हां, मैं हूं बबली जी का वकील…

पहली बात तो मैं ये साफ़ कर दूं कि ये पोस्ट मुझे कल ही लिखनी थी लेकिन कल किसी समारोह में जाने की वजह से ये मेरे लिए संभव नहीं हो सका…मैं ये भी इंतज़ार कर रहा था कि बबली जी शायद खुद ही कुश की अदालत में अपने खिलाफ चले स्वयंभू मुकदमे की चार्जशीट पर सफाई दे दें…लेकिन बबली जी अपनी अगली पोस्टों के लिए स्नैप्स और शेरो-शायरी ढूंढने में इतनी व्यस्त हैं कि उन्हें ऐसे छोटे मोटे मुकदमों की कोई परवाह नहीं..वैसे भी ये मुकदमा ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में कोई चल रहा है, ये मुकदमा तो चल रहा है जयपुर के कुश के ज़रिए ब्लॉगर्स की अदालत में…
ठीक वैसे ही जैसे नया सीरियल चल रहा है…ये चंदा कानून है…इस अदालत में फैसला पहले सुनाया जाता है, सफाई के लिेए मौका बाद में दिया जाता है…भईया खबर की दुनिया का भी पहला सिद्धांत है कि कोई रिपोर्ट फाइल की जाए तो संबंधित सभी पक्षों का वर्जन भी जान लिया जाए…पर ब्लागर्स के मंच पर खुला खेल फर्रूखाबादी है…न खाता, न बही, जो कुश महाराज कहें, वो सही…मौज को ही मुद्दा बना दें…मुद्दों की मौज बनाने की फिक्र कौन करे…
किसी ने बबली जी वाली कुश जी की पोस्ट पर कमेंट किया है कुशाग्र बुद्धि,आइडिया के खान हो सचमुच…मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूं…कुश जी की इंस्पेक्टर ईगल वाली बुद्धि को मेरा भी लमस्कार (उन्हीं की तर्ज पर)…बबली जी की प्रोफाइल की पंक्ति निकाली…उनका फोटो जू….म किया…फिर 36 कमेंटस (वैसे उस पोस्ट पर और भी ज़्यादा कमेंट्स आए थे) में से… चुन चुन कर मारूंगा वाली… तर्ज पर सिर्फ 14 नाम छांटे…उन महारथियों में एक गरीब मैं भी था…ब्लॉग-शास्त्र में नया रंगरूट होने की वजह से अनजान था कि किसी दूसरी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए जाने से पहले कुशजी की अनुमति लेनी होती है…अब खुश कमेंट करने के लिए कुश से अनुमति नहीं लेगा तो और किससे लेगा…ठीक वैसे ही जैसे कालेज में नया दाखिला लेने पर दादा भाइयों से डर कर रहना पडता है…
तो कुश भाई, पहली बात तो ये मैंने आपकी समझ के अनुसार बबली जी की पोस्ट पर जाकर टिप्पणी करने का गुनाह किया…क्या गुनाह किया था… बगैर बबली जी की तारीफ किए फोटो के भाव को देखते हुए पुरानी फिल्म सीमा में रफी साहब के गाए गाने की दो पंक्तियां लिख दी थीं
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
