आज ये मेरी सौवीं पोस्ट है…आज ही छह दिसंबर है…अजब इत्तेफ़ाक़ है…पोस्ट की सेंचुरी है तो कुछ बढ़िया कॉकटेल तो बनता है न बॉस… खट्टा मीठा सब कुछ होगा…स्लॉग ओवर भी होगा…गीत भी होगा..जीवन का सार भी होगा…मुद्दा भी होगा…अब छह दिसंबर है तो कुछ गंभीर अंदाज़ भी रहना चाहिए न…
तो चलिए पहले छह दिसंबर की ही बात…तो जनाब गिलास आधा भरा है या खाली…बड़ा पुराना और घिसा-पिटा सवाल है…जवाब सभी को पता है…अब मैं आपसे एक सवाल करता हूं…छह दिसंबर का नाम आते ही सबसे पहले हमारे ज़ेहन में क्या आता है…इसका जवाब भी हम सब जानते हैं…लेकिन इतिहास में छह दिसंबर को और ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसे हम याद रख सकें…ज़रूरी है छह दिसंबर को हर साल हम याद करें जिससे 17 साल पुराने ज़ख्म रिसते रहें…मरहम की जगह हम उन पर नमक छिड़कते रहें…दिलों की दूरियां पटने की जगह और चौड़ी होती रहें…
अब 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो कुछ हुआ, उसकी जगह इतिहास में छह दिसंबर को और क्या क्या हुआ, उस पर भी नज़र दौड़ा ली जाए…
देश के संविधान के निर्माता डॉ भीमजी राव अंबेडकर की आज 6 दिसंबर को 53वीं पुण्यतिथि है…
सेंट निकोलस या सांता क्लाज़ की आज छ दिसंबर को 1663वीं पुण्यतिथि है…सेंट निकोलस वही हस्ती हैं जिन्होंने वंचित बच्चों के लिए ज़ुराबों में उपहार डालकर देने की परंपरा शुरू की थी…
छह दिसंबर को ही सिंधी टोपी दिवस मनाया जाता है…सिंधी टोपी कशीदाकारी और शीशे के काम के लिए जानी जाती है…इस टोपी का एक सॉफ्ट रूप भी होता है जिसे मोड़कर जेब में रखा जा सकता है…
आज छह दिसंबर को क्रिकेट के सितारे आर पी सिंह का 24 वां जन्मदिन है…
आज ही अंतरराष्ट्रीय छवि वाले निर्देशक शेखर कपूर का 64 वां जन्मदिन है…
लीजिए 6 दिसंबर की एक और खुशी जुड़ गई…धोनी के जांबाज़ों ने वो काम कर दिखाया जो 79 साल के टेस्ट इतिहास में भारतीय टीम नहीं कर सकी थी…मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में श्रीलंका को एक पारी और 24 रन से मात देकर भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया में सिरमौर बन गई है…टेस्ट क्रिकेट में भारत पहली बार नंबर वन बना है…
चलिए छह दिसंबर की बात बहुत हो गई…अब आता हूं अपनी इस 100वीं पोस्ट की कहानी पर…16 अगस्त 2009 को मैंने देशनामा पर पहली पोस्ट….कलाम से सीखो शाहरुख…डाली थी…लेकिन टाइमलाइन गलत होने की वजह से पोस्ट पर तारीख 17 अगस्त दर्ज हुई…तब से अब तक ब्लॉगिंग के सफ़र में जो भी मुझसे अच्छा-बुरा बन सका वो मैं पोस्ट पर डालते गया…लेकिन इस दौरान जो मैंने आपका बेशुमार प्यार कमाया, वही मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है…इस दौरान मेरे आइकन्स समेत बड़ों ने मेरा हौसला बढ़ाया, सुझाव दिए…रास्ता दिखाया…वहीं हमउम्र साथियों और छोटे भाई-बहनों ने भी मुझे भरपूर प्यार दिया…मैं किसी एक का नाम नहीं लेना चाहूंगा…सभी मेरे लिए सम्मानित हैं…हां एक टिप्पणी का ज़रूर ज़िक्र करना चाहूंगा…जो मुझे पहली पोस्ट पर पहली बार मिली थी…ये टिप्पणी थी फौज़िया रियाज़ की…इस टिप्पणी को मिलने पर मुझे वैसी ही खुशी हुई थी जैसे किसी को नौकरी का पहली बार नियुक्ति-पत्र मिलता है…
