सिक्किम में हो रही है नए युग की शुरुआत…खुशदीप

देश में खेती ने एक चक्र पूरा किया है और अब यह अपना रूप बदल रही है। यह सही है कि आधी सदी पहले देश में शुरू हुई हरित क्रांति ने खाद्यान्न के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाया। अब ठहरकर यह सोचने का वक्त है कि पिछले पांच दशक में हमने क्या पाया, क्या खोया? अधिक से अधिक उपज पाने की हमारी सनक आखिर हमें कहां ले आई है? रसायनों और जहरीले कीटनाशकों के दम पर हुई इस क्रांति ने जमीन की माटी और पानी को कितना नुकसान पहुंचाया?

पश्चिमी देशों में सन 1850 से ही रासायनिक खादों का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ। लेकिन भारत में रासायनिक खादों से खेती की शुरुआत सन 1965 में हरित क्रांति के साथ हुई थी। तब रसायनों के बुरे प्रभाव के तर्कों को नजरंदाज किया गया। उपज तो बढ़ी, लेकिन जब कीट व कई रोग फसलों पर आक्रमण करने लगे, तो कीटनाशकों का प्रयोग होने लगा। एक ही मौसम में गोभी के लिए कीटनाशकों के आठ से दस छिड़काव, कपास के लिए 13 से 15 छिड़काव और अंगूर के लिए 30-40 छिड़काव। कीटनाशक अवशेषों के कारण ऊपरी नरम मिट्टी कड़क होने लगी। भू-जल सल्फाइड, नाइट्रेट और अन्य रसायनों से प्रदूषित हुआ। प्राकृतिक संतुलन खो गया और कीटों का प्रकोप बना रहा। इनका छिड़काव करने वाले किसान दमा, एलर्जी, कैंसर और अन्य समस्याओं के कहीं ज्यादा शिकार होने लगे। इसके मुकाबले उपज देखें, तो 1965 से 2010 तक रसायनों का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा, लेकिन उपज सिर्फ चार गुना ही बढ़ी। यह बढ़ोतरी भी केवल रासायनों के दम पर नहीं हुई। खेती वाली जमीन में वृद्धि और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अब इसकी उल्टी धारा चलाने का समय है। सिक्किम जैसा राज्य इसका रास्ता दिखा रहा है। सिक्किम 2015 में शत-प्रतिशत ऑर्गेनिक फार्मिंग का लक्ष्य हासिल करने जा रहा है। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं हो सका, पर सिक्किम ने इसे कर दिखाया है। सिक्किम ने दिखाया है कि ठान लिया जाए, तो रसायनों और जहरीले कीटनाशकों से पूरी तरह तौबा कर पौधे, पशु, कम स्टार्च वाले पदार्थ, ग्रीन हाउस जैसे ऑर्गेनिक उपायों का इस्तेमाल कर पर्याप्त कृषि उत्पाद हासिल किए जा सकते हैं। इतना ही नहीं, खेती की कमाई के एक बड़े हिस्से को रासायनिक उद्योग के हवाले हो जाने पर भी रोक लगाई जा सकती है। 
सिक्किम जैसे राज्य के लिए इसका अर्थ हुआ खेती की कमाई को राज्य के बाहर जाने से रोकना। उसने इसके लिए नौजवानों और किसानों को तैयार किया। इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया और किसानों को तकनीक दी। अब सिक्किम जाने वालों को सिर्फ यहां के कुदरती नजारे नहीं मिलेंगे, बल्कि वे जो खाएंगे या पिएंगे, वे भी कुदरती ही होंगे। देश के बाकी राज्य इस ओर कब बढ़ेंगे? कुछ भी हो, देर-सवेर उन्हें यह रास्ता अपनाना होगा।
मूलत: प्रकाशित हिन्दुस्तान, 30 अक्टूबर 2014
Khushdeep Sehgal
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Rohit Singh
10 years ago

जबतक बड़ी तादाद में लोग नहीं मरेंगे तबतक किसी की नींद नहीं टूटेगी

Satish Saxena
10 years ago

वाह , मंगलकानाएं सिक्किम को !!

Yogi Saraswat
10 years ago

एक छोटा सा राज्य जब ऐसा कर सकता है तो निश्चित रूप से इसे एक बड़ा और सराहनीय कदम कहा जाएगा !

Unknown
10 years ago

Saarthak prastuti !!

कविता रावत

बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
हार्दिक बधाई!

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