इसी कड़ी में दूसरी फिल्म प्रतिभाशाली निर्देशक ओनिर बना कर पहले ही रिलीज़ कर चुके हैं ..नाम है…आई एम…इस फिल्म का युवा नायक पूरब कोहली स्पर्म डोनर बना है…फिल्म में सिंगल वूमेन का रोल करने वालीं नंदिता दास डॉक्टर से पूरब से मिलवाने के लिए एप्रोच करती है…
रचना जी ने हाल में स्पर्म डोनेशन को आधार बनाकर दो पोस्ट लिखीं…
बेटो को भी नैतिक शिक्षा की जरुरत हैं ताकि समाज सुरक्षित रहे । —- illegal sperm donation
और
क्या कम आयु के लडको का स्पर्म बेचना महज अपनी पॉकेट मनी के लिये सही हैं / नैतिक हैं ???
रचना जी ने एक सवाल भी किया…
अगर लड़कियों को महज पिंक चड्ढी, स्लट वॉक जैसे विरोध करने के तरीको को लेकर लोग उनको छिनाल , वेश्या इत्यादि कहते हैं वो लोग इन लडकों को, जो जान कर और समझ कर ये कृत्य (स्पर्म बेचना) कर रहे हैं क़ोई ब्लॉग पोस्ट दे कर विमर्श क्यूँ नहीं करते हैं….
रचना जी की इन पोस्टों पर बहुत अच्छी बहस हुई…लोगों ने खुल कर अपने विचार रखे…मैं अपनी बात साफ़ करूं, उससे पहले दो बातें…
मैंने 27 मार्च 2010 को एक पोस्ट लिखी थी…बच्चे आप से कुछ बोल्ड पूछें, तो क्या जवाब दें…
उस वक्त भी टिप्पणियों के ज़रिए काफ़ी अच्छा विचार हुआ था…मैंने उस पोस्ट में ये सवाल उठाया था कि जिस तरह बेटियों को हार्मोनल चेंज होने पर माताएं काफी कुछ समझा देती हैं उसी तरह किशोर लड़कों से उनके पिता इस विषय पर बात क्यों नहीं करते…जिससे लड़के बाहर दोस्तों या दूसरों से सेक्स को लेकर अधकचरी बातें सीखने से बच सकें…बेशक उस पोस्ट में स्पर्म डोनेशन का सवाल नहीं था, लेकिन तब भी काफी कुछ था जो अब नई छिड़ी बहस के साथ प्रासंगिक बैठता है…
अब उस रिपोर्ट की बात कर ली जाए, जिसे ज़ेहन में रखकर रचना जी ने अपनी पोस्ट लिखीं…
पांच दिन पहले शारा अशरफ़ ने हिंदुस्तान टाइम्स में एक शॉकिंग स्टोरी में दिल्ली के डॉक्टरों के हवाले से बताया कि राजधानी में स्कूल जाने वाले लड़के भी पॉकेट मनी के लिए स्पर्म डोनेशन कर रहे हैं…आईवीएफ स्पेशलिस्ट रीता बख्शी के मुताबिक उनके सेंटर पर हर महीने पंद्रह से बीस फोन कॉल और बड़ी संख्या में ई-मेल स्कूल के लड़कों के आते हैं जो स्पर्म डोनेट करना चाहते हैं…इनमें से कुछ तो महज़ 14-15 साल के भी होते हैं…डॉ रीता बख्शी के मुताबिक ऐसे सभी लड़कों को मना कर दिया जाता है क्योंकि स्पर्म डोनेशन के लिए 21 साल की उम्र होना ज़रूरी है…रिपोर्टर ने ये जानने के लिए दूसरे फर्टिलिटी क्लीनिक भी क्या ऐसा ही नैतिक रवैया दिखाते हैं, उन्हें स्कूली छात्र बनकर फोन किया तो वो स्पर्म खरीदने के लिए तैयार हो गए…एक क्लीनिक ने कहा कि वो पहले उनके पास आए तो वो सारा प्रोसीज़र समझा देंगे…एक दूसरे क्लीनिक ने एक हज़ार रुपए देने की पेशकश की…इनफर्टिलिटी, होमोसैक्सुएलिटी, सिंगल पेरेंटिंग के केसेज़ बढ़ने से भी स्पर्म डोनेशन की मांग बढ़ रही है…दिल्ली आईवीएफ एंड फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर के डॉ अनूप गुप्ता के अनुसारं एक टाइम के स्पर्म डोनेशन के लिए एक हज़ार से पंद्रह हज़ार रुपए का भुगतान होता है…लोग ज़्यादातर लंबे, गोरे और हैंडसम डोनर्स के स्पर्म की ही मांग करते हैं…गुड लुकिंग लड़कों को स्पर्म डोनेशन की भी ज़्यादा कीमत दी जाती है… फर्टिलिटी क्लीनिकों को नियंत्रित करने वाला कोई कानून न होने की वजह से स्पर्म डोनेशन से जुड़ा बिज़नेस चोखा चल रहा है…मैक्स हेल्थकेयर के आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ कावेरी बनर्जी के मुताबिक जब तक असिस्टेटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल 2010 जब तक पास नहीं होता तब तक ऐसे रैकेट्स पर अंकुश रखना मुमकिन नहीं है…जहां तक इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का सवाल है उसके मुताबिक स्पर्म डोनर की उम्र 21 से 45 साल के बीच होनी चाहिए…एआरटी क्लीनिक स्पर्म सिर्फ स्पर्म बैंकों से ही हासिल करेंगें और डोनर्स की पहचान छुपा कर रखी जाएगी…क्लीनिक और स्पर्म लेने वाले जोड़े को डोनर की हाइट, वजन, त्वचा का रंग, पेशा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, जातीय मूल, बीमारी मुक्त रिकॉर्ड, डीएनए फिंगरप्रिट्स जैसी जानकारी हासिल करने का हक होता है लेकिन सीमेन बैंक या क्लीनिक स्पर्म डोनर की पहचान हर्गिज़ नहीं बताएंगे…
