टाइटल पढ़कर चकराइए मत…सब बताता हूं…ज़रा सब्र तो रखिए…प्रवासी परिंदें इसी मौसम में सबसे ज़्यादा भारत का रुख करते हैं…वो जहां डेरा डालते हैं, वहां की बहार देखते ही बनती है…आबोदाना इनसान को बेशक सात समंदर पार ले जाए, लेकिन वतन की सौंधी मिट्टी की खुशबू कभी उसके दिलो-दिमाग से दूर नहीं होती…स्वदेश की कसक उन्हीं से पूछो जो इससे दूर आशियाना बनाने के लिए मजबूर हों…खैर छोडिए ये फ़लसफ़ा…
दो दिन पहले भाई राम त्यागी का ई-मेल मिला था कि वो 26 नवंबर को भारत पहुंच रहे हैं…राम के पास मेरा मोबाइल नंबर नहीं था…किसी तरह मेरा नंबर जुटा कर राम ने फोन किया…लेकिन उस वक्त मैं प्रोफेशनल दायित्व निभाने के पीक टाइम पर था…इसलिए एकाध मिनट से ज़्यादा बात नहीं कर सका…लेकिन अगले दिन मेरे पास ललित शर्मा भाई जी का फोन आया…ललित जी ने मुझे बताया कि राम की फ्लाइट तड़के पांच बजे दिल्ली लैंड करेगी…इसके बाद उन्हें 8.40 पर निज़ामुद्दीन स्टेशन से गृहनगर ग्वालियर के लिए समता एक्सप्रेस पकड़नी है…
मेरी दिक्कत ये है कि मैं रात को दो-ढाई बजे से पहले सो नहीं पाता…ऐसे में अल सुबह निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुंच पाना मुझे बूते से बाहर लगा…फौरन संकटमोचक सतीश सक्सेना भाई को फोन मिलाया…थोड़ा मस्का लगाया…फिर पूछा कि सुबह उनकी दिनचर्या क्या रहती है…टैम्पो बांधने के बाद काम की बात पर आया और निज़ामुद्दीन चलने का न्योता दिया…देखिए मेरी खुदगर्जी…सोचा कि सतीश भाई की शानदार गाड़ी की सवारी का मौका फिर मिल जाएगा…क्या करूं तिलयार की खुमारी अभी तक उतरी जो नहीं…लेकिन हाय री किस्मत…सतीश भाई पारिवारिक कमिटमेंट के चलते चाह कर भी मेरा साथ देने के लिए तैयार नहीं हो सके…वैसे सतीश भाई अपनी कल की पोस्ट में खुद को ‘बदमाश’ ब्लॉगर घोषित कर चुके हैं…वो भी सिर्फ एक पैग चढ़ाने के इल्जाम में…इसीलिए मुझे टाइटल में कहना पड़ा है कि ‘बदमाश’ ब्लॉगर नहीं पहुंचे…
अब मैं तो कमिटमेंट कर चुका था कि किसी भी हाल में राम से मिलने जाना है…सलमान खान की तर्ज पर कहूं तो डायलाग झाड़ता हूं…एक बार मैं कमिटमेंट कर लूं तो फिर खुद भी अपने को नहीं रोक सकता…पत्नीश्री से कहा कि सुबह जल्दी उठा देना…निज़ामुद्दीन स्टेशन जाना है…पत्नीश्री हैरान-परेशान…ये अचानक शहर से बाहर जाने का कहां प्रोग्राम बना लिया…अब क्या जवाब देता…फिर बताना ही