…क्या कोई मुझे बताएगा

मेरे कुछ सवाल हैं…अरे घबराइए नहीं…पोस्ट छोड़ कर मत जाइए…ब्लॉगिंग या पसंद से इन सवालों का कोई लेना-देना नहीं है…ये वो सवाल हैं जिनसे हमारा रोज़ पाला पड़ता है…हम इनका धड़ल्ले से... Read more »

टीआरपी, तेरा ये इमोसनल अत्याचार…

ये इमोशनल वाला इमोशनल नहीं, इमोसनल वाला इमोसनल अत्याचार ही है…ठीक वैसे ही जैसे पुरानी फिल्म मिलन में सुनील दत्त…सावन का महीना, पवन करे सोर…गाना नूतन को सिखाते हुए कहते है…अरे बाबा... Read more »

हां, मैंने बढ़ाई थी अपनी पसंद…

आज दो अक्टूबर है…दो हस्तियों का जन्मदिन…एक सत्य का पुजारी…दूसरा ईमानदारी की मिसाल…एक गांधी, दूसरा शास्त्री…इस पावन दिन पर मैं अपना गुनाह कबूल कर अपने दिल का बोझ हल्का कर रहा हूं…औरों... Read more »

पाबलाजी और मैं ‘अमिताभ’ हो गए…

(ये व्यंग्य मैं दोबारा पोस्ट कर रहा हूं…क्योंकि ब्लॉगवाणी के ब्लैक आउट के दौरान स्वाभाविक है, हर किसी का ध्यान ब्लॉगवाणी के दोबारा शुरू होने पर ही था…इसलिए किसी विषय पर ध्यान... Read more »

…ताकि फिर कोई उंगली न उठाए

ब्लॉगवाणी के विराम लेने से पहले आपने गौर किया होगा कि ब्लॉगवाणी के साइड लिंक्स में ये सूचनाएं चलती रहती थीं कि ब्लॉगवाणी को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा... Read more »

…लो जी बम फट गया

मैंने 12 बजे रात को बम फोड़ने का वादा कर रखा था…लेकिन ब्लॉगवाणी वालों ने पहले ही बम फोड़ दिया…मेरा बम तो सुतली बम होता लेकिन ब्लॉगवाणी ने असल में ही धमाका... Read more »

कल का दिल थामकर इंतज़ार कीजिए…

अभी जख्‍म ताजा हैं…जब पास्‍ट हो जाएंगे…खुश पोस्‍ट तब ही लिखी जाएगी…तब ही भरपूर हिम्‍मत आएगी…ये टिप्पणी अविनाश वाचस्पति जी ने मेरी पोस्ट…इक दिन चलणा…पर भेजी…अविनाश जी समेत जिनकी भी प्रतिक्रियाएं मेरी... Read more »

इक दिन चलणा…

जिंद मेरिए मिट्टी दी ए ढेरिए, इक दिन चलणा…(जीवन माटी की एक ढेरी है, एक दिन चलना है)….ये शबद मेरे कानों में गूंज रहा है…साथ ही ये सवाल मेरे ज़ेहन में, कि... Read more »

चाणक्य की राजनीति का पहला पाठ…

राजनीति के आदिगुरु चाणक्य ने करीब दो हजार साल पहले अपने शिष्य चंद्रगुप्त को राजनीति का पहला पाठ पढाया था तो खीर भरी थाली का सहारा लिया…पाठ ये था कि थाली के... Read more »

ब्लॉगिंग को महेश नहीं, ब्रह्मा-विष्णु चाहिएं

देवा रे देवा…यहां भी राजनीति…ब्लॉगिंग के शैशव-काल में ही कदम-कदम पर उखाड़-पछाड़ की शतरंज…मोहरे चलाने वाले परदे के पीछे…और मोहरे हैं कि कारतूस की तरह दगे जा रहे हैं…ठीक वैसे ही जैसे... Read more »
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