#ब्लॉगिंग_2.0 के लिए कितने तैयार हम…खुशदीप


#हिन्दी_ब्लॉगिंग के दूसरे संस्करण यानि #ब्लॉगिंग_2.0 का आगाज़ शानदार  रहा
है…ब्लॉगिंग को दोबारा दमदार बनाने के इस यज्ञ में कोई भी ब्लॉगर अपनी आहुति
देने से पीछे नहीं रहा…सवाल भी पूछे गए कि किसने तय कर दिया अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग
दिवस…किसने और क्यों चुना हैशटैग…मूल प्रस्ताव तो ये था कि हर महीने की 1
तारीख को सभी की ओर से 1-1 पोस्ट ज़रूर लिखी जाए…फिर कैसे ये
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस में तब्दील हो गया…कैसे हैशटैग आ गया…कॉपीपेस्ट
टिप्पणियां की गईं आदि आदि…

यहां मेरा मानना है कि कुछ चीज़ें इनसान के हाथ में
नहीं होती…कोई अदृश्य शक्ति भी है जिसकी इच्छा अनुसार घटनाक्रम स्वयं आकार लेता
चला जाता है…जो परिणाम सामने आया उसे देखते हुए सारे सवाल बेमानी है…

ताऊ रामपुरिया का आह्वान ही सही,
क्या इसने फिर बिछड़े ब्लॉग जगत को दोबारा एक नहीं किया…1 जुलाई को क्या
ब्लॉगर्स में पिछले जैसा उत्साह देखने को नहीं मिला…ब्लॉग्स पर जहां टिप्पणियों
का सूखा पड़ गया था वो फिर हरे-भरे दिखाई दिए…इस पूरी कवायद का मकसद नेक
था…ब्लॉग्स से फेसबुक आदि की ओर विमुख हो गए ब्लॉगर्स को ब्लॉगिंग की तरफ़ फिर
लौटाया जाए…एक दिन में ऐसा नहीं हो सकता कि पुराना दौर फिर झटके से लौट आए…आज
जब वक्त की सभी के पास कमी है, उसमें ये भी संभव नहीं कि एक ही दिन में सब पोस्ट
पढ़ ली जातीं और फिर उसके विषय के अनुरूप टिप्पणियां भी कर दी जातीं…

यथासंभव ऐसा
करने की कोशिश की गई…लेकिन जिन्हें कॉपीपेस्ट
टिप्पणियां कहा गया उनमें भी ब्लॉगर्स को दोबारा सक्रिय होने के लिए प्रेरित करना,
आभार प्रकट करना भी था…यहां ये समझा जाना चाहिए कि 1 जुलाई का दिन अपवाद
था…ब्लॉग की पुरानी गलियों में लौटने का उत्सव था…

सिलसिला चल निकला है तो
वो दौर भी जल्दी लौट आएगा जब खुद की पोस्ट लिखने के साथ दूसरों की पोस्ट आत्मसात
करने के बाद सारगर्भित टिप्पणियां भी की जाएंगी…1 जुलाई को कुछ ऐसी पोस्ट भी आईं
जिनमें ब्लॉगिंग के पिछले दौर को लेकर शिकवे-शिकायत किए गए थे…तंज भी थे…सम्मान
की राजनीति पर सवाल उठाते हुए एक जनाब मर्यादा की सीमा लांघ गए और महिलाओं को लेकर
आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर बैठे…ये पूरी तरह अस्वीकार्य है…

ये तो मैंने भी अपनी पोस्ट में लिखा था कि ब्लॉगर्स द्वारा खुद ही दूसरे ब्लॉगर्स का सम्मान किए जाने
का तमाशा बंद होना चाहिए…ये विवादों को जन्म देने के साथ कटुता को भी बढ़ाता
है…लेकिन ये सिर्फ़ मेरा मत था…कोई माने या ना माने, ये अपने हिसाब से हर
ब्लॉगर को निर्णय लेने का अधिकार है…इसका ये मतलब कतई नहीं कि गढ़े मुर्दे उखाड़ते
हुए सम्मान प्राप्त करने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाए…

खैर ये सब रही कड़वी
बातें जिनका कुनैन की गोली की  तरह  ज़िक्र करना भी ज़रूरी था…
#ब्लॉगिंग_2.0  को
लेकर हम सभी को सकारात्मक सोच रखनी चाहिए…क्योंकि अब कंटेट उत्पादकों के लिए
असीम संभावनाएं पैदा होने जा रही हैं…इसका संकेत मैंने हालिया पोस्ट में भी दिया
था…अभी तक हम टिप्पणियों को ही किसी ब्लॉग की सफलता का पैमाना मानते थे…ये दिल
को बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल तो अच्छा है लेकिन इसका नतीजा कुछ नहीं निकलने वाला
है…टिप्पणियां सफलता की परिचायक नहीं बल्कि नेटवर्किंग की देन होती हैं…ये एक
हाथ दे, दूसरे हाथ ले वाली कहावत को भी चरितार्थ करती है…