पड़ा…साथ ही पत्नीश्री से वादा भी करना पड़ा कि शनिवार को ट्रेड फेयर घुमाने ले जाऊंगा…(समझा करो यार, ब्लॉगिंग करनी है तो थोड़ी बहुत डिप्लोमेसी तो आनी ही चाहिए न)… खैर सुबह जल्दी जागा और तैयार होने के बाद ऑटो से निजामुद्दीन स्टेशन का रास्ता पकड़ा…वैसे पत्नीश्री रोज़ हमें सेहत का हवाला देते हुए सुबह उठ कर मॉर्निंग वॉक पर जाने के लिए लाख ज़ोर देती रहें लेकिन मजाल है कि कभी हम उठ जाएं…
तमाम कोशिश करने के बावजूद मैं आठ बजे ही निज़ामुद्दीन पहुंच सका…अब दिक्कत ये कि इतने भीड़-भाड़ वाले स्टेशन पर राम को ढूंढूगा कैसे…फिर भी ब्लॉग पर देखी हुई राम की चिन्नी सी फोटो को ही जेहन में री-कॉल किया और एक कोने से प्लेटफॉर्म के दूसरे कोने की ओर चलना शुरू किया…हर मुसाफिर को घूरते हुए…राम का मेरे पास कोई फोन तो था नहीं…जो मिला लेता…सोचा शायद ललित भाई के पास होगा…ललित भाई को फोन मिलाया…लेकिन यहां मेरे लिए और भी बड़ा सरप्राइज़ इतंज़ार कर रहा था….ललित भाई ने बताया कि वो खुद भी निज़ामुद्दीन स्टेशन पर ही हैं…वो देशाटन के लिए निकले हुए हैं लेकिन नानी के स्वर्गवास की वजह से उन्हें अपना सारा प्रोग्राम तब्दील करना पड़ा…ललित भाई को ढूंढना कम से कम मेरे लिए मुश्किल साबित नहीं हुआ…हम दोनों ही छह फुटिए हैं…इसलिए भीड़ के बावजूद दोनों ने एक दूसरे को देख लिया…ललित भाई तो मिल गए लेकिन मेहमान-ए-खास राम तक पहुंचना अब भी टेढ़ी खीर साबित हो रहा था…अब हमने एक-एक कोच खंगालते हुए बढ़ना शुरू किया…एक टोपीधारी युवक पर मुझे राम होने का शक हुआ…मैंने ललित भाई से पूछा कि कहीं यही तो नहीं अपना राम…
ललित भाई ठहरे तजुर्बेकार…फौरन जवाब दिया कि इसके बैग देसी है, ये राम नहीं हो सकता…आगे बढ़े तो एस-नाइन कोच के बाहर देखा कि दो छोटे बच्चों के साथ एक सभ्रांत महिला कई सारे बैग्स के साथ खड़ी हैं…विलायती लुक्स वाले ये बैग्स खुद ही गवाही दे रहे थे कि वो ताजा ताजा हिंदुस्तान की सरज़मीं पर लैंड किए हैं…लेकिन राम कहीं नज़र नहीं आ रहे थे…हिम्मत कर मैंने महिला से पूछ ही लिया…आर यू मिसेज़ राम त्यागी…जवाब में स्माइल मिली…तब तक राम जी भी डब्बे से निकलते दिखाई दिए…वो अंदर सामान ही एडजस्ट कर रहे थे…राम तो गर्मजोशी से मिले ही, साथ ही उनके दो नन्हे शहजादों निकुंज और अमेय से भी शेकहैंड का मौका मिला…राम ने भाभीश्री अनु का भी परिचय कराया..
