मेरे सबसे पसंदीदा फिल्मकार गुरुदत्त ने जब प्यासा बनाई थी तो आज जैसा इंटरनेटी युग नहीं था…साहिर लुधियानवी साहब ने इस फिल्म के लिए कालजयी गीत लिखा था..
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजो की दुनिया,
ये इनसां के दुश्मन रिवाजों की दुनिया,
ये दौलत के भूखे रिवाज़ों की दुनिया,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…
ये फिल्म आज के आईटी युग में सॉफ्टवेर के फूल नाम से बनती तो शायद साहिर साहब का ये गीत कुछ इस अंदाज़ में लिखा जाता…
ये डाक्यूमेंट्स, ये मीटिंग्स, ये फीचर्स की दुनिया,
ये इनसां के दुश्मन कर्सर की दुनिया,
ये डेडलाइन्स के भूखे मैनेजमेंट की दुनिया,
ये प्रोडक्ट अगर बन भी जाए तो क्या है…
यहां इक खिलौना है प्रोग्रामर की हस्ती,
ये बस्ती है, मुर्दा बग-फिक्सर्स की बस्ती,
यहां पर तो रेसेस है इन्फ्लेशन से सस्ती,
ये रिव्यू अगर हो भी जाए तो क्या है…
हर इक की-बोर्ड घायल है,
हर इक लॉग-इन प्यासी एक्सेल में उलझन,
विनवर्ड में उदासी,
विनवर्ड में उदासी,
ये आफिस है या आलामे माइक्रोसाफ्ट की,
ये रिलीज़ अगर हो भी जाए तो क्या है…
जला दो इसे, फूंक डालो ये मानिटर,
मेरे सामने से हटा डालो ये मानिटर,
मेरे सामने से हटा डालो ये माडम,
तुम्हारा है, तुम्ही संभालो ये कंप्यूटर,
ये प्रोडक्ट अगर चल भी जाए तो क्या है…
ये रिलीज़ अगर हो भी जाए तो क्या है…
जला दो इसे, फूंक डालो ये मानिटर,
मेरे सामने से हटा डालो ये मानिटर,
मेरे सामने से हटा डालो ये माडम,
तुम्हारा है, तुम्ही संभालो ये कंप्यूटर,
ये प्रोडक्ट अगर चल भी जाए तो क्या है…
…(गीतकार नामालूम) (इ-मेल पर आधारित )
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