ब्लॉगिंग_2.0  में ऐसी बातों से ऊपर उठना होगा, टिप्पणियों का मोह
छोड़ना होगा…जो आ जाएं वो ठीक, उसी पर संतोष करना चाहिए…इससे ज्यादा जरूरी है
कि ऐसी कोशिश की जाए कि हमारा लिखा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे…अगर लेखन
धारदार है, दूसरों को बांधने की क्षमता रखता है तो मुझे कोई संदेह नहीं कि आपकी
पाठक संख्या हर दिन बढ़ती जाएगी…अच्छे लेखन के साथ उसकी इंटरनेट पर पहुंच
बढ़ाने  के लिए कुछ तकनीकी ज्ञान भी रखा
जाए तो कोई हर्ज़ नहीं है…

यहां मैं एक उदाहरण देता
हूं…जैसे कि 1 जुलाई को सब  ब्लॉगर्स ने
एक उद्देश्य से समान हैशटैग
#हिन्दी_ब्लॉगिंग का हर जगह (ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर) पर इस्तेमाल किया तो उसके  फायदे भी सामने आए…गूगल पर आपने इस हैशटैग को
डाला तो सभी ब्लॉगर्स की पोस्ट एक के बाद एक दिखने लगीं…यही फेसबुक पर हुआ और
यही ट्विटर पर…

यहां मैं डिजिटल पत्रकारिता का अनुभव आपसे बांटना चाहता
हूं…ट्विटर पर इन दिनों न्यूज़ सबसे पहले ब्रेक होती हैं…इसे ऐसे भी समझिए कि
कोई चैनल किसी खास विषय पर प्राइम टाइम पर डिबेट कर रहा है…तो वो क्या करता है,
वो भी इसके लिए एक हैशटैग तैयार करता है…फिर उसे ट्रेंड कराने में जी-जान लगा
देता है…एक साथ कई लोग उस हैशटैग का इस्तेमाल कर डिबेट के बारे में ट्वीट करते
हैं, रीट्वीट करते हैं…फिर लोग भी प्रतिक्रियाएं देते हुए पक्ष-विपक्ष में ट्वीट,
रीट्वीट, लाइक, रिप्लाई करते है…वो हैशटैग इतनी बार इस्तेमाल होता है कि  वो खुद ही ट्रेंड करने लगता है…

यही टोटका ब्लॉगर्स को
भी आजमाना चाहिए…एकजुटता में बड़ी शक्ति है…अंशुमाला का प्रस्ताव है कि हर
महीने की 1 तारीख  को सभी ब्लॉगर एक पोस्ट
लिखें…अब उसी दिन के लिए कोई  खास हैशटैग
भी पहले से तय कर सभी ब्लॉगर्स उसका इस्तेमाल करें तो उससे फायदा ही फायदा होगा,
नुकसान कुछ नहीं…ये हमने
#हिन्दी_ब्लॉगिंग के हैशटैग के इस्तेमाल में अच्छी तरह देखा…

मेरा ये सब लिखने का
निचोड़ यही है कि ब्लॉगिंग का सार्थक लाभ उठाना है तो अच्छा लिखना सबसे पहली शर्त
है…रैंकिग  में ऊपर आना है तो नियमित
लिखना भी बहुत ज़रूरी है…साथ ही ये भी ध्यान रखना होगा कि फेसबुक, ट्विटर,
इंस्टाग्राम, गूगल प्लस का अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचने के लिए कैसे बेहतर
इस्तेमाल किया जाए…व्हाट्सअप सोशल मीडिया नहीं लेकिन उसका भी सकारात्मक उपयोग
किया जा सकता है…ये सोचिए कि आपके लेखन का दायरा सिर्फ़ 200-300 लोगों
(ब्लॉगर्स, परिचितों) तक ही हर दिन सिमट कर ना रह जाए…ये हर दिन बढ़ता ही
जाए…फिर एक दिन ऐसा भी आएगा कि आपको गूगल जैसे प्लेटफॉर्म या कंटेंट प्रोवाइडर्स
खुद ही ढूंढने आने लगेंगे…

#ब्लॉगिंग_2.0 का ध्येय होना चाहिए…
Be Smart…Be Positive



स्लॉग ओवर

मक्खन और मक्खनी की
शादी के बाद विदाई का वक्त आया…


मक्खनी के पिता बहुत
भावुक हो गए…उन्होंने भरे गले से मक्खन को समझाना शुरू किया…
बड़े नाज़ों से पाला है हमने बेटी को…कभी इसे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं
होने दी…बस यही विनती है कि इसका ध्यान रखना दामाद जी…


मक्खन सब सुनता रहा…


ससुर साहब फिर शुरू हो
गए…और क्या क्या बताऊं इसकी बातें…हाथों को आपस में जोड़कर ससुर साहब कहने लगे
कि इत्ती सी थी ये बस इत्ती सी…


इस पर मक्खन शांत भाव
से ससुर साहब को टोकते हुए बोला…



ये इत्ती सी थी और हम तो जैसे पैदा ही छह फुट के हुए थे…
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