राम के परिवार के फोटो लेने के लिए मैं बेटे का मोबाइल भी साथ ले गया था…ये उन्नत कैमरे वाला मोबाइल है…वरना अपना तो देसी मोबाइल से ही काम चल जाता है…बस कॉल सुननी-सुनानी ही तो पड़ती है…बेटे का मोबाइल ले तो लिया लैकिन अब इसे हैंडल कैसे करूं…फोटोग्राफी का वैसे भी कोई खास शौक नहीं है…लेकिन लगता है अब ये हुनर भी सतीश भाई से सीखना ही पड़ेगा…ललित भाई से अनुरोध किया कि वो मेरे मोबाइल से राम के साथ मेरी फोटो खींचे…फिर निकुंज और अमेय का भी फोटो सैशन हुआ…लेकिन देखिए गलती से मुझसे कोई बटन दबा और वो सारे फोटो डिलीट हो गए…इस मौके की तस्वीरें आपको अब ललित भाई या राम की खुद की पोस्ट पर ही देखने को मिलेंगी….मैं राम की पोस्ट पर दी हुई तस्वीर को चोरी कर यहां लगा देता हूं…
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मैं बंटी चोर जूठन चाटने वाला कुत्ता हूं। यह कुत्ता आप सबसे माफ़ी मंगता है कि मैने आप सबको परेशान किया। जाट पहेली बंद करवा के मुझे बहुत ग्लानि हुई है। मेरी योजना सब पहेलियों को बंद करवा कर अपनी पहेली चाल्लू करना था।
मैं कुछ घंटे में ही अपना अगला पोस्ट लिख रहा हू कि मेरे कितने ब्लाग हैं? और कौन कौन से हैं? मैं अपने सब ब्लागों का नाम यू.आर.एल. सहित आप लोगों के सामने बता दूंगा कि मैं किस किस नाम से टिप्पणी करता हूं।
मैं अपने किये के लिये शर्मिंदा हूं और आईंदा के लिये कसम खाता हूं कि चोरी नही करूंगा और इस ब्लाग पर अपनी सब करतूतों का सिलसिलेवार खुद ही पर्दाफ़ास करूंगा। मुझे जो भी सजा आप देंगे वो मंजूर है।
आप सबका अपराधी
बंटी चोर (जूठन चाटने वाला कुत्ता)
जय राम जी की।
खुशदीप और ललित जी से मिलन एक आत्मीय मिलन था, समय तो जैसे पंख लगाए हुए था – उड़ गया कुछ ही देर में और ट्रेन चल पडी ! ब्लॉग्गिंग ने मेरा लेखन का शौक तो पूरा किया ही साथ में ये अमूल्य दोस्ती के उपहार भी दिए हैं !
जय हिन्दी !
वाह..कभी – कभी यह होना भी चाहिए ….पर आपने बहुत शिदत से प्रस्तुत किया है यह विवरण ..शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
बहुत अच्छा वाक्या है . अच्छी प्रस्तुति .
बढ़िया रहा ये मिलन…..तस्वीर बड़ी प्यारी है…राम त्यागी जी के ब्लॉग की ही सही
‘.साथ ही पत्नीश्री से वादा भी करना पड़ा कि शनिवार को ट्रेड फेयर घुमाने ले जाऊंगा…(समझा करो यार, ब्लॉगिंग करनी है तो थोड़ी बहुत डिप्लोमेसी तो आनी ही चाहिए न)’
महिला ब्लागर कृपया नोट कर लें 🙂
बहुत राम राम करके मिले राम ।
@सतीश भाई
आपने राम-रहीम की बात की…तो सच ये है कि मैंने आज तक किसी भी शख्स को उसके नाम के नज़रिए से देखा ही नहीं…कभी गौर ही नहीं किया कि वो किस मज़हब को मानता है…मेरे लिए वो सिर्फ और सिर्फ इनसान है…किसी से बात करने का और दोस्ती करने का जी करता है तो मैं अपनी तरफ से ही पहले हाथ बढ़ा देता हूं…
@अजित जी,
अगर आप जैसी सरस्वती-पुत्री और स्नेह की मूर्ति को आशीर्वाद देने की योग्यता नहीं है तो फिर दुनिया की किसी भी मातृ-शक्ति को ये अधिकार नहीं होगा…
@निर्मला जी,
आप खुश हो जाइए…आज का पूरा दिन आपकी बहू के नाम ही किया था…और सच पूछिए ट्रेड फेयर में दोनों के अकेले घूमते और शॉपिंग करते हुए ऐसा लगा कि वक्त रिवर्स गेयर में पंद्रह-सोलह साल पीछे पहुंच गया है…
जय हिंद…
आपने सही कहा कि यही है ब्लॉगिंग का सबसे बड़ा प्लसपाइंट कि नए चेहरे भी नए नहीं लगते…अनजान भी पराए नहीं लगते…
नए ब्लोगर मिलन की बात सुनने के मन ये गाने को करता है कि…
"हो मुझे खुशी मिली इतनी के मन में ना समाए…
पलक बंद कर लूँ कहीं छलक ही ना जाए
रोहतक ब्लॉग मिलन में जाना तय था, पर जाना न हो सका, अगले मिलन में ज़रूर जाऊँगा, कहीं भी हो 🙂
मनोज
—
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल – ४
Good news .
