणी मिली थी कि कभी किसी गधे को ध्यान से देखिएगा…कितना भोला लगता है…इत्तेफ़ाक से मैं अपनी बॉलकनी के लिए कल कुछ गमले लेने गया…वहां कुम्हार के पास गधा खड़ा दिख गया…मुझे महफूज़ की बात याद आ गई…मैंने गौर से गधे को देखा…वाकई उसके जैसा भोला, शरीफ़ और दीनहीन आपको और कोई प्राणी नहीं दिखेगा…घर वापस आकर तैयार होते वक्त शीशे पर मेरी नज़ऱ पड़ी…क्या मैं भी…
अब इसी गधा-गाथा पर चार लाइनें दिमाग में आ गईं, वही आपके लिए पेश कर रहा हूं…अब इन्हें पढ़ने के बाद मुझे वही मत कहने लगिएगा, जिस प्राणी को मैं ये समर्पित कर रहा हूं…
अपुन गधे ही भले
कभी गधे को गौर से देखो
मासूम, ज़माने से डरा चेहरा
मक्कारी का नामोनिशान नहीं
शायद इसीलिए वो इंसान नहीं
गधा कभी प्रैक्टीकल नहीं होता
कोई कुछ कहे रिएक्ट नहीं करता
गधा उम्र भर गधा ही रहता है
काश वो अक्ल के घोड़े दौड़ा पाता
इंसान को इंसान से भिड़ा जाता
फिर कोई उसे गधा क्यों कहता
सोच रहा हूं खुद तन्हा बैठा
लोग मुझे गधा क्यों कहते हैं…
स्लॉग गीत
नॉन-प्रैक्टीकल होते हुए भी कैसे जिया जा सकता है, इसके लिए सुनिए दोस्त फिल्म का ये गीत…
आ बता दे ये तुझे कैसे जिया जाता है
गाना देखने के लिए यू ट्यूब का लिंक…
पहन कर पांव में ज़ंज़ीर भी रक्स किया जाता है…
आखिर में आज स्लॉग ओवर नहीं स्लॉग प्रेयर…
स्लॉग प्रेयर
बॉस का सताया एक बंदा ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है…
हे प्रभु,
मुझे इतनी बुद्धि दो,
मैं बॉस के दिमाग को पढ़ सकूं…
मुझे इतना संयम दो,
मैं बॉस के हुक्म झेल सकूं…
पर प्रभु,
मुझे ताकत कभी मत देना,
वरना बॉस मारा जाएगा
कत्ल मेरे सिर आएगा…
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