ब्लॉगर भाइयों, ज़रा दिल पर हाथ रखकर बताना कि जब आप पूरे जतन के साथ पोस्ट लिखते हैं, और आपको कमेंट्स वाली जगह गोल अंडा दिखता रहता है तो आपको कैसा लगता है…ऐसा नहीं लगता कि धरती फट जाए और उसी में समा जाए…
आखिर काहे की आपकी पत्रकारिता और काहे के आप बेस्ट न्यूज़ प्रोड्यूसर..बड़ा वहम पाला हुआ था, स्तरीय लिखेंगे, कुछ नई जानकारियां शेयर करेंगे…लेकिन भइया पढ़ेगा कौन…अनुराग हर्ष भाई की पोस्ट…ब्लॉग पर पाठक कब आएंगे…पढ़ा तो दिल को कुछ तसल्ली हुई…
हरिवंश राय जी बच्चन का वो ब्रह्मवाक्य अचानक दिमाग में बत्ती की तरह जलने लगा जो उन्होंने यशस्वी पुत्र अमिताभ को नैनीताल के शेरवुड स्कूल में पढ़ाई के दौरान दिया था- मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा…भईया, अब तो हमने भी इसे जीवन का आदर्श बना लिया है…(वैसे और कोई तीर मार भी कहां सकते थे)…तो जनाब अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न है कि ब्लॉगर-बिरादरी मे पॉपुलर कैसे हुआ जाए…
गुरुदेव समीर लाल जी की उड़न-तश्तरी पर कमेंट्स की सेंचुरी…और अपनी पोस्ट पर कमेंट्स वाली जगह पर रबर की एक कूची के साथ लगा अंडा… ऐसे मुंह चिढ़ाता रहता है- मानो कह रहा हो-क्यों आ रहा है न मज़ा…बड़े तीसमारखां बनते थे..हम भी सिर झुकाए अंडेजी से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाते..ठीक है भइया अंडा आइना नहीं दिखाएगा तो और कौन दिखाएगा…
दुनिया को भारत की दी हुई नेमत है…अगर ये ज़ीरो द ग्रेट ना होते तो नासा (अरे भई नशा-वशा नहीं वो अमेरिका वाला नासा) भी हर वक्त नसें फुलाए बैठा रहता…ज़ीरो के बगैर चांद-तारों की सही दूरी का अंदाज़ कहां से लगा पाता…खैर ये तो हुई ज़ीरो उर्फ अंडे जी की महिमा…अब फिर उसी दर्द पर लौटते है ब्लॉग पर कमेंट्स क्यों नहीं आते…या तो हम भी इंसान को इंसान न समझने वाली, धर्म-जात जैसे मुद्दों पर ज़हर घोलने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए कूड़ा-करकट लिखे और फिर उस पर प्रतिक्रियाओं के अंबार के नीचे दब जाए…या फिर किसी पीआर एजेंसी की ही क्यों ना सेवा ले ली जाएं..(ब्लागर्स भाइयों में अगर कोई ऐसी एजेंसी के बारे में जानता हो तो बताना प्लीज़…)
बड़ा सोचा फिर आखिर गुरुदेव (समीर लाल ‘समीर’ जी) का दिखाया रास्ता ही सबसे बेहतर नज़र आया…ब्लागर्स की दुनिया के सचिन तेंदुलकर हैं समीर लाल ‘समीर’…किस तरह स्तरीय रहते हुए भी लोगों के दिलों पर राज किया जा सकता है, गुरुदेव इसकी शाश्वत मिसाल हैं…मैच-फिक्सिंग के ज़रिए तो कोई भी थोड़े वक्त के लिए अपने दिल को झूठी तसल्ली दे सकता है.. लेकिन गुरुदेव की सिर्फ एक पोस्ट को ही पढ़कर कोई भी अंदाज़ा लगा सकता है…किसी को रूलाना तो एक मिनट का काम होता है, अपने पर हंसते हुए लेखनी से दूसरों को गुदगुदा देना…बड़ा कलेजा चाहिए होता है इसके लिए हुजूर..
