Early to bed, early to rise, work like hell and advertise…
(जल्दी सोओ, जल्दी उठो, जहन्नुम
की तरह काम करो और प्रचार करो…)
की तरह काम करो और प्रचार करो…)
अब ये चाहे Laurence J. Peter ने कहा हो या केबल न्यूज़ नेटवर्क (सीएनएन)
के संस्थापक Ted Turner III ने, लेकिन ये मंत्र है अनमोल। आप किसी भी फील्ड में हों, यदि इस मंत्र का पालन करते हैं तो सफलता
निश्चित है। इस वाक्य में work like hell सबसे अहम है। यानी जहन्नुम की तरह हाड़तोड़
मेहनत। लेकिन देश की राजनीति में अब कुछ और ही नज़ारा देखने को मिल रहा है।
के संस्थापक Ted Turner III ने, लेकिन ये मंत्र है अनमोल। आप किसी भी फील्ड में हों, यदि इस मंत्र का पालन करते हैं तो सफलता
निश्चित है। इस वाक्य में work like hell सबसे अहम है। यानी जहन्नुम की तरह हाड़तोड़
मेहनत। लेकिन देश की राजनीति में अब कुछ और ही नज़ारा देखने को मिल रहा है।
यहां काम तो जो हो रहा
है, सो हो रहा है। लेकिन प्रचार में दिन-रात कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। अब
चाहे ये केंद्र सरकार हो या किसी और राज्य की सरकार। अपना ढिंढोरा पीटने में कोई
पीछे नहीं है। ढिंढोरा भी पार्टी का नहीं, व्यक्ति-विशेष का ही पीटा जाता है।
है, सो हो रहा है। लेकिन प्रचार में दिन-रात कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। अब
चाहे ये केंद्र सरकार हो या किसी और राज्य की सरकार। अपना ढिंढोरा पीटने में कोई
पीछे नहीं है। ढिंढोरा भी पार्टी का नहीं, व्यक्ति-विशेष का ही पीटा जाता है।
आपको याद होगा कि हाल में
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों को लेकर आदेश जारी किया था। इस आदेश में कहा गया था सरकारी विज्ञापन लोगों तक जानकारी पहुंचाने
के लिए हैं ना कि किसी नेता की छवि बनाने के लिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं के फोटो के
इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी। सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देश के मुख्य
न्यायाधीश को ही इस आदेश से अलग रखा गया। हालांकि ये तय करना इन तीनों पर ही छोड़
दिया गया कि किसी विज्ञापन में उनकी तस्वीर छपे या नहीं। ये बात अलग है कि सुप्रीम
कोर्ट का आदेश आने के बाद भी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसका उल्लंघन करते दिखे। इनकी फोटो के साथ इनका गुणगान
करने वाले कई-कई पन्नों के विज्ञापन छपे। हालांकि अब विज्ञापनों में फोटो तो नहीं
दिख रही है। लेकिन इसका भी तोड़ ढूंढ लिया गया है। जैसे कि नोएडा के व्यस्तम इलाके
जीआईपी मॉल के पास उत्तर प्रदेश सरकार का बड़ा सा सिनेमा के स्क्रीन जितना
होर्डिंग लगा है। जिस पर लगातार अखिलेश और उनकी सरकार के कामकाज का गुणगान करने
वाली फिल्में चलती रहती हैं। इससे वाहन चलाने वालों का ध्यान बंटने से दुर्घटना का
कितना ख़तरा है, इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों को लेकर आदेश जारी किया था। इस आदेश में कहा गया था सरकारी विज्ञापन लोगों तक जानकारी पहुंचाने
के लिए हैं ना कि किसी नेता की छवि बनाने के लिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं के फोटो के
इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी। सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देश के मुख्य
न्यायाधीश को ही इस आदेश से अलग रखा गया। हालांकि ये तय करना इन तीनों पर ही छोड़
