ब्लॉग के दो अनमोल मोती…खुशदीप

आज पोस्ट पर अपना कुछ नहीं लिख रहा…आज बस सूत्रधार की भूमिका निभा रहा हूं…दरअसल आज ब्लॉगसागर के दो अनमोल मोती आप तक पहुंचा रहा हूं…एक मोती की चमक आप तक पहले ही पहुंच रही है…एक मोती नया-नवेला सीप से निकला है..दोनों मोती ही मातृशक्ति के शाश्वत प्रतीक हैं…पत्रकारिता में दोनों का ही बड़ा नाम है…एक गीताश्री…दूसरी सर्जना….

पहले मिलिए hamaranukkad.blogspot.com की गीताश्री जी से….गीताश्री जी की लेखनी की धार का मैं हमेशा कायल रहा हूं….तेवर की पत्रकारिता हो या फीचर लेखन की आत्मीयता, गीताश्री जी की बेबाक कलम समान अधिकार के साथ चलती है…गीताश्री जी के अंतर्मन की झांकी, उन्हीं की ज़ुबानी…

बुल्ला कि जानां मैं कौन…मैं निर्भय निर्गुण गाने वाली गीताश्री,पत्रकारिता के जरिए दुनिया में ताक-झांक कर लेती हूं। रिश्तों के बनते बिगड़ते रुप देखकर दंग हो रही हूं. असहमतियां कितने दुश्मन बनाती हैं, अब एहसास हो रहा है. चापलूसी एक बेहतर औजार है किसी को पटखनी देने का.एहसास हो रहा है इन दिनों.घुटने टेक दो तो बेहद आराम महसूस होता है..दोस्त दुश्मन एक समान परहेज करने लायक होते हैं, मौसम का मूड बता रहा है. निष्ठा किस चिड़िया का नाम है..जिस डाली पर बैठी है उसी को फोड़ रही है… अब वह वक्त आ गया है मीर, गले भी मिलिए तो फासले बरकरार रख।


अब कीजिए गीताश्री के साथ भूटान की सैर…

अब कुछ प्यारी बतिया पढ़नी हैं तो मिलिए rasbatiya.blogspot.com की सर्जना शर्मा से…ये मेरा सौभाग्य है कि टेलीविजन पत्रकारिता में मुझे सर्जना जी से बहुत कुछ सीखने को मिला है…मुझे ही क्या, पत्रकारिता में कोई भी नवांकुर सरस्वती की इस पुत्री के सानिध्य में आया, उसे सही मार्गदर्शन के साथ पूरा प्रोत्साहन मिला…सर्जना जी के व्यक्तित्व का सबसे खास पहलू है कि कोई ट्रेनी भी उनके पास जाकर बेझिझक बात कर सकता है…पत्रकारिता के टिप्स ले सकता है…सर्जना जी बहुत दिनों से ब्लॉग में अपनी पारी की शुरुआत करने की सोच रही थीं…मेरा सर्जना जी से वादा था कि जब भी आप ब्लॉग शुरू करेंगी, उसका परिचय मैं अपनी पोस्ट पर दूंगा…पहले देखिए सर्जना जी में छिपे सृजन-शिल्प की झांकी, उन्हीं के शब्दों में…

प्रिंट मीडिया से 1985 में शुरूआत की। चंड़ीगढ़ से नौकरी के लिए दिल्ली आयी थी । तीन पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री थीं जिनमें से एक मासकम्युनिकेशन की थी, पहली नौकरी पांच सौ रूपए महीना से शुरू की थी । मासिक , पाक्षिक , साप्ताहिक , दैनिक रेडियो टीवी में काम करने का अनुभव , नौकरियां छूट जाने पर बहुत से प्रोजेक्टस पर काम किया । फ्रीलांसिंग की, अब पिछले  बारह साल से ज़ी न्यूज़ में । संयुक्त परिवार और छोटे शहर से आयी जहां रिश्ते सर्वोपरि है, पड़ोस ऐसा कि अपने सगे रिश्तेदारों से ज्यादा घनिष्ट संबंध । जहां सब सबके लिए थे इतने साल बाद भी पुराने पड़ोसियों से संबंध ज्यों के त्यों हैं । दिल्ली में ऐसे पड़ोसी कभी मिले ही नहीं । यहां रिश्ते बनते हैं तो स्वार्थ के आधार पर । दिल की बात कहने सुनने को जिन्हे कोई मिल जाए वो सौभाग्यशाली । यहां बड़े बड़े सेमिनार, गोष्ठिया , सम्मेलन होते हैं लेकिन दिल की बात कहने सुनने का कोई मंच नहीं । . मैं अपने आप को सौभाग्यशाली कहूंगी कि मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं जिनसे मेरा स्वार्थ का नहीं आत्मीयता का नाता है । ये ब्लॉग शुरू करने का मेरा उद्देश्य स्वयं को बुद्धिजीवियों की कतार में लाकर खड़ा करना नहीं है बल्कि महानगरीय जीवन में दिल के भीतर उमड़ती घुमड़ती नन्हीं कोमल भावनाओं को शब्दों में पिरोना है जिन्हें हम दिल में महसूस तो करते हैं पर किसी से कह नहीं पाते । मुझे पूरा विश्वास है कि दिल की बात कहने को बहुत से दिल मचल रहे होंगें और नीरस हो चली ज़िंदगी में हम रस भरी बातें करने का एक साझा मंच बना ही लेंगें । ये ब्लॉग रसबतियां यानि रस भरी बातें कहलाएगी और इसमें होगीं कुछ दिल की कुछ जग की चर्चा । आशा है आप सबका स्नेह मिलेगा ।

चलिए ये तो हो गया परिचय…अब सर्जना जी की लेखनी का कमाल देखना है तो

शादियों की धूम में शामिल हो जाइए, इस पोस्ट के ज़रिए…

आखिर में मेरी ओर से एक बात…मैंने जब कभी भी गीताश्री और सर्जना के रचना-शिल्प को पढ़ा, हमेशा ही ठंडी हवा के ताजा झोंकों का एहसास हुआ…मेरी गारंटी है कि आप भी जब भी इनके लिखे को पढ़ेंगे, मायूस नहीं होंगे…अब डेढ़ साल से तो आप मुझे ही जानते हैं…इतना तो आपको मुझ पर भरोसा है कि मैं हवा में कम ही बात करता हूं…एक अनुरोध और, मेरी इस पोस्ट पर टिप्पणी दें या न दें, उपरोक्त लिंक्स पर जाकर ज़रूर अपनी राय से गीताश्री जी और सर्जना जी को अवगत कराएं…इसके लिए मैं व्यक्तिगत तौर पर आपका आभारी रहूंगा…

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