(अब ये मत कह देना कि मैंने भी उन पंक्तियों में गीतकार का नाम नहीं दिया तो मैंने भी वो गाना चोरी कर लिया, इसलिए मैं भी बंटी हो गया)
रही बात जिन 14 टिप्पणीकारों का आपने चिट्ठे में जिक्र किया, उन्होंने क्यों नहीं अपने-अपने घरों में गीत-गजलों के संग्रह रखे हुए, कहीं कमेंट देना है तो पहले उनसे कन्सल्ट करो…ठोक बजा कर देख लो कि जो पंक्तियां पढी है वो कहीं मरहूम गालिब चचा तो ही नहीं लिख गए…वैसे कुश जी फिर दाद दूंगा आपके सिक्स्थ सेंस को…वाजिदा तब्बसुम जी की पंक्तियों को ऐसे प्रचारित किया जैसे गोया वो गायक जगजीत सिंह ने खुद ही लिखी हो…ये तो भला हो पल्लवी त्रिवेदी जी का जिन्होंने सच बता दिया कि आखिर वो पंक्तियां किसकी थीं…नहीं हमें तो कुश जी ने ये मनवा ही दिया था कि ये पंक्तियां जगजीत सिंह की ही थी…
अब रही बात जिन्होंने बबली जी की पोस्ट पर कमेंट किए वो अपनी बात पर टिके क्यों नहीं …सफाई की मुद्रा में आपको साक्षात दंडवत क्यों नहीं करें…जैसे एक टिप्पणीकार ने लिखा है बड़े-बड़े बबली जी की पोस्ट पर जाकर साक्षात दंडवत करते दिखाई देते हैं…समीर लाल जी समीर ने शालीन तरीके से अपने कमेंट्स के जरिए समझाने की कोशिश भी कि “एक साथ ३६ लोग आँख नहीं मूंदते. कतई आवश्यक नहीं कि हर रचना के रचनाकार को आप जाने ही या उसे सुना ही हो तो यह भूल अति स्वभाविक है अगर आप किसी के उत्साहवर्धन करने के लिए आगे आते हैं. वरना अपने आप में तो यूँ भी मुदित रहा जा सकता है.” समीर जी आंख की मर्यादा रखना जानते हैं, इसलिए उन्होंने उसी तरीके से रिएक्ट किया…
मैंने ब्लॉगवाणी पर और छानने की कोशिश की शायद कोई और जांबाज़ नज़र आ जाए जिसने इस सेंसेटिव मुद्दे पर अपना पक्ष रखने की कोशिश की हो…ऐसे में सिर्फ एक ही दिलेर मिला, हाथ में लठ्ठ लिए अपना ताऊ रामपुरिया…ताऊ ने अपनी पोस्ट में कुछ गजब के सवाल किेए हैं….उन्हें ताऊ की अनुमति से मैं फिर यहां रिपीट करना चाहूंगा…
सवाल न.1… क्या नये लोगों के बारे मे पूरी जानकारी किये बिना उनके चिठ्ठों पर टिप्पणियां नही की जाना चाहिये? जब तक की उनके बारे में पक्की खबर नही लग जाये कि यह आदमी इधर उधर का माल नही ला रहा है? अथवा उनके द्वारा सेल्फ़ डिसकलेमर पोस्ट के नीचे लगाया जाना चाहिये कि यह माल सौ प्रतिशत शुद्ध उनका ही है, यानि खांटी माल है, सिर्फ़ ऐसी ही डिसकलेमर लगी चिठ्ठा पोस्टों पर टिपियाया जाना अलाऊ होगा?
 