एक और शख्स का जिक्र करना चाहूंगा…वो हैं आगरा के सतिन्द्र जी…सतिन्द्र जी खुद ब्लॉगर नहीं हैं लेकिन मेरे बहुत अज़ीज़ हैं…सतिन्द्र जी और उनकी पत्नी मीनू जी ब्लॉगिंग के मेरे पहले दिन से ही मेरे साथ जुड़े हुए हैं…कल सतिन्द्र जी का मेरे पास एक ई-मेल आया…उसे देखकर मैं चौंक गया…सुखद आश्चर्य भी हुआ…उन्होंने कल तक मेरी अब तक की पोस्ट पर जितनी भी टिप्पणियां आई हुईं थी, उनका आंकड़ा भेजा था…मैंने आज तक कभी ये गिनने की कोशिश नहीं की थी कि मुझे अब तक कितनी टिप्पणियां आ चुकी हैं…लेकिन सतिन्द्र जी ने अपना कीमती वक्त निकाल कर ये काम किया…मैं तो बस अपनी ब्लॉगर बिरादरी के प्यार के मीटर को ही जानता था…
कितने पाठकों ने मुझे पढ़ा, ये तो मेरी ब्लॉगिंग के शुरुआती 12-15 दिनों को छोड़ दो तो वो तो विजेट के ज़रिए जाना जा सकता है..खैर अब सतिंद्र जी ने आंकड़ा भेज ही दिया है तो आपके साथ इसे बांटने में मुझे खुशी का इज़हार हो रहा है…
मेरा ब्लॉगिंग का सफ़र
देशनामा ब्लॉग बनाया…फरवरी 2009
पहली पोस्ट डाली…16 अगस्त 2009
ब्लॉगिंग के दिन…112
पोस्ट लिखीं…100
पाठक संख्या…23,865 (5 दिसंबर 2009 रात 11 बजकर 55 मिनट तक)
टिप्पणियां… 2264 (5 दिसंबर 2009 रात 11 बजकर 55 मिनट तक)
ब्लॉगिंग के इस सफ़र में मेरा साथ देने के लिए गुरुदेव और सभी अज़ीज़ों के लिए शुक्रिया नहीं कहूंगा…क्योंकि शुक्रिया तो परायों का कहा जाता है…और यहां ब्लॉगिंग की दुनिया में तो सभी मेरे अपने हैं…बस अपने खास स्टाइल में गाने के ज़रिए ज़रूर दिल की बात का इज़हार करूंगा…
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों
जीवन का सार
ज़िंदगी एक जलती सिगरेट की तरह है…कश लेकर इसके हर लम्हे का मज़ा लो, वरना सुलग तो ये रही ही है…आप इसे खुल कर जियो या न जियो, खत्म तो ये खुद-ब-खुद हो ही जाएगी…
स्लॉग ओवर
दो निखट्टू लेकिन मस्तमौला लड़के पार्क में बैठे बातें कर रहे थे…तभी एक लड़का बोला….यार आजकल बाप ने बड़ा परेशान कर रखा है…दिन भर ताने देता रहता है…न काम का न काज का , ढाई मन अनाज का…क्या करूं यार घर में एक मिनट बैठना भी हराम कर रखा है...
इस पर दूसरा वाला लड़का बोला…यार मेरा बाप तो मुझसे बड़ा खुश है…
पहला वाला लड़का हैरानी से बोला…भला वो कैसे…
इस पर दूसरा लड़का बोला…यार मैं सुबह अंधेरे मुंह उठकर ही गुलेल लेकर निकल जाता हूं…और रोज़ नई कॉलोनी में जाकर शीशे तोड़ आता हूं…
इस पर पहले वाले लड़के ने टोका…तो फिर तेरा बाप कैसे खुश हो जाता है…
दूसरे वाले ने कहा…समझा कर यार, मेरे बाप का ग्लासवेयर का शोरूम है…सब लोग नए शीशे खरीदने मेरे बाप की दुकान पर ही आते हैं…इससे उसका धंधा चोखा चल रहा है…वो भी खुश, मैं भी खुश…
ये सुनकर पहले वाला लड़का ठंडी सांस लेकर रोने लगा…
दूसरे वाले ने कहा…तू रो क्यों रहा है…तू भी अपने बाप का धंधा मुझे बता…फिर मैं भी तुझे कोई तरकीब बता देता हूं…
ये सुनकर पहले वाला लड़का और ज़ोर से रोते हुए कहने लगा…रहने दे यार तू भी मेरी कोई मदद नहीं कर सकता…
दूसरे वाले लड़के ने धीरज बंधाते हुए कहा…अरे तू मुझे नहीं जानता…मेरे पास हर चीज़ का तोड़ है, तू बस मुझे अपने बाप का धंधा बता…
इस पर पहले वाला लड़का हिचकी लेते हुए धीरे से बोला….मेरे बाप का मैट्रिनिटी होम है…
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