नसबंदी कराओ, नैनो ले जाओ…खुशदीप

परिवार नियोजन का नाम लेते ही संजय गांधी का नाम ज़ेहन में आता है…सत्तर के दशक में संजय गांधी ने परिवार नियोजन के नाम पर जबरन नसबंदी का जो कहर बरपाया था, उसे लोग आज तक नहीं भूले हैं…स्कूलों में बच्चों को वज़ीफ़ा या फीस में राहत के लिए भी पहले पिता की नसबंदी का सर्टिफिकेट लाकर देना होता था…लेकिन इस तानाशाही सख्ती का जनता ने कैसा करारा जवाब 1977 में इंदिरा-संजय को दिया था, वो लोकतंत्र का कभी न भूलने वाला अध्याय है…संयोग से उन दिनों में कांग्रेस का चुनाव चिह्न भी गाय-बछड़ा ही हुआ करता था…

संजय गांधी ने जो एक्सपेरिमेंट भारत में करना चाहा था, वैसा ही कुछ चीन में हुआ…चीन ने अस्सी के दशक के शुरू में आबादी पर लगाम लगाने के लिए फरमान सुनाया कि किसी भी नवदंपत्ति को एक बच्चे से ज़्यादा करने की इजाज़त नहीं होगी…अब चीन तो चीन है…सख्ती से सरकारी हुक्म पर अमल हुआ…चीन में आबादी की वृद्धि की रफ्तार पर लगाम लग गई…ढाई दशक बीत जाने के बाद चीन को महसूस हुआ कि आबादी को स्थिर करने के चक्कर में लिंग अनुपात असंतुलन या विवाह को लेकर अन्य सामाजिक परेशानियों का खतरा बढ़ रहा है तो उसने एकल संतान पॉलिसी में रियायत देने का फैसला किया …अब ऐसे युवक-युवती जो मां-बाप की अकेली संतान रहे हैं, और उनकी उम्र शादी लायक हो गई है तो वो शादी के बाद दो बच्चे कर सकते हैं…यानि एकल संतान का फरमान उन पर लागू नहीं होगा…

नई जनगणना के मुताबिक भारत में आबादी सवा अरब तक पहुंच गई है…आबादी की वृद्धि की दर में भारत में भी कमी आई है…लेकिन ये कमी इतनी संतोषजनक नहीं है कि हम चैन से बैठ जाएं…यही हालत रही तो वो दिन दूर नहीं है जब आबादी में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे…चीन का भू-भाग भारत से कहीं बड़ा है…इसलिए चीन की तुलना में भारत को आबादी का दंश कहीं ज़्यादा सहन करना पड़ रहा है…गरीबी, कुपोषण, स्वास्थ्य ये सारी समस्याएं इसीलिए हैं कि हम सीमित संसाधनों से इतनी बड़ी आबादी की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते…

सत्तर के दशक में संजय गांधी का परिवार नियोजन कार्यक्रम इतना बदनाम हुआ कि बाद में इसका नाम ही बदल कर परिवार कल्याण कर दिया गया… बड़े परिवार की अपेक्षा छोटे परिवार के फायदों को लेकर हमारे देश में भी पिछले दो-तीन दशक में काफी जागरूकता आई है…लेकिन अब भी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना बाकी है…यहां भ्रांतियां किस कदर फैलती है, इसका सबूत पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के दौरान भी दिखा…गलतफहमी के चलते कुछ लोगों ने बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने से ही इनकार कर दिया…उन्हें डर था कि कहीं ये उनकी वंशबेल को रोकने की साज़िश तो नहीं…ये तो भला हो उन्हीं के बड़े-बुज़ुर्गों का जिनके समझाने पर ये भ्रांति दूर हो पाई…ये तय है कि छोटा परिवार ही हमारे सुखी भविष्य के साथ खुशहाल और सशक्त भारत की भी पहचान हैं…इस विषय में देश में जो भी जागरूकता आई है वो लोगों के स्वेच्छा से रुचि लेने से ही संभव हो सकी है…देश के जिन इलाकों में अब भी लोग छोटे परिवार की ज़रूरत को लेकर सजग नहीं है, वहां अभिनव मुहिम चलाए जाने की सख्त आवश्यकता है…सरकार को भी चाहिए कि ऐसे इलाकों में छोटा परिवार अपनाने वालों को प्रोत्साहित करें…जिससे दूसरे भी उनसे प्रेरणा ले सकें…

ऐसी ही एक रिपोर्ट राजस्थान के झुंझनू ज़िले से आई है…बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यहां लोगों को नसबंदी के प्रति आकर्षित करने के लिए नैनो कार इनाम में देने की योजना शुरू की गई है…

कार के अलावा मोटर साइकिल, टेलीविज़न, मिक्सर ग्राइंडर भी इनामों की सूची में है…झुंझनू के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी सीताराम शर्मा ने बीबीसी को बताया कि पहली जुलाई और सितंबर अंत के बीच नसबंदी करवाने वाले लोगों को एक कूपन दिया जाएगा और इन सभी कूपनों को इकट्ठा कर लाटरी के माध्यम से विजेता का नाम घोषित किया जाएगा…झुंझनू काफ़ी शिक्षित इलाक़ा है… यहाँ जनसंख्या दर बेहद कम है और यहाँ की आबादी 21 लाख के आसपास है….पिछले 10 सालों में जनसंख्या बढ़ने की दर 11.28 प्रतिशत रही है…


झुंझनू के ज़िलाधिकारी अंबरीश कुमार बताते हैं कि नसबंदी करवाने के लिए पहले भी सरकार प्रलोभन देती रही है और हर व्यक्ति को क़रीब 2000 रुपए दिए जाते हैं, लेकिन इस योजना से उम्मीद है कि ज़्यादा लोग नसबंदी करवाने के लिए आगे आएँगे…अंबरीश कहते हैं कि ऐसी योजना समाज के निचले वर्ग के लोग ही अपनाते हैं और कोशिश है उनके लिए इस योजना को और आकर्षक बनाना….इन इनामों को राजस्थानी सेवा संघ नाम के एक स्थानीय ट्रस्ट ने प्रायोजित किया है… ट्रस्ट से जुड़े हुए निर्मल झुनझुनवाला कहते हैं कि ट्रस्ट ने ये काम समाज के लिए किया है…ट्रस्ट की तरफ़ से ये प्रस्ताब अंबरीश कुमार के सामने रखा गया था, जिन्हें ये बात बहुत पसंद आई..निर्मल बताते हैं कि उनका ट्रस्ट कई जगह शैक्षणिक संस्थान चलाता है और ये करीब 60 साल पुराना है…

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