सवाल न.2… जो जिस क्षेत्र का ब्लागर है उसे उसी क्षेत्र मे टिप्पणी करनी चाहिये, मसलन कविता, गजल/शायरी का जानकार ही गजल/शायरी की पोस्ट पर कमेंट कर सकता है. इसी तरह गद्य के जानकार गद्य पोस्टों पर करें?
 
इसका फ़ायदा यह होगा कि भविष्य मे इस तरह की कवायद करने की जरुरत ही नही पडॆगी. कारण कि हर आदमी के लिये हर क्षेत्र का जानकार होना जरुरी नही है. तो फ़टे मे पांव नही घुसेडने की आदत से बचा जा सकेगा.
 
सवाल न. 3… क्या आप सोचते हैं कि शादी का लिफ़ाफ़ा नही लौटाना चाहिये? अब आप कहोगे कि ऐसे लोगों को शादी का निमंत्रण ही क्यो देते हो? बात आपकी ठीक है पर यह ऐसी सरकारी शादी है कि सामने वाला बिना बताये आगे से निमंत्रण पत्र (टिप्पणी) डाल जाता है तो उसको क्या करें? क्या ऐसी आई हुई टिप्पणी को लौटा देना (डिलिट) चाहिये?
 
जिस तरह से यहां टिप्पणी करने वालों की छीछालेदर हुई है उससे तो अब कहीं टिप्पणी भी करने की इच्छा नही हो रही है. क्योंकि वहां टिपियाने वाले अधिकांश टिप्पणीकर्ता गजल/शायरी की विधा से वाकिफ़ भी नही थे और जो इसके जानकार भी थे तो जरुरी नही है कि वो ये जानते ही हों की यह किसकी रचना है? जिन्होने भी टिपण्णीयां की वो एक तरह से प्रोत्साहनात्मक कार्य ही था.
 
 
सवाल न. 4… क्या आप समझते हैं कि वरिष्ठों की एक स्क्रींनिग कमेटी होनी चाहिये जिनके पास पोस्ट जमा करा दी जाये और वहां से ओके सर्टीफ़िकेट मिलने के बाद ही पोस्ट पबलिश करने की अनुमति दी जानी चाहिये?
यानि एक स्वयंभू मठाधीशों और स्ट्रिंगरों की कमेटी बना दी जाये जो यह तय करे कि यह माल मौलिक है या नही और इसके बाद ही इसको निर्बाध कमेंट करने की अनुमति दी जाये?
 
 
सवाल न. 5… अनसेंसर्ड चिठ्ठों यानि जो आपकी स्क्रिनिंग कमेटी से होकर नही आये उन पर टिप्पणी करने की रोक होनी चाहिये जिससे कि ऐसे चिठ्ठों पर टिप्पणी करके भविष्य मे होने वाली छीछालेदर से बचा जा सके.
 
सवाल न. 6…क्योंकि अब टिप्पणियां सिर्फ़ स्क्रिनींग कमेटी द्वारा पारित चिठ्ठों पर ही होंगी तो इसे देखते हुये..उडनतश्तरी, सारथी और चिठ्ठाजगत को यह हिदायत दी जाये कि वो लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिप्पणियां देकर नये लोगों को उत्साह वर्धन करने की भ्रामक अपील करना बंद करें, वर्ना उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी?
 
सवाल न. 7…क्या किसी की छीछालेदर करने का अधिकार कुछ विशेष व्यक्तियों और उनके चेले चपाटों के पास सीमित कर दिया जाना चाहिये? और मौज लेने का अधिकार भी कंडिका ४ वाली कमेटी के पास सीमित कर दिया जाये? इस अधिकार के चलते कमेटी के अध्यक्ष का निर्धारण भी आसानी से हो जायेगा और सदस्य का आना भी कमेटी पर तय ही रहेगा.
 
सवाल न. 8…क्या इस व्यवस्था से हम मातृभाषा की ज्यादा और आसानी से सेवा कर पायेंगे?
ये तो रही ताऊ रामपुरिया की बात…

अनूप शुक्ल जी ने कुश जी की ही पोस्ट पर ये बड़ी सार्थक टिप्पणी की है..
“अरे भाई, बबलीजी ने ये थोड़ी कहा कि अपने ब्लाग पर जो कवितायें, शेर शायरी उन्होंने पोस्ट की उनको उन्होंने लिखा भी है… यह तो इसी तरह हुआ जैसे कि सड़क किनारे किसी कार के पास मैं खड़ा हो जाऊं या फ़िर कोई कार चलाता दिखूं तो आप कहो कि मैं उस कार को अपनी बता रहा था… बाद में साबित कर दो कि मैं झूठ बोल रहा था और कार को अपनी बता रहा था…बबलीजी ने रचनायें पोस्ट कीं यह तो कहा नहीं कि वे उनकी हैं…जिन लोगों ने बबलीजी के ब्लाग पर कमेंट किये उन्होंने भी कोई गलत नहीं कहा… पढ़कर अच्छा लगा, बहुत खूब, सुन्दर लिखा है, क्या खूब लिखा है… इससे यह तो नहीं जाहिर होता कि उन्होंने यह मान लिया है कि वे शेर/गजल बबली ने लिखी हैं… इससे सिर्फ़ और सिर्फ़ यह साबित होता है कि पोस्ट बबली ने किया है और लिखने वाले ने अच्छा लिखा है… लिखने वाला कोई भी हो सकता है… किसी दूसरे की गजल बबलीजी ने अपने नाम से लिख दी कहकर उनकी बुराई करना उसी तरह है जिस तरह इंस्पेक्टर मातादीन ने चांद पर अपराधी पकड़े थे…”

