अपने पे भरोसा है तो…खुशदीप

वक्त इनसान पे ऐसा भी कभी आता है,
राह में छोड़कर साया भी चला जाता है…

कहते हैं कि अच्छे-बुरे, अपने-पराए की बढ़िया पहचान मुश्किल वक्त में ही होती है…कामयाबी के सौ माई-बाप होते हैं लेकिन जब आप डाउन होते हैं तो आपके पास वही टाइम निकाल कर आता है, जो सच में अपने दिल में आपके लिए जगह रखता है…जिसके कंधे पर जितने ज़्यादा हाथ हौसला देने के लिए आएं, वो उतना ही बड़ा अमीर है…

वैसे दुनिया जितनी मैट्रीरियलिस्ट (भौतिकतावादी) होती जा रही है, इनसान खुद को अपने में ही समेटता जा रहा है…खुद, पत्नी और बच्चे…बस यहीं सारा संसार सिमट रहा है…और रिश्ते भी बेमानी लगने लगते हैं…अपने बच्चे बड़े होते हैं, फिर वो अपनी दुनिया बसाते हैं…उनके लिए भी जीवन-साथी और बच्चे सबसे अहम हो जाते हैं…यानि 360 डिग्री का एंगल पूरा होता है…हर कोई इसे जीवन का सच मान ले तो उसे हालात के अनुरूप खुद को ढालने में दिक्कत नहीं होगी…

खुद पर भरोसा

अब यहां ये सवाल उठ सकता है, आदमी भरोसा करे तो करे किस पर…मेरा जवाब है खुद पर…क्योंकि जितना बस आपका अपने आप पर है, और किसी पर नहीं हो सकता…इसे आत्मविश्वास कहिए या कुछ और, आदमी का इससे बड़ा मददगार और कोई नहीं हो सकता…बस ये ध्यान अवश्य रखना होगा कि आत्मविश्वास अहंकार में न तब्दील हो जाए…याद रखिए, अहंकार तो रावण जैसे महाबलि और परमविद्वान का भी नहीं रहा था…


खुद पर भरोसे की यहां दो मिसालें देना चाहूंगा…एक नेगेटिव और दूसरी पॉजिटिव…पहले नेगेटिव…क्योंकि आदमी नेगेटिव बात मिनटों में सीख जाता है और पॉजिटिव को सीखने में बरसों लग जाते हैं…

नेगेटिव आत्मविश्वास
यहां से पचास-पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रोता है तो मां ये कह कर सुलाती है…सोजा नहीं तो गब्बर आ जाएगा…याद रखो, गांव वालों, तुम्हें गब्बर के ताप से सिर्फ़ एक ही आदमी बचा सकता है, और वो है खुद गब्बर…


प़ॉजिटिव आत्मविश्वास
एक प्राइमरी का बच्चा कॉपी में कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें उकेर रहा था…
टीचर ने ये देखा तो पास आकर प्यार से बोली…ये आप क्या कर रहे हैं…
बच्चा…मैडम, मैं भगवान की तस्वीर बना रहा हूं…
ये सुनकर टीचर मुस्कुरा कर बोली…लेकिन भगवान को तो किसी ने देखा नहीं, फिर आप कैसे उनकी तस्वीर बना रहे हैं…
बच्चे ने तस्वीर बनाते-बनाते ही सिर उठा कर टीचर की ओर देखा और फिर धीरे से बोला…थोड़ी देर रुकिए, आज से सब जान जाएंगे कि भगवान कैसे दिखते हैं….





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