मक्खन, करवा चौथ और “सयापा”

आज करवा चौथ है…लेकिन मक्खन ने सुहागिनों के इस दिन पर ही पंगा ले लिया…वो भी मक्खनी से…अब 440 वोल्ट के करंट में हाथ देगा, ज़ोर का झटका तो ज़ोर से लगेगा ही…मक्खन का हाल देखकर मैं भी चौकस हो गया हूं…पत्नीश्री के व्रत के दौरान उनका पूरा ध्यान रखना है, इसलिए आज लंबी पोस्ट नहीं…बस माइक्रो पोस्ट…यानि सिर्फ स्लॉग ओवर में करवा चौथ पर मक्खन की आपबीती से से ही काम चलाइए…और हां, ज़रा खुद भी आज पति-धर्म निभाइए…

स्लॉग ओवर
त्यौहारों का मौसम है…दीवाली से पहले मक्खन के गैरेज पर भी खूब काम आ रहा है…कोई खटारा गाड़ियों को दुरूस्त करा रहा है…तो कोई अच्छी भली चमचमाती गाड़ी को ही नई लुक देने पर तुला है…लिहाजा हमारे मक्खन महाराज को रात देर तक जाग कर कर्म ही पूजा है का मंत्र निभाना पड़ रहा है…ऐसे ही करवा चौथ से पहले की सरगी की रात को मक्खन को गैरेज पर ही रात के 2 बज गए…मक्खन घर आकर तीन बजे तक सोया ही था…कि कुछ मिनटों बाद खटपट-खटपट की आवाजों से मक्खन की नींद खुल गई…देखा पत्नी मक्खनी सरगी (करवा चौथ के व्रत से पहले तड़के खाया जाने वाला आहार) की तैयारी कर रही थी…इसी चक्कर में कुछ बर्तन खड़कने से शोर हुआ और मक्खन की कच्ची नींद हवा हो गई…थका-हारा मक्खन इस पर हत्थे से उख़ड़ गया…लगा मक्खनी को सुनाने….कुछ मेरा ख्याल भी है या नहीं…16 घंटे तक गैरेज में खप कर आ रहा हूं…मुश्किल से नींद आई ही थी कि तेरी इस खटपट-खटपट ने जगा दिया…वैसे वैसे आज तुझे ये क्या शौक चर्राया है…आधी रात को उठकर किचन में बर्तन पटक रही है…

मक्खनी भी आखिर कहां तक सुनती…फट पड़ी…बस हो गया तेरा…ये जो मैं सब कर रही हूं न…वो तेरा ही “सयापा” है…

(पंजाबी में सयापा किसी के मर जाने पर औरतो के रोने-धोने को कहते हैं…यहां मक्खनी का यही मतलब था कि मक्खन की लंबी उम्र का व्रत रखने के लिए उसे ये सब कुछ करना पड़ रहा है)

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