कहते हैं कि हर आपदा से कुछ सीखना चाहिए…ब्रिटेन में हो रहे दंगे भी ऐसी ही आपदा है…ब्रिटेन-अमेरिका जैसे पश्चिमी देश भारत की पुलिस का इसलिए मज़ाक उड़ाते रहे हैं कि वो 26/11 जैसे हमले में भी ट्रेंड और अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों का लाठी और पुरानी जंग लगी राइफलों से मुकाबला कर रही थी…अब लंदन समेत ब्रिटेन के तमाम शहरों में दंगाइयों ने आतंक मचाया हुआ है तो कहां हैं दुनिया की सबसे बेहतरीन मानी जाने वाली लंदन की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस…ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने गुरुवार को संसद में कबूल किया कि उनकी पुलिस दंगों की शुरुआत में स्थिति की गंभीरता को समझने में नाकाम रही…दंगाइयों से जिस सख्ती से निपटा जाना चाहिए था, वैसे नहीं निपटा गया….पुलिस ने जो भी तरीके अपनाए वो कारगर नहीं रहे…कैमरन के मुताबिक पुलिस यही समझती रही कि ये एक व्यक्ति (मार्क डग्गन) की मौत पर भीड़ का गुस्सा है… एक हफ्ते पहले लंदन के टोटेनहाम इलाके में डग्गन की कथित तौर पर पुलिस की गोली से मौत हुई थी…लेकिन डग्गन की मौत पर वो भीड़ का गुस्सा नहीं था वो आपराधिक प्रवत्ति का दंगा था…एक वक्त में कई जगह कई सारे लोग एक ही काम में लगे हुए थे…वो था संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर लूट-खसोट कर अपना फायदा करना…दुकानों से कीमती सामान लूटना…ऐसे लोगों से वैसे ही निपटा जाना चाहिए था जैसे अपराधियों से निपटा जाता है…
पांच दिन तक ब्रिटेन के जलने के बाद ब्रिटेन सरकार ने पुलिस को और अधिकार देने का ऐलान किया…दंगाई युवकों की तलाश में घर-घर छापे मारना शुरू किया गया…लंदन या दूसरे शहरों में नकाब पहनकर अब किसी को घर से निकलने की इजाज़त नहीं होगी…1500 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है…आने वाले दिनों में और भी कई गिरफ्तारियां हो सकती हैं…पड़ोसी मुल्क स्काटलैंड से 250 तेज़तर्रार पुलिस अफसरों को मदद के लिए ब्रिटेन में बुलाया गया है…
माना यही जा रहा है कि दंगे भड़काने में एफ्रो-कैरेबियाई समुदाय के भटके हुए युवकों का हाथ रहा है…इसी समुदाय में बेरोज़गारों और स्कूल ड्राप आउटस का हिस्सा सबसे ज़्यादा है…नस्ली आक्रोश की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा रहा…भारतीयों समेत एशियाई मूल के लोगों को अपनी संपत्ति की हिफाज़त के लिए खुद ही पहरेदारी करनी पड़ रही है…दंगों की विभीषिका के पीछे सोशल मीडिया को भी ज़िम्मेदार माना जा रहा है…कैमरन ने शांति और कानून-व्यवस्था की बहाली के उपायों के तहत सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने पर गंभीरता से विचार करने की बात कही है…ब्रितानी प्रधानमंत्री का सवाल है कि जब हम जानते हैं कि वो हिंसा, अव्यवस्था और अपराध को बढ़ावा देने में लगे हैं, ऐसे में उन्हें सोशल मीडिया के ज़रिए एक-दूसरे से संवाद बनाने से रोकना क्या सही कदम नहीं होगा…यानि सोशल मीडिया पर कई तरह की बंदिशें लग जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं…
ब्रिटेन में साक्षरता की दर भारत से कहीं ऊंची हैं…मेरा सवाल है कि भारत के भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, अपराध, गंदगी, दंगों को लेकर नाक-भौं चढ़ाने वाले पश्चिमी देश ब्रिटेन को लेकर चुप क्यों है…भारत में आंतकवाद या और कोई घटना होती है तो अमेरिका-ब्रिटेन जैसे ही देश अपने देश के लोगों को एडवायज़री जारी करने में सबसे आगे रहते हैं…इतना भारत की घटनाओं से असर नहीं होता जितना कि इनकी एडवायज़री से होता है कि भारत जाना खतरे से खाली नहीं है…इससे देश के टूरिज्म और होटल सेक्टर को तो चोट लगती ही है भारत के बारे में भी दुनिया भर में गलत तस्वीर बनती है…
सुनील गावस्कर ने सही कहा है कि अगर ब्रिटेन जैसे दंगे भारत में हो रहे होते और इंग्लैंड टीम भारत के दौरे पर होती तो कब की अपने देश वापसी के लिए भाग खड़ी होती…लेकिन हमारी टीम बर्मिंघम में होटल के पास लूट-पाट होने के बाद भी दौरे की प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटी…लेकिन यहां मेरा मकसद एक दूसरे की कमीज़ को ज़्यादा सफेद बताना नहीं है…हमें दूसरों की खूबियों और खामियों से सबक लेना चाहिए…भीड़तंत्र के मनोविज्ञान से निपटने में ब्रिटेन के इस प्रकरण से नसीहत लेनी चाहिए…कैमरन ने एक बात अच्छी कही है कि दंगे में जिन दुकानों और घरों को नुकसान पहुंचा है वो 12 दिन के भीतर अपने नुकसान की भरपाई के लिए ब्रिटेन सरकार से आवेदन कर सकते हैं…उनके आवेदनों को जल्दी से जल्दी निपटाया जाएगा…क्या हमारे देश में इतनी जल्दी ऐसी राहत मिलती है…
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