तो भइया अपनी पोस्ट पर भले ही अंडेजी हमेशा हमें मुंह चिढ़ाते रहें…लेकिन ब्लागिंग की दुनिया में चलेंगे गुरुदेव समीर लाल ‘समीर’ जी की ही राह पर…वो ट्रकों के पीछे लिखा रहता है न- मैं तो नू हीं चलूंगा…रही बात कमेंट्स की तो मुझे पढ़ने वाले दोस्तों- तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना…
स्लॉग ओवर
12 साल के पप्पूजी को झूठ बोलने की लत लग गई..कुछ भी उलटा-सुलटा किया… झूठ बोला..और जान बचा ली..स्कूल का होमवर्क नहीं किया तो पिताश्री के एक्सीडेंट तक का बहाना बना लिया…टीचर बजाए डांटने के और हमदर्दी जताने लगती…लेकिन धीरे-धीरे पप्पूजी की कलई खुलने लगी और शिकायतें घर तक पहुंचने लगीं..माताश्री और पिताश्री दोनों परेशान…पप्पूजी का करें तो करें क्या…भला हो पिताश्री के एक साइंटिस्ट दोस्त का, उसने माज़रा भांप लिया…साइंटिस्ट साहब ने समाधान सुझाया कि वो ऐसा रोबोट दिला सकते हैं जो झूठ सुनते ही बोलने वाले के गाल पर झन्नाटेदार चांटा रसीद करता है…झूठ बोलने वाले को दिन में ही तारे नज़र आने लगते हैं…ये सुनकर पिताश्री-माताश्री दोनों बेहद खुश..साइंटिस्ट से बोले..हमें इसी वक्त वो रोबोट दिलाओ…खैर रोबोट घर आ गया..पप्पूजी रोबोट से बेखबर घर पर आए..स्कूल छूटता था 2 बजे और पप्पूजी घर पर शाम को 6 बजे आए…माताश्री-पिताश्री ने पूछा…कहां थे अब तक…पप्पूजी ने तपाक से कहा..वो दोस्त के घर पर भजन था…वहीं गया था…पप्पूजी को पता नहीं था, पर्दे के पीछे रोबोट छुपा था..रोबोट बिना वक्त गंवाए बाहर आया और तड़ाक से पप्पूजी के गाल पर प्रसाद दे दिया…पिताश्री फौरन समझ गए..पप्पू ने झूठ बोला है…बोले…सच-सच बताओ..कहां गए थे…पप्पू ने सच बोलना ही बेहतर समझा..वो..वो..दोस्तों के साथ फिल्म गया था…पिताश्री फौरन बोले…शर्म तो नहीं आती होगी, हम तुम्हारी उम्र के थे तो दिन-रात पढ़ाई के सिवा और कुछ नहीं सोचते थे…ये सुनते ही रोबोटजी मुड़े और पिताश्री के गाल पर भी एक जड़ दिया…पिताश्री का झूठ पकड़े जाने पर माताश्री को मौका मिल गया…बोलीं…देखा, आखिर है तो आप ही का बेटा न..जैसा बेटा, वैसा बाप…माताश्री के ये बोलते ही रोबोट धीरे से आया और एक उनके गाल पर भी धर दिया…
आखिर काहे की आपकी पत्रकारिता और काहे के आप बेस्ट न्यूज़ प्रोड्यूसर..बड़ा वहम पाला हुआ था, स्तरीय लिखेंगे, कुछ नई जानकारियां शेयर करेंगे…लेकिन भइया पढ़ेगा कौन…अनुराग हर्ष भाई की पोस्ट…ब्लॉग पर पाठक कब आएंगे…पढ़ा तो दिल को कुछ तसल्ली हुई…
हरिवंश राय जी बच्चन का वो ब्रह्मवाक्य अचानक दिमाग में बत्ती की तरह जलने लगा जो उन्होंने यशस्वी पुत्र अमिताभ को नैनीताल के शेरवुड स्कूल में पढ़ाई के दौरान दिया था- मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा…भईया, अब तो हमने भी इसे जीवन का आदर्श बना लिया है…(वैसे और कोई तीर मार भी कहां सकते थे)…तो जनाब अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न है कि ब्लॉगर-बिरादरी मे पॉपुलर कैसे हुआ जाए…
गुरुदेव समीर लाल जी की उड़न-तश्तरी पर कमेंट्स की सेंचुरी…और अपनी पोस्ट पर कमेंट्स वाली जगह पर रबर की एक कूची के साथ लगा अंडा… ऐसे मुंह चिढ़ाता रहता है- मानो कह रहा हो-क्यों आ रहा है न मज़ा…बड़े तीसमारखां बनते थे..हम भी सिर झुकाए अंडेजी से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाते..ठीक है भइया अंडा आइना नहीं दिखाएगा तो और कौन दिखाएगा…
