आज 16 अगस्त है…देश-विदेश की नज़रें अन्ना हज़ारे पर हैं…
64 साल की आज़ादी…मेरा भारत महान…मदमस्त सरकार…लुंजपुंज विपक्ष…विपक्ष के रोल में सिविल सोसायटी…आंदोलन का प्लेटफॉर्म…अन्ना का मुखौटा…दूसरी आज़ादी का ख्वाब…बापू का ध्यान…राजघाट पर मजमा…15 अगस्त को अंधेरा…16 अगस्त का सवेरा…पुलिस क्या करेगी…सरकार क्या करेगी…अन्ना क्या करेंगे…लोग क्या करेंगे…मीडिया क्या करेगा…अरे छोड़िए न…मनोज कुमार का गाना याद कीजिए… इक तारा बोले…क्या कहे वो तुमसे…तुन तुन…तुन तुन…
चलो ये तो हो गई अन्ना के आंदोलन की बात…
लेकिन मेरे लिए 16 अगस्त के एक दूसरे मायने भी हैं…आज से ठीक दो साल
पहले मेरी ब्लॉगिंग की शुरुआत हुई…16 अगस्त 2009 को देशनामा पर पहली पोस्ट लिखी थी…कलाम से सीखो शाहरुख…हुए सिर्फ दो साल हैं…लेकिन लगता है कि आप सब से न जाने कब का नाता है…इतने दोस्त, बुज़ुर्गों का आशीर्वाद, छोटों का प्यार…क्या नहीं मिला यहां…कौन कहता है ये आभासी दुनिया है…
दो साल की ब्लॉगिंग में मैंने पाया कि ये दुनिया हक़ीक़त की दुनिया से कहीं ज़्यादा ज़िंदादिल है…जैसे परिवार में, दोस्तों में झगड़े होते हैं, वैसी तल्खी यहां भी कभी-कभी देखने को मिलती है…उखाड़-पछाड़ यहां भी हैं…लेकिन जीवन के नौ रसों की तरह इन सबका होना भी ज़रूरी है…तड़के बगैर दाल हो तो स्वाद कहां आता है…हां अगर सिर्फ तड़का ही तड़का रह जाए और दाल गायब हो जाए तो पेट का खराब होना भी निश्चित है…जैसे हिंदुस्तान को अलग अलग फूलों से सजा गुलदस्ता कहा जाता है, ऐसे ही ब्लॉगिंग भी है…दूसरों की खुशबू को भी सराहना सीखिए…कांटा चुभे तो बुरा मत मानिए…
किसी ब्लॉग को पढ़ने के बाद जो आपका अंतर्मन कहता हो, उसी से दूसरे को अवगत कराइए…ये विचारों का अंतर्द्वंद्व ही ब्लॉगिंग की असली ताकत है…इसी से ब्लॉगिंग और व्यक्तिगत स्तर पर विकास हो सकता है…आज नाम किसी का नहीं ले रहा लेकिन जिन्होंने मुझे दो साल में प्रोत्साहित किया, उन्हें शुक्रिया जान कर नहीं कह रहा…मेरी समझ से शुक्रिया परायों का किया जाता है…यहां तो सब अपने हैं…हां, जाने-अनजाने मेरे किसी बोल या कृत्य से किसी का दिल दुखा हो तो ज़रूर नासमझ समझ कर माफ़ कर दीजिएगा…वैसे गाना तो यहां मेरा सबसे मनपसंद ही फिट होता है..एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों..लेकिन आज आपको दूसरा गाना सुनाता हूं…
ना मैं भगवान हूं, ना मैं शैतान हूं,दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं,
मुझ में भलाई भी मुझ में बुराई भी,
लाखों हैं मैल दिल में, थोड़ी सफाई भी,
थोड़ा सा नेक हूं थोड़ा बेइमान भी,
दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं,
दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं
ना कोई राज है ना सर पे ताज है,
फिर भी हमारे दम से धरती की लाज है,
तन का गरीब हूं मन का धनवान हूं,
दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं,
जीवन का गीत है सुर में ना ताल में,
उलझी है सारी दुनिया रोटी के जाल में,
कैसा अंधेर है, मैं भी हैरान हूं,
दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं.,
ना मैं भगवान हूं, ना मैं शैतान हूं,
दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इनसान हूं…
(फिल्म- मदर इंडिया (1957), गीतकार- शकील बदायूंनी, संगीत- नौशाद, गायक- मुहम्मद रफ़ी)
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