दिया गया कि किसी विज्ञापन में उनकी तस्वीर छपे या नहीं। ये बात अलग है कि सुप्रीम
कोर्ट का आदेश आने के बाद भी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसका उल्लंघन करते दिखे। इनकी फोटो के साथ इनका गुणगान
करने वाले कई-कई पन्नों के विज्ञापन छपे। हालांकि अब विज्ञापनों में फोटो तो नहीं
दिख रही है। लेकिन इसका भी तोड़ ढूंढ लिया गया है। जैसे कि नोएडा के व्यस्तम इलाके
जीआईपी मॉल के पास उत्तर प्रदेश सरकार का बड़ा सा सिनेमा के स्क्रीन जितना
होर्डिंग लगा है। जिस पर लगातार अखिलेश और उनकी सरकार के कामकाज का गुणगान करने
वाली फिल्में चलती रहती हैं। इससे वाहन चलाने वालों का ध्यान बंटने से दुर्घटना का
कितना ख़तरा है, इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार
का आजकल टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा, एक विज्ञापन भी विवाद के घेरे में है। इस
विज्ञापन में बेशक केजरीवाल का चेहरा नहीं दिखाया गया हो, लेकिन इसके पात्र 11 बार
केजरीवाल का नाम लेते हैं। ज़ाहिर है कि ये व्यक्ति विशेष की छवि चमकाने की कवायद
ही है। बीजेपी इस विज्ञापन को वापस ना लिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा
खटखटाने की बात कर रही है। अब ये बात दूसरी है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र
सरकार का सबसे बड़ा हथियार ही प्रचार है।
का आजकल टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा, एक विज्ञापन भी विवाद के घेरे में है। इस
विज्ञापन में बेशक केजरीवाल का चेहरा नहीं दिखाया गया हो, लेकिन इसके पात्र 11 बार
केजरीवाल का नाम लेते हैं। ज़ाहिर है कि ये व्यक्ति विशेष की छवि चमकाने की कवायद
ही है। बीजेपी इस विज्ञापन को वापस ना लिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा
खटखटाने की बात कर रही है। अब ये बात दूसरी है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र
सरकार का सबसे बड़ा हथियार ही प्रचार है।
केंद्र सरकार के मुखिया
नरेंद्र मोदी का अंदाज़ थोड़ा जुदा है। सब जानते हैं कि मोदी से बड़ा इवेंट मैनेजर
इस देश में कोई और नेता नहीं है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन इसकी बानगी है।
मोदी सरकार का एक साल पूरा हुआ तो किस तरह ताबड़तोड़ रैलियां और मीडिया पर प्रचार
हुआ, ये भी किसी से छुपा नहीं है। मीडिया मैनेजमेंट भी मोदी सरकार की बड़ी खूबी
है। इस मामले में केजरीवाल अनाड़ी साबित हुए हैं। केजरीवाल की टीम में कुछ अनुभवी पत्रकारों के होने के बावजूद मीडिया से
संबंधों में तल्खी घटी नहीं बल्कि और बढ़ी। अब यही वजह है कि केजरीवाल सरकार जनता
तक जो बात पहुंचाना चाहते हैं उसके लिए सरकारी खर्च पर धुंआधार प्रचार का सहारा
लेना पड़ रहा है।
नरेंद्र मोदी का अंदाज़ थोड़ा जुदा है। सब जानते हैं कि मोदी से बड़ा इवेंट मैनेजर
इस देश में कोई और नेता नहीं है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन इसकी बानगी है।
मोदी सरकार का एक साल पूरा हुआ तो किस तरह ताबड़तोड़ रैलियां और मीडिया पर प्रचार
हुआ, ये भी किसी से छुपा नहीं है। मीडिया मैनेजमेंट भी मोदी सरकार की बड़ी खूबी
है। इस मामले में केजरीवाल अनाड़ी साबित हुए हैं। केजरीवाल की टीम में कुछ अनुभवी पत्रकारों के होने के बावजूद मीडिया से
संबंधों में तल्खी घटी नहीं बल्कि और बढ़ी। अब यही वजह है कि केजरीवाल सरकार जनता