वाह क्या वृत्तांत है ,हम तो पहले सोचे कि आप हवाई अड्डे पर ही पहुँचने का मंसूबा बांध रहे हैं !
खुशदीप भाई लगता है आप तो रिपोर्टिंग के बादशाह है… ज़बरदस्त रिपोर्टिंग… हमें भी बुला लेते तो हम भी राम जी के दर्शन कर लेते…
बहुत ही रोचक प्रस्तुतिकरण .. कामना है कि ब्लॉगरों के मध्य यह स्नेह बना रहे !!
अच्छा लगा विवरण पढ़कर….
ये मेल जोल ही तो पूँजी है अंततः!
milana julana bhale logo ki nisani mani jati hai.
…जल्दी ही बना रहे हैं प्रोग्राम.
राम की खोज और राम मिलाप बढ़िया रहा :)…कौन कहता है कि यह दुनिया आभासी है ?..
अरे का सुन रहे हैं, शार्प शूटरों की भर्ती चल रही है….. आजमगढ़ और आसपास इलाके के ब्लोगर भाई आमंत्रित हैं….
खुशदीप सर, शाम का प्रोग्राम बता देते…. हम भी आ जाते ….
मस्त.
achhe ko acche kahne ki jaroorat nahi hoti……so
hum aapko acche nahi kah rahe………
a warm sallute to your sensibility…..
pranam.
ाच्छा तो अब डिपलोमेसी भी सीख गये हो? लेकिन बता दूँ मेरी बहु से डिपलोमेसी नही करना। ये उसी की बदौलत ब्लागिग हो रही है। बहुत अच्छी लगी ये आत्मियत कि सुबह सवेरे राम से मिलने गये। आशीर्वाद।
चलो, यह बढ़िया रहा..कुछ पल को ही सही..राम बाबू से मुलाकात हो ली….जल्दी ही बना रहे हैं प्रोग्राम.
बेहद रोचक लगा……मिलने की खुशी होती ही ऐसी है.इतने दिनों से सबके ब्लॉग में एक दूसरे के बारे में पढ़ रही हूँ. कौन किससे कैसे मिला, कुछ वाकये…… एक अनजान होकर भी आपलोगों की बातें सुनना-पढ़ना बेहद अच्छा लगता है. सच में ब्लॉग-जगत में कुछ तो जादू है.
subah ki nind ko tod kar milna……..darsha gaya, aapne kitni mehnat ki RaM sir se milne ki…:)
sach me ram-bharat milap ho gaya…:D
आपका आलेख पढ़ राम भारत मिलाप का आभास हुआ. पोस्ट तो सुन्दर है ही टिप्पणियां भी सुन्दर.
अच्छी ब्लोगर सद्भावना का परिचय दिया आपने…आभार आपका…..शानदार व्यवहार और प्रस्तुती…..
