देश में भारी बहस छिड़ी है…आतंकवाद को पीछे छोड़ते हुए माओवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है…लेकिन हमारी सरकार तय ही नहीं कर पा रही है कि माओवाद से निपटना कैसे है…ये सिर्फ कानून और व्यवस्था का मामला है…या इससे सामाजिक और आर्थिक विकास जैसे पहलू भी जुड़े हुए हैं…पश्चिम बंगाल के झारग्राम में हावड़ा से मुंबई जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में 131 यात्री रात को सोते-सोते ही काल के मुंह में चले जाते हैं…सैकड़ों घायल हो जाते हैं…लेकिन सरकार तय ही नहीं कर पाती कि ये माओवादियों की जघन्य करतूत थी या महज़ एक रेल हादसा…
ममता बनर्जी पहले विस्फोट की बात कहते हुए पश्चिम बंगाल सरकार को कटघरे में खड़ा करती हैं…कानून और व्यवस्था को राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी बताती हैं…तभी वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का बयान आता है कि गड़बड़ी या विस्फोटक जैसी कोई बात सामने नहीं आई है, इसलिए ये सिर्फ एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा है…एक थ्योरी फिश प्लेट उखाड़े जाने की भी है…
वाकई स्थिति विस्फोटक हो चली है और नेता अपने हितों के हिसाब से बयान दे रहे हैं…ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के कई ज़िलों में 30 मई को होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव अहम नज़र आ रहे हैं…कांग्रेस से उनका गठबंधन हुआ नहीं…ये किसी से छुपा नहीं कि ममता बनर्जी हर हाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से लेफ्ट का लाल परचम उतार कर तृणमूल की हरी पत्तियों का कब्जा कराना चाहती हैं…उनके लिए केंद्र में रेल मंत्री की गद्दी पश्चिम बंगाल के सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए महज़ एक जरिया है…इसलिए कोई बड़ी बात नहीं कि वो आने वाले दिनों में रेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देकर खुद को पश्चिम बंगाल के लोगों के सामने शहीद की तरह पेश करें…
ये साफ है कि देश में जाति, भाषावाद, प्रांतवाद, धर्म की राजनीति करने वाले नेता बहुत हैं…मसलन
मराठी– बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे तो साफ तौर पर मराठी कार्ड खेलते हैं, लेकिन मुंह से कुछ भी बोलें शरद पवार, अशोक चव्हाण, विलास राव देशमुख, आर आर पाटिल जैसे नेता भी वोट बैंक के चलते मराठियों की नाराज़गी मोल नहीं ले सकते…
गुजराती– नरेंद्र मोदी किसी भी मंच से गुजराती अस्मिता का हवाला देना नहीं भूलते…
तमिलनाडु– करुणानिधि की राजनीति कट्टर तमिल समर्थक की है, वहीं जयललिता की राजनीति करुणानिधि विरोध की बेशक हो लेकिन तमिल कार्ड वो भी जमकर खेलती हैं..
कर्नाटक– एच डी देवेगौड़ा कन्नड का सवाल गाहे-बगाहे उठाते रहते हैं
आंध्र– तेलंगाना को लेकर के चंद्रशेखर राव ने झंडा उठा रखा है…अब उसी तेलंगाना के विरोध में शेष आंध्र का रहनुमा बनने की कोशिश वाईएसआर के बेटे जगन मोहन रेड्डी कर रहे हैं…
पंजाब- पा की तर्ज पर प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल की जोड़ी अकाली राजनीति की अलम्बरदार है
जम्मू-कश्मीर- एक तरफ अब्दुल्ला परिवार, दूसरी तरफ मुफ्ती सईद और महबूबा मुफ्ती की बाप-बेटी की जोड़ी कश्मीरियों के सबसे बड़े खैरख्वाह होने का दम भरते हैं
ओबीसी– मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, शरद यादव, छगन भुजबल, गोपीनाथ मुंडे
दलित- मायावती, राम विलास पासवान, उदित राज
ठाकुर- अमर सिंह, राजनाथ सिंह, राजा भैया
गुर्जर- कर्नल के एस बैंसला
मीणा- किरोड़ी लाल मीणा
किसान– महेंद्र सिंह टिकैत, शरद जोशी
आम आदमी की दुहाई देने में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और बीजेपी के सारे राष्ट्रीय नेता कहीं पीछे नहीं है…
लेकिन मुझे आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना है कि देश में आदिवासियों की बदहाली की बात करने वाला कौन सा नेता है या आज़ादी के बाद 63 साल में आदिवासियों का कौन सा मज़बूत नेतृत्व देश में सामने आया…
इस सवाल के जवाब के बाद देश की सबसे ज्वलंत समस्या पर बहस के लिए आगे बढ़ेंगे…
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