मेरा भी यही मानना है कि बबली जी ने कहीं भी अपनी पोस्ट पर ये नहीं कहा कि ये पंक्तियां मेरी हैं…उन्होंने ये भी नहीं कहा कि जो स्नैप उन्होंने पोस्ट पर दिया है उसकी छायाकार वहीं हैं…हां, एक गुनाह बबली जी ने ज़रूर किया है कि पल्लवी त्रिवेदी जी के सच्चाई बताने पर जानबूझ कर उनका कमेंट डिलीट कर दिया…ऐसा उन्होंने क्यूं किया मैं नही जानता…इस पर वो खुद ही सफाई दे दें तो बेहतर…अगर वो खुद सफाई नहीं देतीं तो उन्हें गुनहगार मान लिया जाएगा…चलिए वो गुनहगार हो भी गईं तो क्या उनका कसूर इतना बडा है कि उन्हें सरे पंचायत रूसवा किया जाए…एक नारी के साथ ऐसा बर्ताव हुआ और मातृशक्ति भी चुप रही…क्या मौज की खातिर कहीं तक भी लिबर्टी ले लेना जायज है…मैं जानता हूं कि इस पोस्ट पर मुझे फूल कम पत्थर बहुत ज्यादा आने वाले हैं…लेकिन मैं जिस बात पर स्टैंड ले लेता हूं तो फिर उस पर टिका रहता हूं…मैं वादा करता हं कि मैं अपनी इस पोस्ट से भी कोई टिप्पणी डिलीट नहीं करूंगा बशर्ते कि वो मर्यादा की सीमा न लांघे…
आखिर में कुश भाई आपसे एक निवेदन और…मेरी इस पोस्ट को किसी पोस्ट विशेष पर अपने भाव समझ कर ही लेना…व्यक्तिगत रूप से आप मेरे लिए उतने ही सम्मानित है जितना कि भारत का हर नागरिक…मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, मुद्दों को खुन्नस की वजह नहीं बना लेना चाहिए…
कुश भाई बिना मांगे अगले स्टिंग आपरेशन के लिए आइडिया और दे देता हूं…अब उन्हें पकड़ो जिनकी पोस्ट पर जाकर बबली जी ने टिप्पणियां दी है…शुरुआत मुझसे ही करो क्योंकि मेरी कई पोस्ट पर बबली जी की टिप्पणियां आई हुई हैं…

पहले कुश ने कहा, खुश ने सुना
अब खुश ने कहा, ये कुश की मर्जी है वो सुने या न सुने …
लेकिन जब फिर कुश कहेगा, तो खुश उसे ज़रूर सुनेगा…

उफ…इतनी लंबी पोस्ट…देख कर मैं खुद ही डर गया…नहीं जानता कि आप इसे कैसे झेलेंगे…अरे बाबा इतने पंच्स के बाद भी स्लॉग ओवर की कसर है क्या…नहीं, नहीं मानते तो लो भईया छोटा सा…
 
स्लॉग ओवर
दिल तो है दिल किसी पर भी आ सकता है…तो जनाब एक मुर्गी और सुअर के नैन लड़े…आंखों ही आंखों में इशारा हुआ…बात किस तक आ गई…दोनों ने किस लिया…किस लेते ही दोनों दुनिया को अलविदा कह गए…मुर्गी स्वाइन फ्लू से मर गई और सुअर बर्ड फ्लू से….(इसे कहते हैं किस ऑफ डेथ)

 

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