माफ़ कीजिए, मैं खुद को बदल नहीं सकता….खुशदीप

जैसे हो, तमाम उम्र वैसे ही बने रहना…बदलना नहीं…ये मेरे गुरुदेव समीर लाल समीर जी ने मुझसे एक बार कहा था…मैं चाहूं तो भी खुद को नहीं बदल सकता….आज दिन भर बड़ी उलझन में रहा कि रात में क्या करूंगा…रूटीन से फुर्सत मिलने के बाद अब लैपटॉप पर बैठा हूं…कशमकश हद से गुज़र रही थी…ऐसे में मदर टेरेसा की तरह निर्मला कपिला जी ने अपनी टिप्पणी से राह दिखाई…

“खुशदीप का काम है खुश रहना और दूसरों को खुश रखना दूसरों को खुश रखने के लिये आँसू तो पीने ही पड़ते है

वो बस हंसाना जानता है,
सब को लुभाना जानता है।
जल्दी से कशमकश से निकलो। आशीर्वाद।”

लीजिए निर्मला जी आपके आशीर्वाद से निकल आया कशमकश से…साथ ही आपने याद दिला दिए मेरा नाम जोकर के राज कपूर…जोकर सिर्फ हंसाना जानता है…दिल में दर्द कितना भी हो लेकिन दुनिया को बस खुशियां और प्यार बांटना चाहिए…बस इतना कहूंगा कि घर में सब भाई-बहन में मैं सबसे छोटा हूं…कभी बड़े भाई के आगे पलट कर नहीं बोला…इस वजह से बहुत कुछ सहा भी…आज ब्लॉगिंग में भी ऐसा ही कुछ हुआ…ठेस लगी लेकिन फिर खुद को संभाला…दिल ने यही आवाज़ दी कि मुझे नहीं बदलना…

बस अब आप सब से एक सवाल की अपेक्षा ज़रूर रखता हूं कि क्या 14 महीने की ब्लॉगिंग के दौरान मेरे लेखन से  आपको ऐसा लगा कि मैं किसी खास राजनीतिक विचारधारा से बंधा हूं…क्या टिप्पणी करते वक्त मैं ध्यान नहीं रख सकता कि क्या लिखना सही है और क्या गलत...अगर आप खुल कर मेरी खामियों के बारे में बताएं तो शायद मैं आगे से उम्मीदों पर खरा उतर सकूं…

आखिर में मेरा नाम जोकर का ही गाना सुनिए-देखिए…

कहता है जोकर सारा ज़माना
आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना

चलिए इस भारी माहौल को यहीं टाटा-बाय-बाय कहिए और मज़ा लीजिए स्लॉग ओवर का…

स्लॉग ओवर

मक्खन- यार ये अमेरिकियों ने बड़ी तरक्की कर ली है…चांद पर पानी और बर्फ ढूंढ ली है…

ढक्कन…तो फिर, हमें क्या करना है…

मक्खन…करना क्या है, बस अब दारू और भुजिया ही साथ लेकर जानी है…

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