आपकी पोस्ट के माध्यम से सतीशजी को कहना चाह रही हूँ कि इस दुनिया को आभासी कहना बन्द करो। हम सब साक्षात हैं। आभासी तो भूत प्रेत होते हैं भाई। खुशदीप जी, ब्लागीय दुनिया का चलन तो अब समझ रही हूँ लेकिन लेखकीय दुनिया का चलन मुझे मालूम है कि वहाँ पर एक दूसरे से मिलने की ललक हमेशा बनी रहती है और किसी भी लेखक को अपने घर पर आमंत्रण देकर बुलाना और उनका स्वागत करना तो ऐसा है जैसे दुनिया में सबकुछ मिल गया हो। क्योंकि सभी यह मानते हैं कि लेखक समाज में सबसे अधिक सम्माननीय व्यक्ति होना चाहिए और इसीलिए उसके सम्मान के लिए ही सभी को सचेत भी रहना चाहिए। यह अलग बात है कि आज गुटबाजी और राजनीति के कारण लेखक समाज में भी निन्दा की प्रवृत्ति आम हो गयी है। इसलिए आपका अलसुबह स्टेशन पर जाना और राम त्यागी जी से मिलना बहुत ही सुखद है। आपको मैं शुभकामना देती हूँ, मन तो आशीर्वाद देने का है लेकिन अभी मेरे खाते में इतने पुण्य नहीं हैं कि मै आशीर्वाद दे सकूं।
बदमाश कंपनी की जय!
पैगिंग हमारे बस की नहीं वरना हम भी मेंबरशिप के लिए दरख्वास्त लगा देते।
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ब्लॉगर वही बदमाश हो सकता है जिसमें आत्मीयता कूट कूट कर भरी पड़ी हो नहीं तो सर्दी की सुबह भला कौन अपनी रजाई छोड़ नहा धोकर ऑटो में ठंडी हवा के थपेड़े खाता हुआ, स्टेशन पर किसी ब्लॉगर से मिलने जायेगा।
खुशदीप भाई की आत्मीयता है यह तो, ललित भाई भी बहुत बदमाश निकले सुबह ही पहुँच लिये स्टेशन पर मिलने, काश कि सारे ब्लॉगर इतने बदमाश हों, ब्लॉगर ही क्या अगर ये बदमाशी हमारे समाज में फ़ैल जाये तो ऐसा बदमाश समाज हमें बहुत अच्छा लगेगा।
राम त्यागी जी को भारत प्रवास की शुभकामनाएँ,
वैसे खुशदीप जी फ़ोटो खींचने के लिये ही सही कम से कम अब आपको नई तकनीकी फ़ोन का उपयोग सीखना होगा।
लीजिए सतीश भाई,
बदमाश कंपनी तैयार हो ही गई…डॉन आप, आपका लेफ्टिनेंट मैं…बस अब थोड़े शार्पशूटर्स की भर्ती कर ली जाए…फिर जो भी पोस्ट लिखेगा, उससे वसूली करना और शुरू कर देंगे…अरे भाई, ये मीटिंग-वीटिंग के खर्चे भी उठाने हैं या नहीं…देखते नहीं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, बात करते हैं…
जय हिंद…
गोवा है अब अविनाश भाई का दूसरा घर,
आज दिल्ली बुला रहे, कल गोवा भी ले जाएंगे,
फेनी हो या न हो, ब्लॉगर्स मस्ती ज़रूर फैलाएंगे…
क्या कहा इससे आगे तुकबंदी झेलना बर्दाश्त से बाहर है…लीजिए चुप हो जाता हूं…
जय हिंद…
बदमाश ब्लागर हाज़िर है हुज़ूर !
घर में रुके मेहमानों को छोड़ना संभव न था भाई जी, अन्यथा आपके अनुरोध को न मानना मेरे वश का नहीं था ! पिछली दोनों मीटिंग में भी केवल आपके अनुरोध पर गया था ! अन्यथा पारिवारिक जिम्मेवारिओं के होते शायद इतना समय देना मेरे लिए असंभव ही है !