तक जो बात पहुंचाना चाहते हैं उसके लिए सरकारी खर्च पर धुंआधार प्रचार का सहारा
लेना पड़ रहा है।
ये प्रचार ठीक उसी तरह का
है जैसे कि चुनावी साल में सत्तारूढ़ पार्टियां इस देश में बरसों से करती रही हैं।
चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ दल ही नहीं विपक्ष भी किस तरह कॉरपोरेट के दम पर प्रचार
पर बेतहाशा पैसा खर्च कर सकता है ये हमने पिछले साल लोकसभा चुनाव में देखा था।
राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट फंडिंग होती है, ये शाश्वत सत्य है। ये कॉरपोरट किस तरह
फिर इसे भुनाते हैं, ये समझना भी कोई रॉकेट साइंस नहीं है।
है जैसे कि चुनावी साल में सत्तारूढ़ पार्टियां इस देश में बरसों से करती रही हैं।
चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ दल ही नहीं विपक्ष भी किस तरह कॉरपोरेट के दम पर प्रचार
पर बेतहाशा पैसा खर्च कर सकता है ये हमने पिछले साल लोकसभा चुनाव में देखा था।
राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट फंडिंग होती है, ये शाश्वत सत्य है। ये कॉरपोरट किस तरह
फिर इसे भुनाते हैं, ये समझना भी कोई रॉकेट साइंस नहीं है।
लेकिन अब चुनाव बेशक
चार-साढ़े चार साल दूर हो फिर भी सत्तारूढ़ दलों का ज़ोरदार प्रचार का ये नया ट्रेंड है। इमेज बिल्डिंग पर
पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है…वो भी हमारे-आप जैसे टैक्सपेयर्स का पैसा…दिल्ली
सरकार और केंद्र सरकार के बीच इगो की लड़ाई के बीच दिल्ली के आम आदमी की हालत ऐसी
है जैसे कि चक्की के दो पाटों में उसे पीसा जा रहा है। जितना ध्यान मूंछ की इस
लड़ाई पर दिया जा रहा है, इतना ही ध्यान अगर आम लोगों के हालात सुधारने पर दिया
जाए तो यकीन मानिए इस तरह प्रचार की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। बस सबको याद रखना
होगा-
चार-साढ़े चार साल दूर हो फिर भी सत्तारूढ़ दलों का ज़ोरदार प्रचार का ये नया ट्रेंड है। इमेज बिल्डिंग पर
पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है…वो भी हमारे-आप जैसे टैक्सपेयर्स का पैसा…दिल्ली
सरकार और केंद्र सरकार के बीच इगो की लड़ाई के बीच दिल्ली के आम आदमी की हालत ऐसी
है जैसे कि चक्की के दो पाटों में उसे पीसा जा रहा है। जितना ध्यान मूंछ की इस
लड़ाई पर दिया जा रहा है, इतना ही ध्यान अगर आम लोगों के हालात सुधारने पर दिया
जाए तो यकीन मानिए इस तरह प्रचार की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। बस सबको याद रखना
होगा-
Work like hell to make the country a paradise (for its people)
स्लॉग ओवर
मक्खन घड़ी
खरीदने के लिए बाज़ार गया।
खरीदने के लिए बाज़ार गया।
दुकानदार से उसने
घड़ी के दाम पूछे।
घड़ी के दाम पूछे।
दुकानदार ने
कहा….25 रुपये।
कहा….25 रुपये।
मक्खन…इतनी
सस्ती, तुम इसमें कमाओगे क्या?
सस्ती, तुम इसमें कमाओगे क्या?
दुकानदार…एक बार ले तो
जाओ, कमाऊंगा तो बाद में, जब बार-बार यहां आओगे।
जाओ, कमाऊंगा तो बाद में, जब बार-बार यहां आओगे।
Latest posts by Khushdeep Sehgal (see all)
- दुबई में 20,000 करोड़ के मालिक से सानिया मिर्ज़ा के कनेक्शन का सच! - February 4, 2025
- कौन हैं पूनम गुप्ता, जिनकी राष्ट्रपति भवन में होगी शादी - February 3, 2025
- U’DID’IT: किस कंट्रोवर्सी में क्या सारा दोष उदित नारायण का? - February 1, 2025