दुनिया को भारत की दी हुई नेमत है…अगर ये ज़ीरो द ग्रेट ना होते तो नासा (अरे भई नशा-वशा नहीं वो अमेरिका वाला नासा) भी हर वक्त नसें फुलाए बैठा रहता…ज़ीरो के बगैर चांद-तारों की सही दूरी का अंदाज़ कहां से लगा पाता…खैर ये तो हुई ज़ीरो उर्फ अंडे जी की महिमा…अब फिर उसी दर्द पर लौटते है ब्लॉग पर कमेंट्स क्यों नहीं आते…या तो हम भी इंसान को इंसान न समझने वाली, धर्म-जात जैसे मुद्दों पर ज़हर घोलने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए कूड़ा-करकट लिखे और फिर उस पर प्रतिक्रियाओं के अंबार के नीचे दब जाए…या फिर किसी पीआर एजेंसी की ही क्यों ना सेवा ले ली जाएं..(ब्लागर्स भाइयों में अगर कोई ऐसी एजेंसी के बारे में जानता हो तो बताना प्लीज़…)
बड़ा सोचा फिर आखिर गुरुदेव (समीर लाल ‘समीर’ जी) का दिखाया रास्ता ही सबसे बेहतर नज़र आया…ब्लागर्स की दुनिया के सचिन तेंदुलकर हैं समीर लाल ‘समीर’…किस तरह स्तरीय रहते हुए भी लोगों के दिलों पर राज किया जा सकता है, गुरुदेव इसकी शाश्वत मिसाल हैं…मैच-फिक्सिंग के ज़रिए तो कोई भी थोड़े वक्त के लिए अपने दिल को झूठी तसल्ली दे सकता है.. लेकिन गुरुदेव की सिर्फ एक पोस्ट को ही पढ़कर कोई भी अंदाज़ा लगा सकता है…किसी को रूलाना तो एक मिनट का काम होता है, अपने पर हंसते हुए लेखनी से दूसरों को गुदगुदा देना…बड़ा कलेजा चाहिए होता है इसके लिए हुजूर..
तो भइया अपनी पोस्ट पर भले ही अंडेजी हमेशा हमें मुंह चिढ़ाते रहें…लेकिन ब्लागिंग की दुनिया में चलेंगे गुरुदेव समीर लाल ‘समीर’ जी की ही राह पर…वो ट्रकों के पीछे लिखा रहता है न- मैं तो नू हीं चलूंगा…रही बात कमेंट्स की तो मुझे पढ़ने वाले दोस्तों- तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना…
स्लॉग ओवर
12 साल के पप्पूजी को झूठ बोलने की लत लग गई..कुछ भी उलटा-सुलटा किया… झूठ बोला..और जान बचा ली..स्कूल का होमवर्क नहीं किया तो पिताश्री के एक्सीडेंट तक का बहाना बना लिया…टीचर बजाए डांटने के और हमदर्दी जताने लगती…लेकिन धीरे-धीरे पप्पूजी की कलई खुलने लगी और शिकायतें घर तक पहुंचने लगीं..माताश्री और पिताश्री दोनों परेशान…पप्पूजी का करें तो करें क्या…भला हो पिताश्री के एक साइंटिस्ट दोस्त का, उसने माज़रा भांप लिया…साइंटिस्ट साहब ने समाधान सुझाया कि वो ऐसा रोबोट दिला सकते हैं जो झूठ सुनते ही बोलने वाले के गाल पर झन्नाटेदार चांटा रसीद करता है…झूठ बोलने वाले को दिन में ही तारे नज़र आने लगते हैं…ये सुनकर पिताश्री-माताश्री दोनों बेहद खुश..साइंटिस्ट से बोले..हमें इसी वक्त वो रोबोट दिलाओ…खैर रोबोट घर आ गया..पप्पूजी रोबोट से बेखबर घर पर आए..स्कूल छूटता था 2 बजे और पप्पूजी घर पर शाम को 6 बजे आए…माताश्री-पिताश्री ने पूछा…कहां थे अब तक…पप्पूजी ने तपाक से कहा..वो दोस्त के घर पर भजन था…वहीं गया था…पप्पूजी को पता नहीं था, पर्दे के पीछे रोबोट छुपा था..रोबोट बिना वक्त गंवाए बाहर आया और तड़ाक से पप्पूजी के गाल पर प्रसाद दे दिया…पिताश्री फौरन समझ गए..पप्पू ने झूठ बोला है…बोले…सच-सच बताओ..कहां गए थे…पप्पू ने सच बोलना ही बेहतर समझा..वो..वो..दोस्तों के साथ फिल्म गया था…पिताश्री फौरन बोले…शर्म तो नहीं आती होगी, हम तुम्हारी उम्र के थे तो दिन-रात पढ़ाई के सिवा और कुछ नहीं सोचते थे…ये सुनते ही रोबोटजी मुड़े और पिताश्री के गाल पर भी एक जड़ दिया…पिताश्री का झूठ पकड़े जाने पर माताश्री को मौका मिल गया…बोलीं…देखा, आखिर है तो आप ही का बेटा न..जैसा बेटा, वैसा बाप…माताश्री के ये बोलते ही रोबोट धीरे से आया और एक उनके गाल पर भी धर दिया…
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