आपका यह भावुक प्यार आपको दूसरों से अलग करता है खुशदीप भाई ! जो भावुकता राम के लिए दिख रही है, वही महफूज़ के लिए, आपके लेखों के जरिये हम महसूस कर चुके हैं !
इस आभासी जगत में हमारी लेखनी से, हमारे व्यक्तित्व की झलक लोगों तक पंहुचती है, और अक्सर आपके लिखे को ध्यान से नहीं पढ़ा जाता और पढ़ा भी जाये तो भाई लोग भरोसा नहीं करते चूंकि अधिकतर लोग बनावटी सजावट कर अपने आपको प्रस्तुत करते हैं अतः लोगों का शक स्वाभाविक हो जाता है, गहराते शक के पीछे कई बार उस व्यक्तिविशेष की अपनी मनस्थिति और व्यवहार का बड़ा महत्व पूर्ण रोल निभाता है !
अभी ३-४ दिन पहले एक जाने माने ब्लागर, जिनके बारे में मेरे विचार, एक बेहद अच्छी सोच वाले ब्लोगर के थे , ने मेरे ब्लाग जगत में किये जा रहे सबसे अच्छे कार्य पर ही प्रश्न चिन्ह एवं अविश्वास व्यक्त कर दिया ! उस दिन फिर एक बार अपनी समझ पर मुझे दया आई ! :-((
अपनी पूरी ईमानदारी के बावजूद, ब्लॉग जगत में प्यार ढूँढने की कोशिश में बहुत चोट पंहुची है मुझे, शायद पहले अधिक अच्छी स्थिति में था !
इन अज़नबियों (महफूज़ और राम त्यागी) में राम और रहीम को तलाशते, खुशदीप के दिल को कोई चोट न पंहुचाये …मेरी ईश्वर से भविष्य में प्रार्थना होगी !
मैं राम त्यागी और महफूज़ अली से आशा करूंगा कि वे खुशदीप सहगल को बदमाश न समझ लें :-))
हार्दिक शुभकामनायें
गोवा में आयोजित हो रहे इंटरनेशनल फिल्म समारोह की रिपोर्ट पढि़ए तब तक रोजाना नुक्कड़ पर
कैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से
और चाहते हों उसमें कुछ विशेष
तो टिप्पणियों में बतलाते जाइये
देशनामा पर खुशियों की महफिज
भरपूर खुशियों के साथ सजाते रहिए।
क्यों सुन रहे हैं अविनाश वाचस्पति जी
खुशदीप भाई सुन तो लिया था कल
पढ़ रहा हूं मैं तो अब
खूब किया था विमर्श
कि पहले करेंगे गोपनीय मिलन
फिर करेंगे ओपनीय सेमिनार
हिन्दी ब्लॉगरों की संस्कारधानी दिल्ली में
पढ़ रहे हों जो भी हिन्दी ब्लॉगर
वे अब सिर्फ पढ़ें ही नहीं
कर लें नोट, अपने दिल के ब्लॉग पर
दिल्ली में करेंगे भव्य सेमिनार सबके आने पर
4 को मैं पहुंच रहा हूं गोवा से वापिस
14 को मिलेंगे सब आपस में
भरपूर दिव्यता के साथ दिल्ली में
भारत की राजधानी के दिल में
राजधानी की मिट्टी पर
राजधानी की हवा में
फिज़ा में
किसी कहकशां महफिल में
कविता वाचक्नवी भी होंगी उस समय दिल्ली में
और भी हों या आने का मन बना रहे हों
वे भी अपनी हाजिरी दर्ज कर दें यहीं पर।
यह दिल्ली का खुशियों से ओत-प्रोत हिन्दी ब्लॉगरों का देशनामा है
हम संगठन यही बनायेंगे
हिन्दी ब्लॉगिंग को दिव्यता तक अवश्य पहुंचायेंगे।
बढ़िया गुजरी कुल मिलाकर…