अब फिर आता हूं रचना जी के उठाए मुद्दों पर…
उनका कहना है कि जितना नैतिकता के नाम पर लड़कियों को लेकर पोस्ट पर पोस्ट डालकर सो कॉल्ड विमर्श होता हैं उतना विमर्श लड़कों के स्पर्म बेचने पर क्यूँ नहीं हो रहा…क्योंकि यहाँ गलत काम एक नाबालिग लड़का कर रहा हैं…रचना जी ने ये भी कहा है कि बच्चों को मार्ग दर्शन की बहुत आवश्यकता हैं और ये हम तभी दे सकते हैं जब हम खुद नैतिक हो…नैतिकता की बात करना और उस नैतिकता को सबसे पहले अपने पर लागू करना दोनों में अंतर हैं…जब ये अंतर ख़तम होगा तभी नयी पीढ़ी के आगे हम किसी भी सोच को रखने का अधिकार पा सकते हैं…
मेरा मानना ये है कि हर मुद्दे के दो पहलू होते हैं…एक नैतिक दृष्टि से…दूसरा क़ानून के नज़रिए से….नैतिकता का ह्रास हर जगह हुआ है…हमारा समाज भी उससे अछूता नहीं है…इंटरनेट ने विश्व को वाकई ही ग्लोबल विलेज बना दिया है…जो पश्चिमी जगत में बुरा नहीं माना जाता उसे अब हमारे देश के महानगरों में भी अपनाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है …स्लट वॉक, क्विर परेड, लिव इन रिलेशनशिप अब हमारे देश के लिए भी टैबू सब्जेक्ट नहीं रहे…
नैतिकता पर इतना ही अमल होता तो हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो जाता…यौन शोषण समेत सभी अपराध खत्म नहीं हो जाते…पैसा कहीं लालच में तो कहीं मजबूरी में लोगों से वो काम करवाता है जिन्हें नैतिक नहीं कहा जाता…महिलाओं के देह व्यापार के लिए रेड लाइट एरिया हैं…कॉल गर्ल्स के फाइव स्टार रैकेट्स हैं तो अब इसी देश में मेल स्ट्रिपर्स और जिगोलो (पुरुष-वेश्या) भी हैं…ज़ाहिर है ये तभी इस धंधे में हैं जब इन्हें अपने किए का रोकड़ा मिलता है…अर्थशास्त्र का डिमांड एंड सप्लाई का सिद्धांत यहां भी लागू होता है…जिस बात पर क़ानूनन तौर पर मनाही होती है, वो चोरी छुपे होता है, इसलिए उसकी ज़्यादा कीमत वसूली जाती है…
रही बात कानूनी नज़रिए की…तो ऐसी बहुत सी बुराइयां हैं जिन पर क़ानूनन रोक हैं, वो हमारे देश में बदस्तूर जारी है…
नाबालिग बच्चों का विवाह क़ानूनन अपराध है, क्या उन पर पूरी तरह रोक लगाई जा सकी है…
कन्या भ्रूण हत्याएं रोकने के लिए सेक्स डिटरमिनेशन टेस्ट पर रोक है, क्या पूरी तरह बंद हो गए ऐसे टेस्ट…
क्या हमारे देश में नशेड़ी नशे की लत पूरी करने के लिए अपना खून नहीं बेचते…कुछ लालची ब्लड बैंक मालिक कौड़ियों के दाम ये ख़ून खरीद कर इस नापाक धंधे से मुनाफ़ा नहीं कमाते…
स्कूली लड़कों का स्पर्म बेचना नैतिक दृष्टि से गलत है, इसे तभी रोका जा सकता है जब मां-बाप बच्चों पर हर वक्त नज़र रखें…क्या व्यावहारिकता में ये इतना आसान है जितना कहने में…फिर जो लोग इस धंधे में लगे हैं, क्या सिर्फ आईसीएमआर द्वारा तय किए गए दिशानिर्देशों से उन्हें सज़ा दिलाई जा सकती है…अभी इस विषय पर क़ानून ही नहीं लाया जा सका है तो सज़ा तो बहुत दूर की बात है…इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में क्या उन लोगों की सोच भी ज़िम्मेदार नहीं हैं जो संतान के लिए स्पर्म खरीदते वक्त इस बात पर ज़ोर देते हैं कि स्पर्म डोनर लंबा, सुंदर, कुलीन और गोरे रंग का हो…
ये सब गलत है और बंद होना चाहिए…हर कोई इस बात से सहमत होगा…अपराध या अनैतिकता को अपराध या अनतैकिता के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए…इनका कोई जेंडर नहीं हो सकता…किसी के पुरुष या महिला होने से अपराध या क़ानून के मायने नहीं बदल जाते…ठीक उसी तरह जिस तरह सज्जनता का महिला और पुरूष में विभेद नहीं किया जा सकता….
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